आखिर क्यों महिलाएं पैरों में पहनती हैं बिछिया? जानिए क्या है वैज्ञानिक तर्क!

हमारे भारत में हर जाति-धर्म से जुड़े कई समुदायों के लोग रहते हैं और हर समुदाय के लोगों के अपने अलग-अलग रीति रिवाज और मान्यताएं होती हैं। यानी कि अगर देखा जाए तो भारत में जितने रीति-रिवाज और मान्यताएं हैं उतनी शायद ही किसी और देश में देखने को मिलेंगी। खास बात ये है कि भारत का हर व्यक्ति अपने रीति रिवाजों को बखूबी मानता है। हालांकि इनमें कई रीति-रिवाज ऐसे भी होते हैं जिनके पीछे कोई ढ़ंग का तर्क नहीं होता जबकि, कई परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण छिपे होते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी ही परंपराओं और उनके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों के बारे में बताएंगे, जिन्हें भारत में पिछले कई सालों से लोग निभाते आ रहे हैं।

पैरों में क्यों पहने जाते हैं बिछिया-

सनातन धर्म के एक रिवाज के अनुसार शादी के बाद महिलाएं अपने दोनो पैरों की उंगलियों में चांदी या कांस के बिछिया पहनती है। लोग इसे शादी के बाद सुहागन होने की निशानी भी कहते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों की माने तो पैर के अंगूठे के साथ वाली उंगली महिलाओं के यूट्रस और दिल से जुड़ी होती है। जिससे शरीर में खून का बहाव सही बना रहता है। वहीं चांदी जमीन से ध्रुवीय ऊर्जा लेकर शरीर में भेजती है। वेदों में इस बात का जिक्र किया गया है कि, पैर की उंगलियों में बिछिया पहनने से महिलाओं का मासिक चक्र नियमित बना रहता है। बिछिया पांव की उंगलियों में भी एक्यू प्रेशर का काम भी करती हैं, जिससे तलवे से लेकर नाभि तक सभी मांस-पेशियों में रक्त का संचार अच्छी तरह से होता है।

वैज्ञानिक तर्क

नदियों में सिक्के फेंकने का चलन-

अक्सर ट्रेन, बस या कार से सफर करते हुए या फिर यूं ही किसी तीर्थ स्थल पर जाकर जहां नदी दिखती है लोग वहां एक या दो सिक्के फेंक कर कोई मनोकामना मांग लेते हैं। और ऐसा मानते हैं कि, उन्होंने जो भी मांगा है वो उन्हें जरूर मिलेगा। इस प्रथा का चलन जब शुरू हुआ था तब भारत में तांबे व चांदी के सिक्के चलते थे। क्योंकि, तांबा पानी के प्यूरीफिकेशन का काम करता है। इसलिए उस समय जब भी लोग नदी के आस-पास से गुजरा करते थे। तो उसमें सिक्के डाल दिया करते थे। हालांकि आज तांबे के सिक्के नहीं होते लेकिन बावजूद इसके इस प्रथा का चलन अब भी बरकरार है।

हाथ जोड़कर नमस्कार करना-

जहां विदेशों में जब लोग एक दूसरे से मिलते हैं तो गले लगकर या हाथ मिलाकर एक दूसरे का स्वागत करते हैं। लेकिन भारत इकलौता ऐसा देश है जहां पर हाथ जोड़कर नमस्कार करने का चलन है। भारत में इस रिवाज को आदर व संस्कारों में गिना जाता है। लेकिन इसके पीछे एक खास वैज्ञानिक तर्क भी छिपा है। दरअसल, नमस्कार करते वक्त हथेलियों को आपस में दबाने से या जोड़े रखने से हृदय चक्र या आज्ञा चक्र में सक्रियता आती है। जिससे हमारी जागृति बढ़ती है। साथ ही मन शांत रहता है और चित्त में प्रसन्नता आती है। इसके अलावा हृदय में पुष्टता आती है और निर्भीकता बढ़ती है।

वैज्ञानिक तर्क

माथे पर बिंदी या तिलक लगाना

भारत में महिलाएं अपने माथे पर बिंदी और पुरूष अक्सर तिलक लगाते हुए देखे जाते हैं। जिसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं होती है। लेकिन ऐसा करने के पीछे जो वैज्ञानिक कारण है वो इस रिवाज को और खास बनाता है। ये बात तो हम सभी जानते हैं कि, तिलक या बिंदी माथे के बीचों-बीच लगाई जाती है। और मेडिकल साइंस के अनुसार, माथे के बीच में ही पीनियल ग्रंथि होती है। तिलक या बिंदी लगाने से ये ग्रंथि तेजी से काम करने लगती है और बीटा एंडोर्फिन और सेराटोनिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है। जबकि वहीं खास बात ये है कि, चंदन का टीका या तिलक लगाने से इंसान के दिमाग में शीतलता बनी रहती है। और मन की एकाग्रता बढ़ती है।

मंदिरों में क्यों लगा होती है घंटियां

भारत में मंदिरों की आपार संख्या है। आपको भारत की हर दूसरी गली में छोटा या बड़ा मंदिर देखने को मिल जाएगा। लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि, यहां मंदिरों में लगी घंटियों का क्या महत्व है। धार्मिक महत्व की अगर बात करें तो ऐसा माना जाता है कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले भगवान की अनुमति या उनका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए घंटियां बजाई जाती है। ये भी कहा जाता है कि, देवताओं को शंख, घड़ियाल और घंटियों की आवाज पसंद होती है इसलिए उन्हें खुश करने के लिए भी लोग मंदिर में बड़े घंटे या घंटियां लगते हैं। लेकिन बात करें वैज्ञानिक कारण की तो जब घंटी बजाई जाती है उससे आवाज के साथ तेज कंपन्न पैदा होता है। यह कंपन्न हमारे आसपास काफी दूर तक जाते हैं, जिसका फायदा ये होता है कि कई प्रकार के हानिकारक जीवणु नष्ट हो जाते हैं और हमारे आसपास वातावरण पवित्र हो जाता है। यही वजह है कि मंदिर व उसके आसपास का वातावरण काफी शुद्ध व पवित्र बना रहता है।

वैज्ञानिक तर्क

कान या नाक छिदवाना

वैसे तो आज के समय में कान या नाक छिदवाना फैशन ट्रेंड बन चुका है। युवाओं में कान और नाक ही नहीं बल्कि शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पियर्सिंग कराना आम बात हो चुकी है। लेकिन इसकी भारतीय रीति-रिवाजों के अनुसार, कई वर्षों पहले ही हो चुकी है। जिसके पीछे वैज्ञानिक तर्क के साथ कई फायदे भी छिपे हुए हैं। बता दें कि, एक्यूप्रेशर एक्सपर्ट की मानें तो कान के निचले हिस्से पर Master Sensoral एंड Master cerebral नाम के दो इयरलोब्स होते हैं। जिसको छेदने पर कान का बहरापन दूर होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो कान छेदने से लकवा जैसी बीमारियां होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। आपने देखा होगा कि, अक्सर बच्चों के छोटी उम्र में ही कान छेद दिए जाते हैं इसके पीछे तर्क ये है कि कान के निचले हिस्से में मौजू प्वाइंट्स दिमाग से जुड़े होते हैं जिसके छिदने से दिमाग का विकास तेजी से होता है। ऐसे में बच्चों का दिमाग सही समय से विकसित हो सके इसलिए छोटी उम्र में ही उनके कान और नाक छेद दिए जाते हैं।

हाथों में चूड़ियां और कड़े पहनना

अक्सर आपने भारत में महिलाओं को हाथों में चूडियां या कड़े पहने देखा होगा। हिंदू धर्म में शादी के बाद महिलाओं का हाथों में चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है। तो वहीं आमतौर पर महिलाओं के हाथों में चूड़ी पहनने को धार्मिक या फैशन से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन चूड़ी पहनने के पीछे का एक बहुत जरूरी वैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल, चूड़ियां या कड़े हाथ में पहनने से औरतों के शरीर में रक्त संचार सामान्य बना रहता है। कलाई पर बार-बार चूड़ियों और कड़े के रगड़ने से प्रेशर प्वाइंट्स पर दबाव पड़ता है, जिससे महिलाओं के यूट्रेस को मजबूती मिलती है। साथ ही ऊर्जा के स्तर में भी बढ़ोत्तरी होती है। जिससे वो शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होती हैं।

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