देश में अगर सबसे ज्यादा मशहूर साड़ी की बात करें तो हर इंसान के पता होगा की बनारसी साड़ी सभी साड़ियों के बीच अपना क्या ओहदा रखती है. लेकिन उसकी बुनाई करने वाले बुनकरों की हालत कैसी है ये शायद ही किसी सी छुपी हो।
जब से पावरलूम से बनारसी साड़ियों को बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है तब से बुनकरों के लिए रोजी रोटी के लिए कोई और विकल्प तलाशना जरूरत बन गया है….लेकिन हम आपको बताने आए हैं बुनकरों की उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपने पति के व्यवसाय खत्म हो जाने के बाद परिवार के साथ-साथ पूरे घर की जिम्मेदारी अपने सर ले ली.
कहते हैं ना कि एक राह रूक गई तो दूसरी खुद-ब-खुद चल पड़ी, यही सच है क्योंकि किसी चीज़ के बंद होने से न तो जिंदगी रूकती है और न ही ठहरती है. कुछ ऐसा ही हुआ है वाराणसी से सटे सारनाथ के पास भासौड़ी गांव में, जहां अपने पतियों की रोज़ी रोटी पर लात लगने के बाद यहां की महिलाओं ने अपने आपको मजबूत किया और खुद को परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का जिम्मा उठाया है.
Varanasi : अगरबत्ती के व्यवसाय से महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी, ये औरतें
वाराणसी सारनाथ के भासौड़ी गांव की इन महिलाओं ने महिला सशक्तिकरण की जो नजीर पेश की है उससे पता चलता है की महिलाऐं असल जिंदगी में हमारे परिवेश में कितना कुछ बदल सकती हैं. अपने गांव की माली हालत देखते हुए गांव की महिलाओं ने फैसला किया एक ऐसा फैसला जिससे उनके पतियों की और घर की हालात को सही ढर्रे पर लाया जा सके.
पूरे गांव की महिलाओं ने मिलकर आमदनी के नए जरिए ढूंढें. इस दौरान उन्होंने अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया और ये काम महिलाओं को इस कदर भाया की आज भासौड़ी गांव की महिलाऐं अच्छा कमाने के साथ साथ अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठा रही हैं.
गांव की महिलाओं ने फैसला किया कि वो एक साथ इकट्ठा होकर पूजा में प्रयोग होने वाली अगरबत्ती बनाएंगी और बाजार में ले जाकर बेचेंगीं. काम शुरू हुआ और देखते ही देखते उसमें सफलता भी हासिल होने लगी. महिलाएं एक साथ इकट्ठा होकर अगरबत्ती बनाने लगीं और उसे बाज़ार में बेचने लगीं. इससे पैसे भी मिलने लगे और पूरे घर का खर्च भी चलने लगा.
चूंकि अगरबत्ती बनाने के लिए ज्यादा जद्दोजहद भी नहीं करनी पड़ती है. इसलिए इनका प्रयोग कारगर होने लगा. गांव की ही एक महिला की मानें तो वो कहती हैं की जब मेरे पति का बुनकरी का काम बंद हुआ तो पुरूष बाहर जाने लगे. उसी दौरान महिलाओं ने सोचा कि उन्हें भी अपने घर परिवार को चलाने के लिए कुछ करना चाहिए. उसी के बाद महिलाओं ने अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया और आज देखिए हमारे दिन सुधर गये हैं.
Varanasi : पावरलूम ने छीना बुनकरों की आय का जरिया
एक समय था कि लगभग पन्द्रह सौ की आबादी वाले इस गांव के हर घर में बुनकारी का काम होता था। बुकर बनारसी साड़ियां बुनते थे और उसे बाज़ार में बेचते थे. हालांकि तब भी इनकी हालत ऐसी नहीं थी जिसे अच्छा कहा जा सकता हो. बाद में कम समय में ज्यादा साड़ियां बीनने के लिए पावरलूम का इस्तेमाल होने लगा. जिसका नतीजा यह हुआ कि इनकी ज़िंदगी एकदम से चरमरा गई. धीरे-धीरे बुनकारी काम काम बंद हो गया और बुनकर कर्ज़ से लद गए. कर्ज़ ने बुनकर के घरों को तोड़ दिया. रोजाना कमाने खाने वाले ये लोग कर्ज से भी दब गये थे. लेकिन अब इनकी ज़िंदगी खुशहाल है. मेहनत रंग लायी और दिन सुधरने लगे.
आज आलम ये है की भासौड़ी गांव की महिलाऐं रोजाना एक जगह एकत्रित होती हैं और गीत गाकर एक दूसरे का मनोरंजन करती हैं और साथ ही अगरबत्ती बनाती हैं. इसके बाद तैयार अगरबत्ती को बाजार में ले जाकर बेचती हैं.
गांव की ही एक और महिला की मानें तो वो कहती हैं कि हम लोगों को खुशी इस बात की है कि हमारे घर का काम भी हो जाता है और बाकी के समय में अगरबत्ती बनाकर कमाई भी हो जाती है. घर भी ठीक से चलने लगा और कर्ज से भी मुक्ति मिल रही है.
कहते हैं न तरक्की किसे नहीं पसंद होती आज भासौड़ी गांव की महिलाओं ने अपने आस-पड़ोस के लगभग आधा दर्जन गांवों की महिलाओं को ऐसा करने के लिए उत्साहित किया है. आस-पास के गांव की महिलाओं ने भी इनका अनुसरण किया और अपने घर परिवार को संवारने में जुट गई हैं. आलम यह है कि इन महिलाओं को और मजबूती देने के लिए इनके पति भी मेहनत और मजदूरी के काम के साथ इनके इस व्यवसाय में मदद करते हैं.
जाहिर है भासौडी गांव की इन महिलाओं ने वो कर दिखाया जो आज महिला सशक्तिकरण का उदहारण बन गया है. आज ये महिलाओं सशक्त हैं और इनका ये जज्बा हर किसी को इनकी तरह आगे आने के लिये प्रेरित कर रहा है