आज़ादी के बाद से जब हमारे देश ने विकास की पगडंडी पर चलना शुरू किया होगा तो, उसे जरुरत पड़ी होगी गांवों, कस्बों को एक शहर में तब्दील करने की. ताकि विकास की एक लंबी डोर की शुरुवात हो सके. हालांकि जिस तरह से हमने और हमारे पूरे समाज ने कोरोना महामारी की भयवहता देखी. उसे देखकर मालूम चलता है कि, इंसान को अपने गांवों को सम्रग करने की जरुरत है. अपने गांवों को काबिल बनाने की जरुरत है. आज अधिकतर गांवों के लोग अपने गांव से, कस्बों से निकलकर शहरों में चले जाते हैं. वहीं बस जाते हैं और धीरे-धीरे अपनी सभ्यता अपनी विरासत भूल जाते हैं. हालांकि गांवों की का अस्तित्व ही भारत से है.
शायद इसलिए राष्ट्रपति महामत्मा गांधी ने भी कहा था कि, “भारत का भविष्य इसके गाँवों पर निर्भर करता है.”
चलिए इस कड़ी में आज हम आपको हमारे देश के चार ऐसे गांवों के बारे में बताते हैं. जिन्होंने अपने अस्तित्व को बरकार रखते हुए. विकास की पगडंडी पर ऐसे कदम रखे कि, एक खूबसूरत मिसाल बन गए. हम इसी कड़ी में आपको देश के अनेकों गांव की दिलचस्प कहानी बताएगें.
Dharnai Village, Bihar

आज भले ही हमारा देश बिजली उत्पादन में कितना ही सशक्त क्यों ना हो गया हो, हालांकि उसके बावजूद भी गांवों की स्थिति अभी भी बदतर ही जान पड़ती है. अनेकों गांवों में विद्युतीकरण तो हो चुका है. हालांकि बिजली दिन रात मिलाकर महज़ 4 से 6 घंटे रहती है. खासकर बिहार जैसे राज्य में इसकी किल्लत ज्यादा दिखाई देती है. हालांकि बिहार का एक गांव है. जिसने ऐसी मिसाल कायम की है कि, अन्य पूरे देश के गांव उससे कोसों पीछे हैं. जिसकी वजह यह है कि, यह गांव पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर आश्रित होने वाला देश का पहला गांव है. जोकि बिहार के जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड में मौजूद है. जिसका नाम धरनाई गांव है. अन्य गांवों की तरह ही यह गांव भी एक वक्त तक पारंपरिक ईंधन का ही इस्तेमाल कर अपना गुज़र बसर करता था.
हालांकि साल 2014 में धरनाई गांव ने, ग्रीनपीस संस्था के साथ मिलकर सौर चलित 100 किलो वॉट के माइक्रो ग्रिड सिस्टम लगवाए. उसके बाद से आज पूरे गांव में इसी सौर सिस्टम से बिजली की सप्लाई की जाती है. इस गांव की आबादी आज लगभग 2400 है. जोकि भारत का एक Smart Village है.
Hivrebajar, Maharashtra

महाराष्ट्र में अनेकों ऐसी जगहें हैं. जहां पानी की सबसे अधिक किल्लत है. अधिकतर जगहों पर हर साल लोग सूखे का सामना करते हैं. हालांकि उसी राज्य में मौजूद एक गांव हीवरे बाज़ार भी है. जो न तो पानी की किल्लत का सामना कर रहा है. न ही इस गांव को पानी पीने की खातिर बाहर से मंगाना पड़ता है. यही वजह है कि, साल 1995 से लेकर अब तक इस गांव में पानी का टैंकर नहीं आया है. इतना ही नहीं, इस गांव में औसतन सभी लोग करोड़पति हैं. साथ ही प्रति व्यक्ति यहां के लोगों की आय भी सर्वाधिक है. उसके बावजूद भी यहां के लोग बाहर से पानी नहीं खरीदते.
19970 के दशक से ही पानी की किल्लत का सामना कर रहा हीवरे बाज़ार एक वक्त था. जब यहां का जल स्तर सौ फीट से भी नीचे पहुंच गया था. हालांकि उसके बाद गांव के लोगों ने ही खुद इस स्तर को ऊपर लाने की मुहिम की शुरुवात की. गांव के लोगों ने मिलकर 1990 में एक ‘ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट कमेटी’ बनाई. इसके बाद यहां के लोगों ने पूरे गांव में कुंए खुदवाए, पेड़ लगाए. यही वजह रही कि, इस गांव को महाराष्ट्र एम्पलायमेंट गारंटी स्कीम के तहत फंड भी मिल पाया. जिससे पूरे गांव की तस्वीर ही बदल गई. गांव ने साल 1994 में अपने गांव को आर्दश ग्राम योजना से जोड़ दिया. इसके साथ ही कमेटी ने गांव में उन फसलों को बैन कर दिया. जिन्हें पानी की सबसे अधिक जरुरत होती थी. आज के वक्त में इस गांव में पानी की किल्लत को खत्म ही हो गई है. साथ ही यहां के जलस्तर 40 फीट पर है. पूरे गांव में आज के समय में 340 जीवित कुएं हैं. जिनमें पानी हमेशा भरा रहता है.
Odanthurai, Tamilnadu

ओडंथुराई गांव, तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के मेटटुपालयम तालुक की पंचायत में मौजूद ओडंथुराई एक ऐसा गांव है. जोकि पूरी तरह से आत्मनिर्भर है. देश के अनेकों गांवों कि विडंबना होती है कि, गांव में रोज़गार नहीं होता. जिससे पलायन बढ़ता है. यह गांव अपनी आत्मनिर्भरता के लिए पहचाना जाता है. यही वजह है कि, आज इस गांव में हर एक घर पक्का घर है. सभी घरों के ऊपर सोलर पैनल लगे हुए हैं. पूरे गांव में कॉन्क्रीट की सड़कें बनी हुई हैं. गांव के अनेकों स्थान पर लोगों के पानी पीने की व्यवस्था है. हर घर में शौचालय मौजूद है.
इन सबके पीछे की वजह यह है कि, ओडंथुराई ग्राम पंचायत बिजली बनाता है. बल्कि बनाता ही नहीं. उसे तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (टीएनईबी) को बेचता भी है. यही वजह है कि, इस गांव को सालाना 19 लाख से ज्यादा की कमाई होती है. यही वजह है कि, आज यह गांव पूरी तरह से आत्मनिर्भर है. साथ ही इस गांव को देखने की खातिर अब तक पूरी दुनिया से 43 देशों के छात्र यहां का माडल देखने आ चुके हैं. इसके अलावा विश्व बैंक के विशेषज्ञ तक इस गांव का दौरा कर चुके हैं.
यह सब तक संभव हो सका. जब आर. षणमुगम ने 1995 में इस गांव की डोर संभाली. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि, “एक वक्त था. जब बिजली का औसतन 2000 आता था. हालांकि गांव के विकास की खातिर जब कुएं बनवाए, स्ट्रीट लाइट लगवाई और सुविधाएं बढ़ाई तो बिल और बढ़ गया. इस दौरान मालूम चला कि, बायोगैस प्लांट से बिजली बन सकती है. इसलिए बड़ौदा जाकर मैंने इसकी ट्रेनिंग ली. फिर हमने 2003 में पहला गैस प्लाटं लगाया.
जिसके बिजली का बिल घट गया. फिर हमने पूरे गांव में सौर ऊर्जा से स्ट्रीट लाइट कनेक्ट की. और साल 2006 आते-आते हमने पवन चक्की लगाने की सोची. हालांकि पंचायत के पास महज़ 40 लाख का फंड था. जबकि इसका खर्चा 1.55 करोड़ रुपए था. मैंने पंचायत के नाम पर बैंक से लोन लिया. जिसे हमने 110 किमी दूर 350 किलोवॉट की पवनचक्की लगवाई. आज उसकी मदद से पूरा गांव बिजली के मालमे में आत्मिनिर्भर है.”
Chizami Hq Village

नागालैंड के फेक जिले का एक छोटा सा गांव है चिजामी. जहां की महिलाओं ने एक ऐसा आंदोलन तैयार किया. जहां महिला पुरुष को बराबर का दर्जा दिया जाए. जहां महिलाओं को मेहनत और पुरुषों की मेहनत को एक बराबर आंका जाता है. यही वजह है कि, चिजामी गांव में सभी को एक बराबर पैसे मिलते हैं.
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के अनुसार, जब पुरुष और महिला एक जैसा काम करें तो उन्हें भुगतान भी ठीक उसी तरह होना चाहिए. हालांकि साल 2017 में NSSO के सर्वे ने बताया था कि, आज भी देश में महिलाओं को खेती के लिए 22.24 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है. इसके अलावा अन्य जगहों पर 24.06 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है.
हालांकि चिजामी गांव की रहने वाली 74 साल कि, Tasetshulou Kapfo कहती हैं, “आज हम अपने हक के लिए लड़े और उसे हमने हासिल कर लिया. एक समय था, जब कैश सिस्टम नहीं था. तब पुरुष और महिला में समानता था. लेकिन कैश सिस्टम के बाद समानता खत्म हो गई. जबकि दोनों ही एक जैसा काम करते हैं. फिर भी भुगतान में अंतर दिखाई देता है. लेकिन आज पूरे गांव में इसे बदल दिया गया है. यहां पुरुष और महिला दोनों को एक जैसा समान अधिकार मिलता है.”