कश्मीर से अरुणाचल तक अनेकों पुल बनाने वाली देश की पहली सिविल महिला इंजीनियर की कहानी

आज भारत हर दिन तरक्की के नए शिखर पर पहुंच रहा है. देश में इस समय दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनकर तैयार होने को है. ऐसे में जहां एक कीर्तिमान रचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बनने को है. ऐसे में हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसी महिला की कहानी, जो भारत की ‘पहली महिला सिविल इंजीनियर’ थी. जिन्होंने इंजीनियर बनने के बाद कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक देश में 69 पुलों का निर्माण किया. जिनका नाम है शकुंतला भगत.

6 फरवरी 1933 को जन्मी शकुंतला के पिता ‘एस. बी. जोशी’ भी पुल इंजीनियर थे. शायद, यही वजह थी कि, शकुंतला ने भी सिविल इंजीनियरिंग पर जोर दिया और उन्होंने साल 1953 में मुंबई के वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. ऐसा करने वाली शकुंतला भगत भारत की पहली महिला थी. जिन्होंने ये डिग्री हासिल की थी. डिग्री हासिल करने के बाद शकुंतला ने पुलों के अनेकों डिजाइन पर काम किया.

मैकेनिकल इंजीनियर से शकुंतला की शादी

शकुंतला जहां भारत की पहली सिविल इंजीनियर थी तो, दूसरी ओर उनका विवाह ‘अनिरुद्ध एस भगत’ से हुआ. जोकि उस समय मैकेनिकल इंजीनियर थे. फिर दोनों ने मिलकर पुल निर्माण के अनुसंधान और विकास में ऐसी भूमिका निभाई की इनके कामों को याद किया जाने लगा. जैसे की देश में पहली बार शकुंतला और अनिरुद्ध ने मिलकर ‘टोटल सिस्टम’ पद्धति विकसित की. इसके अलावा शकुंतला और अनिरुद्ध ने मिलकर ‘भगत इंजीनियरिंग’ की स्थापना की. इसके साथ ही इन दोनों ने मिलकर पुल बनाने की एक नई फर्म ‘क्वाड्रिकॉन’ की स्थापना की. (क्वाड्रिकॉन यानि की एक पेटेंट पूर्वनिर्मित मॉड्यूलर जोकि इन डिजाइन में विशेषज्ञता रखती है).

इतना ही नहीं, शकुंतला ने देश में अनेकों पुल बनाने के अलावा, देश के बाहर यूके, यूएसए और जर्मनी जैसे देशों में लगभग 200 पुलों को निर्माण किया.

क्वाड्रिकॉन पुल कैसे बना लोकप्रिय

क्वाड्रिकॉन स्टील पुल को कहा जाता है. जो कि पहाड़ियों पर प्राय बनाए जाते हैं. जिसकी वजह है, ऊंची पहाड़ियों पर अन्य पुलों की तकनीक का बेअसर होना. जिसके चलते इस तरह के पुल बनाने की शुरुआत हुई.

ऐसे में साल 1960 में, शकुंतला ने पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय से ‘सिविल और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग’ से अपनी मास्टर्स की डिग्री ली. जिसके बाद मुंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में सिविल इंजीनियरिंग में, शकुंतला सहायक प्रोफेसर और ‘हैवी स्ट्रक्टर लैबोरेट्री’ की प्रमुख के तौर पर काम करना शुरू किया.

अपनी शादी के बाद अपने पति के साथ काम करते हुए उन्होंने साल 1970 में अपनी फर्म क्वाड्रिकॉन शुरू किया. जहाँ इन दोनों ने मिलकर इस फर्म में अनेकों आधुनिक डिज़ाइन पुल पेटेंट कराए.

शकुंतला भगत ने लंदन के ‘सीमेंट ऐंड कंक्रटी एसोसिएशन’ के लिए शोध कार्य भी किया. इसके अलावा वो ‘इंडियन रोड कांग्रेस’ की सदस्या तक रहीं.

क्वाड्रिकॉन के प्रोजेक्ट

शकुंतला और उनके पति ने मिलकर टोटल सिस्टम पद्धति का आविष्कार किया था. जोकि इस कंपनी का पेटेंट था. ऐसे में इसी आविष्कार के साथ कंपनी ने साल 1972 में हिमाचल प्रदेश के स्पीति में इसके तहत अपना पहला पुल बनाया था. जिसकी सफलता के बाद महज़ चार महीनों में इस फर्म ने दो अन्य छोटे पुलों का निर्माण किया. और जैसे-जैसे इस तकनीक की जानकारी अन्य जिलों और राज्यों में  पहुंची तो इसकी मांग बढ़ने लगी. जिसके चलते कंपनी ने 1978 आते-आते कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक 69 पुलों का निर्माण किया.

आज शकुंतला और उनके पति के नाम लगभग 200 से ज्यादा क्वाड्रिकॉन स्टील पुल के डिजाइन हैं.

हर कोई जानता है कि, स्टील एक आदर्श निर्माण सामग्री है. जिसके चलते इसमें वेल्डिंग करने से लेकर उसे जोड़ना और पेंच लगाने में मुश्किलें आती हैं. ऐसे में पुल निर्माण में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता था.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए 1968 में, शकुंतला और उनके पति ने ‘यूनीशर कनेक्टर’ का आविष्कार किया. जोकि स्टील की संरचनाओं को जोड़ने के लिए एक आदर्श उपकरण माना जाता है. यही वजह है कि, साल 1972 में इन दोनों को ‘इंवेंशन प्रमोशन बोर्ड’ ने उनके सर्वोच्च पुरस्कार से नवाज़ा.

जबकि साल 1993 में शकुंतला के काम को देखते हुए उन्हें वुमन ऑफ द ईयर’ खिताब से भी सम्मानित किया गया. सिविल इंजीनियरिंग की दुनिया में अनूठा काम करने वाली शकुंतला भगत ने साल 2012 में 79 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा दिया.

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