अक्सर किसी भी सफर के दौरान हमें सड़कों के किनारे, सड़कों के बीच में कुत्तों की लावारिस लाश दिखाई देती है. गलियों से लेकर मोहल्लों में आवारा और बेजुबान कुत्ते दर-दर भटकते रहते हैं. लोग उन्हें कभी दुत्कार देते हैं. कभी बेरहमी से मार देते हैं. हालांकि कम ही लोग सोचते हैं कि, इनको ठिकाना देना हमारा सबसे पहला काम है. इन बेजुबानों का ख्याल रखना हमारा फर्ज़ है.
आए दिन सोशल मीडिया पर न जानें कितनी ही तस्वीरें, वीडियो दिखाई देती है. जिसमें इंसान इन बेजुबानों के साथ दरंदगी करते हैं. उन्हें जला देते हैं, मार देते हैं, गाड़ियों से खींच कर घिसटते तक हैं. बेरहमी की कई दास्तां तो अपने आस-पास भी हमने देखी होगी. हालांकि ये भी हकीकत है कि, दुनिया में हर इंसान एक जैसा नहीं होता. इन्हें लोगों में से कुछ लोग होते हैं जो इन बेजुबानों का सहारा बनते हैं. ठीक इसी तरह इन बेसहारा बेजुबानों का सहारा हैं “राकेश शुक्ला”. जिन्होंने इन बेसुबानों का सहारा बनने की खातिर, उन्हें आशियाना देने की खातिर अब तक अपनी 20 गाडियां और तीन घर बेच दिए.
बेसहारा बेजुबानों के मसीहा राकेश शुक्ला

राकेश शुक्ला आज के समय में बेंगलूरु में गली-मोहल्लों में घूमने वाले कुत्तों का रेस्क्यू करते हैं. उनकी देखभाल करते हैं. यही वजह है कि, आज के समय में राकेश के पास लगभग हज़ार बेजुबान कुत्ते हैं.
एक समय तक मंगलौर पुलिस में काम करने वाले राकेश शुक्ला, दरअसल फ़ोर्सेस में काम कर चुके हैं. हालांकि इन बेजुबानों के प्रति हमेशा से उनकी अलग सोच थी. यही वजह है कि, आज के समय में राकेश शुक्ला इन बेजुबान जानवरों के डॉग फादर हैं.
इन बेसहारा जानवरों की देखभाल के लिए राकेश ने अपने यहां स्ट्रे यानि की कुत्तों के लिए फार्म हाउस तैयार किया है. जहां पर गली मोहल्लें से लेकर बेजुबान जानवरों को लाकर रखा जाता है. आज के समय में राकेश के फार्म पर 7 घोड़े और दस गाय भी हैं. जिनकी देखभाल राकेश शुक्ला करते हैं. इतना ही नहीं. इस फार्म पर किसी भी जानवर को कभी ज़ंजीरों से बांधकर नहीं रखा जाता. इनके लिए फार्म पर ही स्विमिंग पूल से खाने पीने की सभी चीज़ें रखी होती हैं.
आज यही वजह है कि, यहां के लोग राकेश शुक्ला को बेसहारा कुत्तों को बचाने और उन्हें पालने के लिए डॉग फादर कहते हैं.
Dog Father Rakesh Shukla

लगभग 48 साल के राकेश शुक्ला पेशे से एक बिज़नेसमैन हैं. जिन्होंने बेंगलुरु शहर में अपना बिज़नेस शुरू किया. इस दौरान उन्होंने दुनिया भर में अनेकों देश घूमे. इस बारे में Rakesh Shukla बताते हैं कि, “एक वक्त था. जब में गाडियों से लेकर घरों को तवज्जों देता था. उस समय मेरा मानना था कि, सफलता यही है. हालांकि आज सब कुछ बदल चुका है. जीवन का मकसद भी और उसे जीने का तरीका भी. यही वजह है कि, अब तक इन बेजुबानों देख रेख की खातिर अब तक मैं 20 से ज्यादा कार बेच चुका है साथ ही तीन घर भी.”
इसके एवज़ में मैं स्ट्रे डॉग्स की सेवा करता हूँ. सड़कों, गली मोहल्लें में आवारा जानवरों का रेस्क्यू करता हूं.
इस काम की शुरुवात Rakesh Shukla ने साल 2009 में की थी. वो भी एक इत्तेफाक की वजह से. हुआ यूं था कि, हर रोज़ की तरह राकेश शुक्ला अपने डॉग के साथ बाहर वॉक पर निकले थे. जहां उन्होंने छोटे Puppy देखा. उस समय बारिश हुई थी. बारिश से वो बच्चा जैसे-तैसे बच पाया था. उसकी हालत बहुत दयनीय थी. राकेश शुक्ला उसे अपने घर ले आए. और उसको पालने शुरु किया. इसका नाम उन्होंने लकी रखा. उसके पहले राकेश शुक्ला 45 दिन की Golden Retriever ‘काव्या’ को भी अपने यहां ला चुके थे. बस यहीं से स्ट्रे डॉग्स को रेस्क्यू करने का सिलसिला उनका शुरु हुआ.
जो आज तक जारी है. इन बेजुबानों की ठीक से मदद करने के खातिर उन्होंने इनके लिए ज़मीन खरीदी. फार्म हाउस तैयार करवाया. ताकि इन डॉग्स को आशियाना दिया जा सके. हालांकि शुरुवाती समय में उन्होंने इसके लिए काफी आलोचनाएं झेली.
लेकिन वो कहते हैं न की अगर आप अपने हौसलें बुलंद कर लो तो, कोई भी आपको डिगा नहीं सकता. ठीक यही राकेश शुक्ला के साथ भी हुआ. इन बेजुबानों का सहारा बनने की खातिर उन्होंने ‘Voice of Stray Dogs’ जैसी संस्था शुरू की. जहां स्ट्रे डॉग्स और उनके पुनर्वास के लिए काम किया जाता है. आज के समय में इस संस्था को चलाने की खातिर राकेश शुक्ला हर महीने लाखों रुपये इस पर खर्च करते हैं.
‘Voice of Stray Dogs’ (VOSD) संस्था

‘Voice of Stray Dogs’ संस्था के तहत राकेश शुक्ला लगभग 90 प्रतिशत फंड ख़ुद की टेक फ़र्म से ही देते हैं. जिसकी मदद से इन बेजुबानों की खातिर तकनीक, संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर तक का निर्माण किया जाता है. यहां लाए गए इन कुत्तों का ख्याल रखा जाता है. बीमार और चोट खाए जानवरों की दवाई होती है.
इसमें खास बात यह है कि, आज के समय में राकेश शुक्ला अपनी आईटी फर्म कंपनी भी, इसी फार्म हाउस से चलाते हैं. जहां वो और उनके सहयोगी इन सबकी देखभाल करते हैं. जोकि इन जानवरों का ख्याल रखते हैं.