कभी कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाऐं और वाकये घट जाते हैं. जिनके बारे में न तो हम कभी सोचते हैं और न ही उसका लेना देना हमारी जिंदगी से होता है. लेकिन आगे चलकर वहीं घटना हमारी जिंदगी बदल देता है. कुछ ऐसा ही हुआ था आज से लगभग 18 साल पहले उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के मांचा गांव में रहने वाले सभापति शुक्ला (61) के साथ. जिस घटना के चलते आज उनकी पूरी जिंदगी बदल गई और आज वो सफलता के उस मुकाम पर आकर खड़े हैं. जहाँ तक पहुंचना लोगों का ख्वाब होता है और इस घटना की शुरुवात की थी उन्हीं की पत्नी शकुंतला देवी (60) ने, पेशे से किसान सभापति शुक्ला के यहाँ गन्ने की खेती उन दिनों सबसे ज्यादा हुआ करती थी. जिसके चलते गन्ने की पेराई भी हो जाया करती थी. एक बार गन्ने का रस ज्यादा बढ़ जाने के कारण जब रस को फेंकने की नौबत आ गई तो उस समय शकुंतला देवी ने उस रस का सिरका बनाने का निश्चय किया.
पत्नी के हुनर ने बदली सभापति शुक्ला की जिंदगी

जिस समय शुकंतला देवी ने घर में सिरका बनाने की बात अपने पति सभापति शुक्ला से की थी. उस समय उनके पति को उन पर गुस्सा आ गया था. लेकिन काफी मानने मनाने के बाद जब शकुंतला देवी ने सिरका बनाया तो उस सिरके की महक और टेस्ट के चलते वो हर इंसान को पसंद आया. शकुंतला देवी बताती हैं कि, “हम कभी स्कूल तक नहीं जा पाए, लेकिन घर में हमारे यहाँ आचार, सिरका हमारी अम्मा बनाती थी. वहीं देखते देखते हम सीखे थे और जब शादी हुई तो, हमने यहाँ आकर बना दिया. उस समय हमारे घर की माली हालात भी ठीक नहीं थी. इसलिए मैंने अपने पति से जिद की कि वो सिरका किसी को फ्री में बांटने के अलावा उसको किसी दुकान पर बेच आंए. जिससे घर में कुछ पैसे आ जाएंगे. साथ गुजारा चल जाएगा.”
कहते हैं न, वक्त जब करवट लेता है तो अच्छे अच्छे का नसीब बदल जाता है तो अच्छे अच्छे का नसीब बिगड़ जाता है. अपनी पत्नि की बात मानकर घर से सिरका बेचने निकले सभापति शुक्ला जब लोगों के बीच पहुंचे तो देखते ही देखते लोगों की पसंद बन गए और जीरो से शुरू हुआ ये बिजनेस आज के समय में लाखों में पहुंच गया.
शुक्ला जी का मशहूर सिरका और बाबा ब्रांड बन गया पहचान

जिस समय सभापति शुक्ला गन्ने का सिरका बचने को पंसारी की दुकान पर गए थे. वहीं उन्हें ये सुझाव मिला की सिरका का कारोबार काफी बेहतर है. उसके आगे सभापति शुक्ला बताते हैं कि, “उस समय से शुरु हुआ सिरके का कारोबार, आज अनेकों और प्रोडक्ट में पहुंच गया है. क्योंकि आज हमारे यहाँ गन्ने का सिरका, जामुन का सिरका, आम, कटहल, नींबू और न जानें कितने ही तरह के आचार और सिरके बनाए और बेचें जाते हैं. यहीं नहीं बाज़ार की मांग को देखते हुए ही हमने अपने यहाँ पेड़े बनाने भी शुरु किए हैं. हम लोगों को शुद्ध गन्ने का देसी सिरका बेचते हैं. यहीं नहीं हम नमकीन से लेकर और भी कई तरह के आईटम बनाते हैं. जिसमें किसी भी तरह का केमिकल नहीं मिला होता. यही वजह है कि, हमारे निर्धारित ग्राहक हो चुके हैं.
शुक्ला जी का मशहूर सिरका बन गया पहचान

अयोध्या से महज़ सात किलोमीटर पहले अयोध्या-गोरखपुर रोड पर मौजूद सभापति शुक्ला की दुकान की पहचान ही शुक्ला जी का मशहूर सिरका बोर्ड से हो चुकी है. इसी बोर्ड को देखकर यहाँ से गुजरने वाले न जानें कितने ही ग्राहक हर दिन सिरका, अचार खरीदते हैं. यही वजह है कि, “सभापति शुक्ला कहते हैं कि, आज हमारा कारोबार में सालाना का टर्न ओवर 50 लाख के ऊपर है.” यही नहीं आज उनका बाबा ब्रान्ड का सिरका दिल्ली से लेकर दिल्ली-एनसीआर में भी बिकने लगा है.
30 रुपये से शुरु होने वाला सिरका और 120-130 रुपये में बिकने वाले अचार के लिए यहाँ कभी कभी तो लंबी कतार भी लग जाती है. यही वजह है कि, सुबह 6 बजे खुलने वाली दुकान रात के लगभग 10 बजे तक खुली रहती है. साथ सभापति शुक्ला कहते हैं कि, “आज हमारे यहाँ इसी मांग इतनी बढ़ गई है कि, हमारे यहाँ लगभग 40 लोग काम करते रहते हैं. जबकि जब सीजन ऑफ रहता है तो भी हमारे यहाँ लगभग 8 लोग काम करते हैं. साथ मेरे बेटे भी यही काम संभालते हैं.”