जिस दौर में लड़कियों का घर से निकलना ही बहुत बड़ी बात माना जाता था। उसी दौर में सरला ठकराल ने भारत की पहली महिला पायलट बनकर सबको हैरत में डाल दिया। जी हां, भारत की पहली महिला पायलट का खिताब पाने वाली सरला ठकराल ने ये सफलता सिर्फ 21 साल की उम्र में ही हासिल कर ली थी।
ये बात है साल 1936 की, जब सरला ठकराल ने अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए लाहौर हवाई अड्डे पर दो सीटों वाले जिप्सी मॉथ विमान को चलाया था, जिसके बाद चार साल की बेटी की मां होने के साथ-साथ सरला बन गई भारत की पहली महिला पायलट।
सरला तब 14 साल की रही होंगी, जब उन्होने 1929 में दिल्ली में खोले गए फ्लाइंग क्लब में विमान चलाने की ट्रेनिंग ली। इसी के साथ वो ‘A’ लाइसेंस पाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट भी बन गई। ट्रेनिंग के दौरान ही सरला की मुलाकात पी. डी. शर्मा से हुई थी। पी. डी शर्मा उस समय एक व्यावसायिक विमान चालक थे। मुलाकात के कुछ समय बाद ही विमान चालक पी. डी. शर्मा ने सरला से शादी कर ली।
शादी के बाद सरला के पति ने उनको विमान चलाने के लिए काफी प्रोत्साहित किया, और फिर क्या था, पति का प्रोत्साहन पाकर सरला भी चल पड़ी अपने पंखो को उड़ान देने। सरला ने जोधपुर फ्लाइंग क्लब में ट्रेनिंग ली। और फिर साल 1936 में सरला ने अपनी जिंदगी की पहली उड़ान भरी।
Sarla Thakral की जिंदगी में तुफान बनकर आया था साल 1939

लेकिन साल 1939 सरला के लिए तुफान साथ लेकर आया था। ऐसा लगा मानों किसी ने सरला के उड़ते पंख काट दिए हो। जहां एक ओर सरला कमर्शियल पायलेट लाइसेंस लेने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, तो वहीं दूसरी ओर दूसरा विश्व युद्ध छिड़ने के तैयारी में था। जिसके चलते फ्लाइंग क्लब बंद हो गया, और उन्हें अपनी ट्रेनिंग भी बीच में ही रोकनी पड़ी।
लेकिन इससे भी ज्यादा बुरी घटना तो तब हुई जब सरला ने इसी साल एक विमान दुर्घटना में अपने पति को खो दिया। पति की मौत के समय वह लाहौर में थी, और तब उनकी उम्र सिर्फ 24 साल की थी। इस हादसे के बाद सरला वापिस भारत आ गई, लेकिन जिंदगी की इन मुश्किलों के बावजूद भी सरला ने कभी हार नहीं मानी।
पति की मौत के सदमे से खुदको संभालते हुए सरला ने मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में दाख़िला ले लिया। जहां उन्होंने बंगाल स्कूल ऑफ पेंटिंग एंड फाइन आर्ट से डिप्लोमा भी किया। इसी बीच भारत के विभाजन के बाद सरला अपनी दो बेटियों के साथ दिल्ली आ गईं।
Sarla Thakral- आसान नहीं था महिला पायलट से लेकर आर्टिस्ट तक का सफर

दिल्ली आने के बाद सरला की जिंदगी को फिर से मंजिल मिल गई थी। क्योंकि यहां उनकी मुलाकात पी.पी.ठकराल के साथ हुई। और साल 1948 में दोनो ने शादी कर ली। ये सरला की जिंदगी की दूसरी पारी थी। लेकिन इस बार वो पायलट नहीं बल्कि सफल उद्धमी और पेंटर बनीं। वो कपड़े और ज्वैलरी डिजाइन करने लगी थी। आज के वक्त में जहां नौजवान छोटी-छोटी बातों को लेकर आत्महत्या तक पहुंच जाते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ सरला ठकराल की जिंदगी में इतनी मुश्किले के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। सरला ने कभी अपनी जिंदगी को घर की चार दिवारी तक ही सीमित नहीं रखा। वो बाहर निकली और लोगों की सोच बदलने की कोशिश में भारत की पहली महिला पायलट बन गई। उनका पहली भारतीय महिला पायलट बनने से लेकर आर्ट सीखने तक का सफर हर महिला को प्रेरित करता है।
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