गांव से शहरों की ओर पलायन का एक बड़ा कारण है गांवों में खेती का खत्म होना। वैसे तो गांव में खेती खत्म होने के भी कई कारण हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ा कारण है प्राकृतिक आपदाएं, कहीं सूखा, तो कहीं बाढ़ का कहर, ज्यादा बारिश से फसलों की बर्बादी होना, तो पानी के अभाव में फसलों का सूख जाना.. कहने का सीधा सा मतलब ये है कि, इन सभी आपदाओं से सीधे तौर पर नुकसान किसानों को होता है, और जब बारी आती है नुकसान की भरपाई की.. तो कभी इस दफ्तर, तो कभी उस दफ्तर किसानों के पास चक्कर काटने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचता, नुकसान झेलते किसान को अंत में पलायन ही एकमात्र रास्ता दिखाई देता है।
जैसे-जैसे दुनिया में पानी की कमी बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे दुनियाभर के कई इलाकें सूखाग्रस्त होते चले जा रहे हैं। हमारे देश में भी ऐसे ना जाने कितने ही गांव हैं, जो कई दशकों से सूखे की मार झेलने पर मजबूर है। सूखे का कारण गांव में खेती करने का कोई साधन ही नहीं बचता फिर आखिर में अपनी समस्याओं का निदान करने लोग चल पड़ते हैं शहरो की ओर.. कुछ ऐसा ही हाल हुआ करता था, महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त जिल अहमदनगर के गांव हिवरे बाजार का।
दरअसल, कई सालों पहले इस गांव में लगातार हर साल पड़ रहे सूखे के चलते कई लोग गांव छोड़कर जाने लगे थे। कोई मुंबई तो कोई दिल्ली की तरफ पलायन करने लगा था, जहां उनको काम के नाम पर दिहाड़ी की मजदूरी या फिर छोट-मोटी नौकरी करके अपना गुजर बसर करना पड़ता था। मगर कहते हैं ना डूबते को काफी है तिनके का सहारा.. बस ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ। इस गांव का भाग्य तब बदला, जब गांववालों ने ‘पोपटराव पवार’ को गांव का मुखिया चुना।
Water Miracle Village- एक आइडिया जिसने बदली गांव की तस्वीर
पवार ने हर एक गांव वाले को पानी की महत्ता को समझाया और फिर गांव के लोगों ने मिलकर एक नया इतिहास लिखा। हेवरे बाजार की मिट्टी सतही है यही कारण है कि इसकी उपजाऊ क्षमता कम है। लेकिन वक्त रहते गांव वालों को यह समझ आया कि उनकी परेशानियों का हल इसी मिट्टी से हो सकता है। ऐसे में गांव के लोगों ने पावार के कहा मानते हुए बरसात के पानी से सिंचाई के लिए वाटर
यहां के लोगों ने गांव के चारों ओर पहाड़ के ऊपरी क्षेत्र में गहरी नालियां खोदी। ये नालियां इस तरीके से खोदी जाती हैं कि ये बारिश के पानी के बहाव के 90 डिग्री के एंगल पर हों। ऐसे में जब बारिश होती है तो पानी सीधे इन गढ्ढ़ों में गिरता है। इन गढ्ढ़ों में पेड़ लगा दिए जाते हैं जिससे इसी पानी से ये पेड़ बढ़ते हैं और पानी को अपनी जड़ों में फंसाकर मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। इससे गांव के कुओं में पर्याप्त पानी रहने लगा।

Water Miracle Village- बेजान पड़ी पहाड़ियों में लहलहाती है हरियाली
इस प्रक्रिया के दूसरे भाग में मिट्टी को इकठ्ठा कर ऊपर से आने वाले पानी को रोका गया। ये मिट्टी के छोटे—छोटे ढ़ेर काली मिट्टी से बने होते हैं। ये मिट्टी के ढ़ेर पानी को सीधा मिट्टी में रसा देते हैं। तो वहीं बचा हुआ पानी इन ढ़ेरों के बीच से होकर हिस्सों में बांटे गए समतल इलाके में पहुंचता है। जहां से पानी सीधे मिट्टी में रिसता है। ऐसे कई ढ़ांचे गांव में बनाए गए हैं।
गांववालों के इस उपाय से यहां के लोगों को खेती के लिए बिना वर्षा वालें दिनों में भी सिंचाई के लिए पानी मिल जाता है। तो वहीं बेजान पड़ी यहां की पहाड़ियां भी अब हरियाली से भर गईं हैं। गांव में होते इन प्रयासों के बारे में जब पलायन करके शहरों में काम करने गए लोगों ने सुना तो वो भी गांव लौटकर वापस आ गए और गांव में होते इस बदलाव में अपना सहयोग दिया। आज इस गांव की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है। गांव से पलायन भी लगभग खत्म हो गया है, उल्टा जितने लोग गांव छोड़ कर गए थे वे वापस गांव लौट आए हैं। गांव वालों के इस सामुहिक प्रयास का नतीजा है कि इस गांव में आज 60 के करीब लोग मिलेनियर हैं और सभी किसान हैं।
महाराष्ट्र का यह गांव देश के कई गांवों के लिए एक रोल मॉडल है। यह बताता है कि गांव की समस्या को गांव के लोग अपने तरीके से आपस में मिलकर ठीक कर सकते हैं, बंजर होती जमीन को एक झटके में अपने प्रयासों से फिर से हरा—भरा बना सकते हैं। गांव से होते पलायन को रोक सकते हैं और गांव को एक स्थानीय इकोनॉमी इकाई बना सकते हैं जिससे देश को भी काफी फायदा होगा।