संथारा- एक ऐसी प्रथा जो देती है अपनी मौत का हक

आत्महत्या को लेकर हमारे देश में कई कानून बनाए गए हैं। कानूनी तौर पर खुदकुशी करना जुर्म माना जाता है। लेकिन जैन धर्म में एक ऐसी प्रथा का चलन हैं। जिसमें लोगों को उनकी मौत का हक दिया जाता है। उम्रदराज या किसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहा इंसान चाहें तो एक वक्त पर अपना शरीर त्याग सकता है। लेकिन ये त्याग इतना आसान नहीं होता.. आत्महत्या या खुदकुशी की तरह इसमें कुछ मिनटों में ही मौत नहीं मिलती। मनुष्य को धीरे-धीरे अपने शरीर का त्याग करना होता है।

जैन समुदाय में प्रचिलित इस परंपरा को संथारा या सल्लेखना कहा जाता है। कई लोगों द्वारा इसे समाधि मृत्यु या सन्यास मरण के नाम से भी जाना जाता है। सल्लेखना का शाब्दिक अर्थ होता है अच्छी तरह क्षीण करना, क्षीण यानी कि शरीर से कमजोर हो जाना। जैन समुदाय में संथारा का चलन हजारों सालों से चला आ रहा है।

संथारा

दूसरी शताब्दी में आचार्य समंतभद्र के लिखे हुए ‘रत्नकरंड श्रावकाचार’ ग्रंथ में सल्लेखना का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि संथारा एक तरह का संकल्प है जिसे केवल वो व्यक्ति ही ले सकते हैं जो अपनी जिंदगी पूरी कर चुके हैं और उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया है, या फिर कोई लाइलाज बीमारी की जकड़ में हों तो वो संथारा ले सकता है।

समाज की नजरों में बढ़ता है संथारा लेने वाले व्यक्ति का दर्जा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गृहस्थ के अलावा संत या मुनि भी संथारा का संकल्प ले सकते हैं और केवल धर्मगुरू ही किसी व्यक्ति को संथारा लेने की इजाजत दे सकते हैं। धर्मगुरू की इजाजत के बाद व्यक्ति अन्न का त्याग कर देता है और अपनी मृत्यु तक उपवास करता है। इस दौरान उसके आस-पास धर्मग्रंथ का पाठ और प्रवचन होता है। समाधि मरण करने वाले व्यक्ति से मिलने कई लोग आते हैं और उनका आशिर्वाद लेते हैं।

मृत्यु के बाद व्यक्ति के पार्थिव शरीर को पद्मासन पर बैठाकर जुलूस निकाला जाता है। एक खास धार्मिक आदेश हैं कि, समाधि मृत्यु प्राप्त करने वाले व्यक्ति की मौत पर दुख करने की बजाय खुशी मनानी चाहिए क्योंकि संथारा लेने वाले व्यक्ति का दर्जा जैन समाज में काफी ऊंचा माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, संथारा लेने वाला व्यक्ति सारी मोह माया को त्याग कर मोक्ष प्राप्ति की ओर अपना कदम बढ़ाता है जो किसी साधारण मनुष्य के लिए आसान नहीं है।

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जैन धर्म को मानने वाले न्यायमूर्ति टी. के. तुकोल की लिखी किताब ‘संलेखना इज़ नॉट सुसाइड’ में कहा गया है कि संथारा का उद्देश्य आत्मशुद्धि है। इसमें संथारा लेने वाले व्यक्ति का व्यवहार कैसा होना चाहिए उसके बारे में भी बताया गया है। इसमें कहा गया है कि, जो व्यक्ति संकल्प लेता है उसे साफ मन और बुरी भावनाएं छोड़कर, अपनी सभी गलतियां माननी चाहिए साथ ही सबकी गलतियों को भी सच्चे मन से भूलकर माफ कर देना चाहिए।

जैन समुदाय के लोगों के लिए संथारा एक धार्मिक आस्था है। लेकिन कई लोग आज इसका विरोध करते देखे जा सकते हैं। विरोध करने वाले इसे आत्महत्या का ही स्वरूप बताते हैं। लोगों का कहना है कि संथारा हमेशा स्वैच्छिक नहीं होता है।

कई मामलों में बुजुर्ग घर की आर्थिक स्थितियों को देखते हुए दबाव में संथारा का ऐलान कर देते हैं, तो वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि संथारा लेने के बाद व्यक्ति भूख प्यास बर्दाश्त नहीं कर पाता और संकल्प तोड़ना चाहता है, लेकिन धार्मिक व्यक्तियों और परिजनों के दबाव में उन्हें ऐसा नहीं करने दिया जाता है। हालांकि, जैन शास्त्रों के अनुसार, सल्लेखना करने वाला व्यक्ति चाहें तो अपना फैसला बदल सकता है और कभी भी संकल्प तोड़ सकता है।

संथारा

संथारा और आत्महत्या में अंतर

संथारा और आत्महत्या में अंतर स्पष्ट करने के लिए जैन मुनियों का कहना है कि आत्महत्या हमेशा निराशा, परेशानी और तनाव की स्थिति में की जाती है। लेकिन इसके बिल्कुल विपरित संथारा का फैसला करने वाला व्यक्ति शांत पलों में खुशी से अपने शरीर को त्याग करता है।

इस प्रथा के विरोध में साल 2006 में निखिल सोनी नाम के एक व्यक्ति ने राजस्थान हाईकोर्ट में एक याचिका डाली थी। जिसमें उन्होंने लिखा था कि संथारा भी सती प्रथा जैसी ही है। यदि सती होना आत्महत्या है तो संथारा क्यों नहीं?

इस जनहित याचिका पर साल 2015 में अपना फैसला लेते हुए न्यायाधीश सुनील अम्बवानी ने प्रथा को गैरकानूनी बताते हुए इसके चलन पर रोक लगा दी थी। हाई कोर्ट के इस फैसले के तहत संथारा लेने के लिए प्रेरित या सहायता करने वाले व्यक्ति को भारतीय दंड सहिंता की धारा 306 के तहत दोषी माना जाएगा।

इस फैसले के बाद जैन धर्म के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया और हाईकोर्ट के इस फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और आखिर में सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को स्थगित करते हुए संथारा की प्रथा को जारी रखने की अनुमति दे दी।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुंबई और मुंबई उपनगर में संथारा लेने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। जबकि, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में जैन समुदाय बड़े पैमाने में रहता है। यहां भी कई लोग हर साल संथारा लेते हैं। सिर्फ जैन धर्म में ही नहीं बल्कि, इसी तरह हर धर्म में कई ऐसी प्रथाएं हैं जिनको जानकर आपको हैरानी हो सकती है। जिनके बारे में हम आपको बताएंगे किसी और आर्टिकल में।

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