superstitions अंधविश्वासों में कुछ कमाल के लॉजिक्स छिपे हैं जिन्हे हम सालों से नहीं जानते हैं। भारत का कल्चर अलग अलग मान्यताओं और प्रथाओं से भरा हुआ है। यहां के लोग अंधविश्वासों और अजीब से नियमों को फॉलो करते हैं। पूजा पाठ करने में कोई बुराई नहीं हैं लेकिन कुछ मान्यताएं और अंधविश्वास ऐसे हैं जिनके पीछे लॉजिक तो कोई भी नहीं है लेकिन फिर भी हम उसे फोलो सालों से कर रहे हैं। वो भी सिर्फ इसलिए कि हमारे माता पिता हमें वो सब करने के लिए कहते हैंजो उनके माता पिता ने उन्हें करने की सलाह दी थी फिर हम भी अपने बच्चों को पुरानी मान्यताओं को फॉलो करने के लिए कहते हैं। इस तरह ये मान्यताएं हम लोग ही बिना लॉजिक ढूंढें आगे बढ़ाते जाते हैं। हमारे बड़े बुजुर्ग हमें कई मान्यतों के बारे में तो बता देते हैं ये भी बता देते हैं कि अगर हम उसे फॉलो नहीं करेंगे तो हमारे साथ बुरा होगा मगर कोई हमें ये नहीं बताता कि आखिर हम ऐसा क्यों ना करें। ज़्यादा पूछे भी तो भी बस यही जवाब मिलता है कि बस अच्छा नहीं माना जाता। जैसे बिल्ली का रास्ता काट जाना, रात में नाखून ना काटना, शरीर में किसी जगह तिल हो तो आप लकी हो। कढ़ाई में खाना खाओगे तो शादी में बारिश हो जाएगी। हमारे बड़े बुजुर्गों ने आजतक हमें ये नहीं बताया कि हम ये चीजें माने क्यों मगर फिर भी बिना रीज़न जाने इन्ही बातों को सालों से फॉलो किए जा रहे हैं। हम में से शायद ही किसी ने इन बातों के पीछे साइंटिफिक रीजन को जानने की कोशिश की हो। चलिए आज हम आपको बताते हैं ऐसी कई कही सुनी मान्यताओं के बारे में और उस वक़्त इनके पीछे क्या लॉजिक हुआ करते थे। आपने देखा होगा कि जब घर से कोई एग्जाम या फिर इंटरव्यू या किसी दूसरे जरुरी काम से जाता है तो उसे घर से निकलते वक़्त दही चीनी खिलाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करना शुभ होता है और इससे जिस काम को आप करने जाते हैं वो अच्छे से हो जाता है। इस बात के पीछे शुभ अशुभ नहीं बल्कि साइंटिफिक रीज़न है वो ये कि जब भी हम कोई ऐसा काम करते हैं जिसमें दिमाग का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं तो ऐसे में जरुरी होता है कि हमारा दिमाग शांत रहे और हम परेशान ना हो साथ ही हमारे शरीर में एनर्जी भी बनी रही। दही हमारे शरीर को ठंडक देता है चीनी में ग्लूकोज़ होता है जो हमारी बॉडी को इंस्टेंट एनर्जी देता है। तो इस तरह दही और शक्कर साथ में खाने से बॉडी और ब्रेन दोनों का टेम्प्रेचर बेलेंस रहता है। जिससे काम के दौरान हमारा फोकस बढ़ता है। पहले लोग आज की तरह थोड़ी सी दूर जाने के लिए भी गाड़ियों का इस्तेमाल नहीं किया करते थे इसलिए वो धुप्प और गर्मी से बचे रहे इसलिए घर से निकलने से पेहलेम लोग दही चीनी खाया करते थे। इसका मतलब ये कि हमारे बड़े बुजुर्ग घर से निकलने से पहले जो हमें दही शक्कर खिलाते थे उसके पीछे कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि साइंटिफिक रीज़न है।
superstitions अंधविश्वास ऐसे भी जो हैं काम के
एक और बड़ी फेमस मान्यता है घर दूकान के बाहर नीबूं मिर्ची लटकाना। ये एक ऐसा रिचुअल है जिसे हमारे देश में सबसे ज्यादा माना जाता है और लोग इसे सबसे ज्यादा फॉलो भी करते हैं। लोगों का मानना है कि इससे घर में नेगेटिव एनर्जी नहीं आती और किसी का टोना टोटका या काला जादू भी आपके ऊपर असर नहीं करता। नेगेटिव एनर्जी का तो पता नहीं मगर हां कीड़े मकोड़े जरूर नीबू मिर्ची से दूर रहते हैं। नीबूं में पाए जाने वाले सेंट्रिक एसिड और मिर्ची में पाए जाने वाले कप्सेसिसन में एंटी बैक्टीरियल और एंटी इंसेक्ट प्रॉपर्टीज़ पाई जाती है। जो चींटी कीट पतंगों मच्छरों को दूर रखता है। दरवाजे के बीचों बीच में लगे होने की वजह से इसकी गंध पूरे दरवाजे को कवर करती है और इससे कीड़े मकोड़े घर के अंदर नहीं घुस पाते हैं। बरगद और पीपल के पेड़ को लेकर भी कुछ ऐसी मान्यताएं हैं कि इन पेड़ों पर भगवान् या हमारे बुजुर्गों की आत्मा रहती है इसलिए इन पेड़ों को कभी काटना नहीं चाहिए। पीपल के पेड़ के लिए भी ऐसा माना जाता है कि ये शनि देव का ही रूप है इसलिए इसे काटना नहीं चाहिए जबकि इसके पीछे भी एक साइंटिफिक रीज़न है। जैसे जैसे हम आधुनिकता की तरफ बढे पेड़ों की कटाई शुरू हो गई इसलिए हमारे बड़े बुजुर्गों ने पीपल और बरगद को ना काटने की सलाह दी क्योंकि पीपल का पेड़ ही बस ऐसा है जो दिन के साथ साथ रात में भी ऑक्सीजन देता है। पीपल का पेड़ और पेड़ों के मुकाबले सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है। ज़्यादातर पेड़ दिन के समय ऑक्सीजन और रात को कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। मगर, बरगद और पीपल दो ऐसे पेड़ हैं जो दिन रात ऑक्सीजन ही छोड़ते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड का उपभोग करते हैं। इसलिए ये पेड़ हमारे पर्यावरण के लिए सबसे ज़्यादा जरुरी हैं। पेड़ काटने वाले इन दो पेड़ों ना काटे इसलिए हमारे बड़े बुजुर्ग हमें मना किया करते थे मगर इसको भी हमने अंधविश्वास से ही जोड़ दिया।
superstitions अंधविश्वास जिन्हे हम सालों से फॉलो कर रहे हैं।
पवित्र नदियों में सिक्के फेंकना आज चाहे हमारे देश में नदियों के जो भी हालात हों नदियाँ चाहे सूख ही क्यों ना गई हों मगर हम आज भी जब भी कहीं सफर करते हैं तो इन नदियों में सिक्के फेंकना नहीं भूलते। ये सब हमने घरवालों को बचपन से करते देखा है और इसलिए हम भी वही सब करते हैं। हमें लगता है कि हमारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। मगर क्या आप जानते हैं कि धार्मिक मान्यता के अलावा नदी में सिक्के फेंकने के पीछे साइंटिफिक कारण भी है। पहले के ज़माने में सिक्के चांदी या तांबे के हुआ करते थे। चांदी और तांबे की अच्छी बात ये होती है कि वो पानी को शुद्ध बनाते हैं। जिससे इंसानों और पानी में रहने वाले जीव दोनों को ही फायदा होता है। हर दिन सैंकड़ों लोग नदी में सिक्के डालते थे जिससे नदी का पानी दूषित नहीं होता था। साथ ही ये दोनों पानी की क्वालिटी को भी बढ़ाते हैं और पानी में नेचुरल फिल्ट्रेशन का काम भी करते हैं। पुराने ज़माने के लोग तो ये काम नदियों की भलाई के लिए करते थे लेकिन देखते ही देखते ये बातें अंधविश्वास बन गई और आज लोग बिना इसका रीज़न जाने ही नदियों में सिक्के डाल देते हैं। सूरज ढलने के बाद नाखुन नहीं काटना। आपने बड़े बुजुर्गों को ये कहते तो अक्सर सुना ही होगा कि रात में नाखुन नहीं काटने चाहिए। इससे घर में दरिद्रता आती है मगर इसके पीछे भी एक लॉजिक है। दरअसल पहले के टाइम में घरों में लाइट कम ही आया करती थी। रात को अन्धेरा होने की वजह से लोग अपने घरों में लैंप लालटेन जलाया करते थे। इसलिए लोग अपने सारे जरुरी काम दिन में ही कर लिया करते थे। बड़े बुजुर्ग भी नाख़ून रात में काटने के लिए इसलिए ही मना किया करते थे ताकि अँधेरे में नाख़ून किसी खाने पीने की चीज में ना गिर जाए। वैसे भी पहले नेलकटर कम ही हुआ करते थे तो लोग छोटे चाक़ू या ब्लेड या फिर केची से नाख़ून काटा करते थे ऐसे में ऊँगली कटने का भी दर बना रहता था। बस इसलिए ही बड़े बुजुर्ग हमें रात में नाख़ून काटने के लिए मना किया करते थे मगर हम तो आज भी हम रात में नाखून काटने से डरते हैं क्योंकि हमें डर लगता है कि कहीं हमारे साथ कुछ बुरा ना हो जाए।
ऐसी ही एक और मान्यता है काली बिल्ली का रास्ता काट जाना। आज भी आपने देखा होगा कि अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो हम डर कर अपना रास्ता बदल लेते हैं। या हम वहां खड़े होकर किसी और के निकल जाने का वेट करते हैं ताकि जो भी अपशगुन होने वाला है वो हमारे साथ ना होने पाए। इसके पीछे भी एक लॉजिक हुआ करता था। दरअसल पहले के वक़्त में लोग बैलगाड़ी घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल ज़्यादा किया करते थे। रात के अँधेरे या शाम को अगर बिल्ली, जंगली बिल्ली या चीता अचानक से सड़क के सामने आ जाते थे तो उन्हें देखकर बेल या घोड़े डर जाते थे और खेतों की तरफ भागने लगते थे। एक और कारण था और वो ये कि अगर बिल्ली सड़क से निकल रही है तो हो सकता है कि उसके पीछे कोई कुत्ता भागता हुआ आ जाए और गाड़ी को अचानक रोकने से बैलेंस बिगड़ कर कोई हादसा हो जाए बस इन्ही चीजों से बचने के लिए लोग जानवर के सामने से जाने पर रुक जाया करते थे। मगर धीरे धीरे लोगों की बातों से सारे जानवर तो हट गए मगर बेचारी बिल्ली ही रह गई और तब से बस लोगों को बिल्ली के ही रास्ता काटने से खतरा नजर आता है। इसके दुसरा कारण ये भी है कि 70 के दशक में यूरोप के एक पोप ने बिल्ली को शैतान का दर्जा दिया था उसके बाद बिल्ली कई हॉरर फिल्मों और डरावने अंधविश्वासों के लिए जानी जाने लगी और देखते ही देखते बिल्ली लोगों के लिए अपशगुन मानी जाने लगी। तो ये थी वो मान्यताएं जो पुराने जमाने से चली आ रही हैं। ज़्यादातर मान्यताओं के पीछे स्मार्ट लॉजिक छिपे हैं लेकिन इन सब बातों में शुभ अशुभ और अंधविश्वास की बातें लोगों ने कब और कैसे जोड़ दी इसके बारे में तो कोई नहीं जानता। आज भी कई ऐसी मान्यताएं हैं जो लोग आँख बंद कर के फॉलो किए जा रहे हैं और ऐसी मान्यतों के पीछे बिना कोई धार्मिक कारण जाने लोग बस उसे फोलो किए जा रहे हैं। तो अब तो आपको कई मान्यताओं के पीछे के लॉजिक समझ आ ही गए होंगे इसलिए इस वीडियो को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से शेयर करें ताकि फिजूल के अंधविश्वासों को रोका जा सके।