प्यार इंसान के अंदर एक ऐसा जोश जगा देता है, जो उसे हर मुश्किल समय में डटकर खड़ा रहने के लिए एनर्जी दे देता है। ऐसी ही रोमांचक कहानी है प्रद्युम्न कुमार महानंदिया की, जिसने अपनी लगन और मेहनत से सच्चे प्यार की ताकत को दुनिया के सामने दिखा दिया।
प्यार के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते, आइए आज हम जानते हैं इस चित्रकार के बारे में जो अपनी पत्नी से मिलने के लिए साइकिल के सहारे दिल्ली से स्वीडन पहुंच गए और उफ तक नहीं की। वह शख्स है प्रद्युम्न कुमार महानंदिया, जिन्हें स्वीडन की एक महिला चार्लोट से प्यार हो गया। प्रद्युम्न कुमार का जन्म 1949 ईस्वी में ओडिशा में हुआ था। वे एक बुनकर दलित परिवार के अंतर्गत आते थे।
दलित परिवार के अंतर्गत आने के कारण उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन्हें लोग अलग ही दृष्टि से देखते थे और कभी-कभी तो उनके घर पर पत्थर भी मारा करते । प्रद्युम्न के पिता केवल एक पोस्टमास्टर होने के साथ-साथ एक ज्योतिष भी थे। प्रद्युम्न की कुंडली देखकर उन्होंने एक बार यह कहा था कि उनका विवाह एक विदेशी महिला के साथ होगा।
प्रद्युम्न बचपन से ही ललित कला की पढ़ाई में रुझान रखते थे परंतु आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण अच्छे कॉलेज में नहीं जा पाए। इसके बाद ओडिशा सरकार की सहायता से उन्हें दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स में पढ़ाई करने का मौका मिला। परंतु वहां भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वे प्रतिदिन शाम में दिल्ली के कनॉट प्लेस पर लोगों की पोट्रेट बनाया करते थे और उसी से कुछ पैसे भी कमा लिया करते थे।
जब अनजाने में बनाई वेलेंटीना टैरेसकोवा की पोट्रेट
एक दिन अचानक प्रद्युम्न की किस्मत बदल गई । वह घटना कुछ इस प्रकार हुई कि एक दिन वह फुटपाथ पर बैठे हुए पोर्ट्रेट बना रहे थे कि उनके सामने एक कार आकर रुकी। कार के पीछे वाली सीट पर जो महिला बैठी हुई थी उसने अपना पोट्रेट महानंदिया से बनवाया। प्रद्युम्न महानंदिया ने भी बिना कुछ पूछे जल्दी-जल्दी उनकी पोट्रेट बना दी।
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अगले ही दिन उस महिला ने उन्हें मिलने का आमंत्रण दिया और प्रद्युम्न को उस दिन पता चला कि वह महिला और कोई नहीं बल्कि रूस की वेलेंटीना टेरेसकोवा थी, जो पहली महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में जानी जाती है।
इंदिरा गांधी ने भी प्रद्युम्न से बनवाया था खुद का पोट्रेट
केवल रूस की वेलेंटीना टैरेसकोवा ही नहीं बल्कि इंदिरा गांधी ने भी अपना पोट्रेट प्रद्युम्न कुमार महानंदिया से बनवाया था। दरअसल, एक दिन इंदिरा गांधी के सचिव प्रद्युम्न कुमार के पास आए और उन्होंने इंदिरा गांधी का पोट्रेट बनाने के लिए कहा। इसके बाद ही दिल्ली सरकार प्रद्युम्न कुमार की काफी सहायता करने लगी और उनका रवैया बदल गया। दिल्ली सरकार ने प्रद्युमन के लिए बंदोबस्त किया कि वह देर रात तक भी काम कर सकें। धीरे-धीरे प्रद्युम्न की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी और उनकी एक अलग पहचान बन गई।
जब प्रद्युम्न को स्वीडिश महिला चार्लेट से हो गया प्यार:
प्रद्युमन के जीवन में एक ऐसी लड़की आई जिससे उन्होंने सिर्फ प्यार ही नहीं किया बल्कि उसकी एक झलक देखने के लिए भारत से लेकर स्वीडन तक का सफर साइकिल पर तय किया। 1975 ईसवी का समय था, एक स्वीडिश छात्रा जिसका नाम चार्लेट था वह कनॉट प्लेस आई और उसने प्रद्युम्न से अपना पोट्रेट भी बनवाया। प्रद्युम्न को चार्लेट से पहली नजर में ही प्यार हो गया। धीरे-धीरे उनके बीच नजदीकियां बढ़ने लगी और चार्लेट भी उनके काफी करीब आती चली गई।
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उन दोनों को एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत हो गई थी। उन्होंने काफी पल एक साथ बिताए। वे दोनों कभी हंसी मजाक करते तो कभी एक दूसरे से रूठ जाते। लेकिन ज्यादा देर बिना बात किए रह भी नहीं पाते थे। इसके बाद उन्होंने शादी भी कर ली। कुछ समय बाद ही चार्लेट का वीजा खत्म हो गया था जिसकी वजह से उसे वापस स्वीडन जाना पड़ा। इसके बाद प्रद्युम्न अपनी पत्नी से मिलने स्वीडन जाना चाहते थे लेकिन आर्थिक तंगी होने के कारण हवाई जहाज की टिकट कर पाना उनके लिए संभव नहीं था।
₹800 में साइकिल खरीद कर तय किया स्वीडन का सफर:
प्रद्युम्न की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि उनके पास अब कोई चारा नहीं था। इसके बाद उन्होंने अपने सारे सामानों को बेचकर ₹1200 प्राप्त किए और ₹800 में एक साइकिल खरीदी। प्रद्युम्न कुमार ने साइकिल से ही भारत से स्वीडन तक का सफर तय किया। 1978 ईस्वी में स्वीडन जाते वक्त उन्होंने ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, बुल्गारिया, जर्मनी, आस्ट्रेलिया आदि देशों को पार किया।
लेकिन प्रद्युमन के पास इमीग्रेशन वीजा ना होने के कारण उन्हें स्वीडन की सीमा पर रोक दिया गया। जब उन्होंने चार्लेट के साथ की गई शादी का सर्टिफिकेट दिखाया तब वहां किसी ने भरोसा ही नहीं किया कि वास्तव में ऐसा हो सकता है। इसके बाद कई प्रकार के प्रमाण देने के बाद उन्होंने प्रद्युम्न को जाने दिया। प्रद्युम्न को यह नहीं पता था कि चार्लेट एक अमीर परिवार की लड़की है लेकिन अपनी पत्नी से मिलने के बाद उन्हें सब पता चला। इसके बाद ही दोनों ने स्विस कानून के मुताबिक दोबारा शादी की।
प्रद्युम्न अब स्वीडन के नागरिक बन चुके हैं और एक अच्छे पेंटर के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है। वे स्वीडन सरकार के कला और संस्कृति विभाग के सलाहकार भी हैं। उनके दो बच्चे हैं जिनका नाम सिद्धार्थ और एम्ली है। वे दोनों अक्सर उड़ीसा आते रहते हैं।