कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि, कोई दर्द से कराह रहा होता है या ऐसी स्थिति में होता है कि, उसका जीना मरने से भी बदत्तर होता है तो, उसे दर्द से मुक्ति दे दी जाती है। मतलब उसे मार दिया जाता हैं। लेकिन क्या कोई इंसान अपने ही मां—बाप को पीड़ा से मुक्ति देने के लिए उन्हें मार सकता है? आप कहेंगे ये कैसा सवाल है। औलाद कितनी भी खराब हो लेकिन मां—बाप को मारने की नहीं सोच सकता। क्योंकि हमारी भारतीय सभ्यता में तो हमें बड़े बुजुर्गो की सेवा करना, उनकी इज्जत करना सिखाया गया है। कहा भी जाता है कि, मां—बाप का कर्ज कोई औलाद 7 जन्मों में भी नहीं चुका सकता। लेकिन एक और बात कही जाती है ‘पुत कपूत सुना है’ आगे की लाइन आपको पता है। यानि पूत-कपूत हो सकता है। इससे नकारा नहीं जा सकता। लेकिन पूतों के कपूत होने की परंपरा भी कहीं हो सकती है क्या? भारत में एक ऐसी जगह है जहां औदाल अपने ही मां—बाप को बूढ़े होने पर मार देती है। और यहां के पूतों के कपूत होने की यह परंपरा आज भी चली आ रही है।
आम तौर पर हम वृद्धा आश्रमों यानि Old age Home के बारे में सुनते हैं, सोसायटी में बुजुर्गो को लेकर नई पीढ़ी की बदलती सोच देखनी हो तो ओल्ड एज होम सबसे अच्छी जगह होती है। यहां के बुजुर्गो से बात करेंगे तो लगेगा, वो तो जैसे तैसे जी रहे हैं। बेटे की करतूत देखकर वे तो यही कहते हैं कि, ये दिन देखने से अच्छा था कि, मर ही जाते, मां-बाप को वृद्धा आश्रम भेजना नई परंपरा है। लेकिन तमिलनाडू की कुछ जगहों में नई पीढ़ी ने अपनी पुरानी परंपरा को बुजुर्गो से छूटकारा पाने का हथियार बना लिया है। तमिल प्रदेश में प्रचलित इस परंपरा को ‘तलईकुथल’ कहते हैं। तलई का मतलब होता है सर और कुथल का मतलब होता है नहलाना… यानि किसी बुर्जुग को सर पर किसी खास चीज़ की बारिश कर उसे मरने के लिए मजबूर करना। पहले की परंपराओं में इसके लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल किया जाता था।

Thalaikoothal में होता क्या है?
तलाईकुथल घर के सबसे बूढ़े आदमी को मारने की एक परंपरा है जो घर का ही एक आदमी, जिसमें उसका बेटा या बेटी शामिल होते हैं, वो करते हैं। कहा जाता है कि, यह परंपरा एक तरह की इच्छामृत्यु की तरह है जो अब देश में लीगल हुआ है, लेकिन उसके अपने कुछ प्रोसीजर हैं। ऐसे ही कोई इच्छामृत्यु नहीं कर सकता। तलाईकुथल की परंपरा इच्छामृत्यु जैसी ही है। जिसमें उम्र के आखिरी पढ़ाव पर पहुंच गया आदमी या बीमारी से तकलीफ झेल रहा इंसान अपनी ही औलाद को यह अधिकार देता है कि, वो उसे मार दे। यानि यह वो वाली हालत होती है जब जीना मरने के बराबर लगता है।
इसमें बुजुर्ग इंसान को मारने के लिए नारियल तेल से एकदम भोर में सर पर सावर दिया जाता है। फिर उसे नारियल पानी जबरदस्ती पिलाई जाती है। जिससे उसकी किडनी फेल हो जाती है या तेज बुखार हो जाता है और 1 दिन के भीतर मौत हो जाती है। नारियल तेल के अलावा इसमें मिल्क थैरेपी भी होती है। जिसमें नाकबंद कर दूध पिलाई जाती है। वहीं इसी में जहर देने की भी बातें कईं जगहों पर देखने को मिलती हैं। वहीं ठंडे पानी से बूढ़े आदमी के सर पर मसाज करके भी उसे मारने का तरीका इसमें अपनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, 126 तरीकों से इसमें हत्या करने की घटनाएं अब तक सामने आई हैं।
नई पीढ़ी के लिए बूढ़ों से पीछा छुड़ाने का हथियार है Thalaikoothal
तलाईकुथल शायद किसी हिसाब से इच्छामृत्यु की तरह लग सकती है। लेकिन असल में यह एक प्रीप्लान्ड मर्डर है जिसे मर्सी किलिंग की आड़ में किया जाता है। मर्सी किलिंग के नाम पर आज नई पीढ़ी अपने मां—बाप या घर के बड़े बूढ़ों से छुटकारा पाने के लिए इस परंपरा को जिंदा रखे हुए है। इस हत्या के शिकार हुए लोगों को लेकर मद्रास यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ क्रिमिनोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर एम. प्रियमबदा की स्टडी बताती है कि, तलाईकुथल की जड़ें मदुरई, विरूद्धनगर और थेनी में बहुत गहराई तक घर कर चुकी हैं। उनकी स्टडी के आंकड़ों की मानें तो 49 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो अपने बुजुर्गो को पीड़ा में नहीं देख सकते, 34 प्रतिशत ऐसे हैं जो सबकुछ करके हार गए है लेकिन बूढ़ों की मेंटल ओर फिजिकल हालत में बदलाव नहीं आया है और 23 प्रसेंट ऐसे हैं जो गरीबी के कारण इस प्रथा को अपनाए हुए हैं।
आज की पीढ़ी में तलाईकुथल की परंपरा का इवोल्यूशन हो गया है। कोकोनट ऑयल की बाथिंग की जगह अब स्लिपिंग पिल्स, लीथल इंजेक्शन ने ले ली है। जैसे ही नौजवानों को यह लगता है कि, उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि, वो अपने बड़े बुजुर्गो का खर्च उठा सकें वो उन्हें इंजेक्शन देकर मार देते हैं। अपने बड़ों को मारने के लिए लोगों के पास कई तर्क होते हैं जैसे कि, परिवार की स्थिति अच्छी नहीं होना, अपने बड़े बुजुर्गो को दर्द में नहीं देख सकते, या हर कुछ करने के बाद भी इन बूढ़ों की लाइफ में कोई चेंज नहीं आ रहा। आजकल ये कारण कुछ अलग भी हैं, जैसे बुजुर्ग किसी काम में बाधा है तो उन्हें मार दिया या प्रोपर्टी के लिए भी यह काम होता है।
एक स्टडी के अनुसार तलाईकुथल कोई मर्सी किलिंग नहीं है क्योंकि बहुत कम ही ऐसे केस है जिसमें यह डिसिजन मरने वाले का होता है। करीब 33 फीसद मामलों में यह फैसला उस बुजुर्ग के अपने बेटे लेते हैं। वहीं 22 प्रसेंट मामलों में उसका दमाद, 17 प्रसेंट मामलों में बहुएं, 10 प्रसेंट मामलों में बेटियां, 6 प्रतिशत मामलों में रिलेटिव, 4 प्रतिशत मामलों में पड़ोसी ओर 8 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिसमें तलाईकुथल करने का फैसला अन्य लोगों ने लिया है।

कोई कुछ करता क्यूं नहीं?
तलाईकुथल के बारे में इतना कुछ जानने के बाद आप यह तो जान हीं चुके होंगे कि, यह प्रथा कितनी खराब है। लेकिन ऐसे में एक सवाल यह आता है कि, अगर यह कानूनी नहीं है तो आज भी इसका चलन क्यों है? तो जवाब साफ है और इसे आप भी अपने आस—पास महसूस कर सकते हैं। यानि हम बात कल्चर से लोगों के जुड़ाव की कर रहे हैं। इस बारे में कोई कुछ इसलिए नहीं कर पाता है क्योंकि लोग खुद इसके सर्पोट में खड़े है। वे जानते हैं कि, वे अपने मां—बाप को मार रहे हैं और कल उनके बच्चे भी शायद ऐसा करें। लेकिन यह जानते हुए भी लोग इस परंपरा को निभाने पर अड़े हैं। ऐसा नहीं है किसी को पता नहीं होता कि, किसने तलाईकुथल किया है। दरअसल तलाईकुथल करने से पहले गांववालों, परिवार और रिश्तेदारों को इसकी खबर भी दी जाती है। लेकिन कोई इसके बारे में पुलिस या प्रशासन को नहीं बताता है।
साल 2010 में यह परंपरा लोगों के बीच तब उजागर हुई जब एक बुजुर्ग अपने घर से फरार हो गया। उसने बताया था कि, उसके घर के लोग उसका तलाईकुथल करने की प्लानिंग कर रहे हैं। उसके बाद इसपर तमिलनाडू की सरकार ने एक्शन तो लिया। लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ।
यह परंपरा किस कारण से शुरू हुई होगी और इसे बनाए रखने के पीछे क्या कारण रहा होगा। इस बारे में हम कुछ टिपण्णी नहीं कर रहे। लेकिन आज के हिसाब से यह कुप्रथा है जो इंसान से उसके जीने के हक को जबरदस्ती छीनती है। यह ईच्छामृत्यु देने की कोई प्रथा नहीं है जो परंपरा के नाम पर चल रही हो। बल्कि यह लोगो का अपना स्वार्थ और नए दौर की बढ़ती चुनौतियां हैं जो उन्हें तलाईकुथल करने और इसे परंपरा के नाम पर जायज ठहराने की हिम्मत दे रही है। यह प्रथा आज के सिविलाइज समाज के लिए एक दाग जैसी है खासतौर पर उस समाज के लिए जो आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रित समाज हो और संविधान के जरिए चलता हो।