26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस.. जिसे भारत के हर घर में त्योहार की तरह मनाया जाता है. हिंदु-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई.. हर धर्म, हर जाति का व्यक्ति इस दिन खुशियां मनाता है क्योंकि साल 1950 में इसी दिन भारत का संविधान लागू किया गया था। इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है. दो दिन बाद राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस है और इस बीच आई कुछ खबरों ने देशभर में लोगों के बीच कई सवाल पैदा कर दिए हैं.. जैसे 26 जनवरी की परेड के बाद 29 जनवरी की शाम को विजय चौक पर हर साल एक समारोह का आयोजन किया जाता है जिसे “Beating The Retreat” का नाम दिया गया है.
इस समारोह में नौसेना वायु सेना और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के पारंपरिक बैंड अलग अलग धुन बजाते हैं और देश के लिए शहीद हुए जवानों के याद करते हैं. खास बात ये है कि इस समारोह में हर साल बजाई जाने वाली धुन Abide With Me इस साल नहीं बजाई जाएगी. जिसके पीछे वजह सेना में ‘भारतीयकरण’ को बढ़ावा देना है. इसके मद्देनजर इस प्रतिष्ठित धुन की जगह अब देशभक्ति से सराबोर हिंदी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की धुन बजाई जाएगी. Abide With Me का भारत में क्या इतिहास रहा है इसके बारे में हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि आखिर क्या है “Beating The Retreat” समारोह.
“Beating The Retreat” समारोह
दरअसल, हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर चार दिवसीय समारोह का आय़ोजन किया जाता है जो कि 26 जनवरी से शुरू होकर 29 जनवरी तक जारी रहता है हालांकि इस बार इस नियम में भी बदलाव करके इसे 23 जनवरी यानी कि सुभाष चंद्र बोस जी की जयंति के दिन से ही शुरू किया गया है। 29 जनवरी को समारोह के आखिरी दिन ‘बीटिंग द रिट्रीट’ होता है. जिसे नई दिल्ली के ऐतिहासिक विजय चौक पर आयोजित किया जाता है.

‘बीटिंग द रिट्रीट’ एक सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है जिसे बरसों से चलाया जा रहा है इस परंपरा के तहत युद्ध के दौरान सूर्यास्त होते ही जैसे ही वापसी का बिगुल बजता था वैसे ही लड़ाई रोक दी जाती थी, हथियार तुरंत नीचे रख दिए जाते थे और युद्ध स्थल छोड़कर उसी समय सेना मैदान से वापस लौट जाती थी. बस उसी परंपरा से जोड़ते हुए भारत में इस साल में एक बार गणतंत्र दिवस के मौके पर आयोजित किया जाता है. इस कार्यक्रम में अलग अलग बैंड्स की परफॉर्मेंस के बाद रिट्रीट का बिगुल बजाया जाता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के नजदीक जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं, तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है.
Abide With Me धुन का भारत से कनेक्शन
जैसा कि हमने आपको बताया कि इस कार्यक्रम में कई गानों की धुनों को बजाया जाता है. इन्हीं धुनों में से एक है Abide With Me.. जिसे साल 1950 से ही कार्यक्रम के आखिर में बजाया जाता है. तबसे लेकर पिछले साल 2021 तक ये परंपरा यूं ही चली आ रही थी मगर इस साल ऐसा नहीं होगा. जिसके पीछे का कारण हम आपको बता चुके हैं. लेकिन अब बात करते हैं कि आखिर इस धुन का भारत से क्या कनेक्शन हैं तो एक रिपोर्ट के अनुसार, ये गाना प्री-मॉर्डन वर्ल्ड में स्कॉटलैंड के एंगलिकन मिनिस्टर Henry Francis Lyte ने साल 1820 में लिखा था. ये एक तरह से चर्च में गाया जाने वाला एक धार्मिक गीत है जिसे Hymn कहा जाता है. जिसे आमतौर पर सादगी और शोक समारोह के मौकों पर गाया जाता है. अब तक “Beating The Retreat” समारोह में सेना का बैंड इसे उतनी ही सादगी से बजाता आ रहा था और इंडियन आर्मी में ही नहीं, कई देशों की सेना में इसे शहीदों को याद करते हुए बजाया जाता है.
लेकिन अब बात आती है कि आखिर भारत में इस धुन को क्यों बजाया जाता है. दरअसल, Abide With Me महात्मा गांधी के निजी पसंदीदा गानों में से एक था. उन्होंने सबसे पहले मैसूर पैलेस बैंड से इस धुन को सुना था जिसके बाद से वो इसे कभी भूल नहीं सके. ऐसा कहा जाता है कि उनकी पसंदीदा धुनों वैष्णव जन तो, रघुपति राघव राजा राम में Abide With Me भी शामिल थी. माना जाता है कि महात्मा गांधी की वजह से भी इसे सेना में गाया जाता है.
Positive And Inspiring Stories पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-