ओहो भाईसाहब काली है, छोटी है, नाटी है, इतनी लम्बी है, शादी कौन करेगा इससे, ऐसे कपड़े मत पहनो, बाहर मत जाओ, जाओ, तो जल्दी आ जाओ, ज्यादा सपने मत देखो, अपनी शक्ल देखी है आइने में, ये वो कमेंट हैं, जो अक्सर हर उस लड़की को सुनने पड़ते हैं, जो समाज के ‘रंग-रूप’ के बॉक्स में फ़िट नहीं बैठती. क्या आपको लगता है कभी आपका रंग-रूप, कद-काठी समाज मे आपकी जगह को तय करता है। आपके करियर या सपनों को पूरा करने में सबसे बड़ी परेशानी बनता है। अफसोस, क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता हैं. लेकिन आपको इन सब से कभी हार नही माननी चाहिए.
संगीता घारू काली होने के बाद भी ग्लैमर वर्ल्ड की फेमस मॉडल है।

समाज के ऐसे ही ताने 23 साल की संगीता घारू ने भी झेले थे. मगर लोगों की ये बातें भी उनके आत्मविश्वास को कम नहीं कर पाईं और आज वो एक सफल मॉडल हैं. तो जनाब… जरा अब आप लोग भी निकलिए इस स्टीरियो टाइप सोच से. उस ब्यूटी क्रीम के बेकार से ऐड से निकल कर झाकिये अपने आस-पास और देखिये संगीता जैसे लोगो को. सीखिए उनसे जिन्दगी को जीने का नुस्खा.
संगीता इस रंग-रूप के भेदभाव को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. वो कहती हैं कि वो अपने रंग को लेकर बिल्कुल कोई परवाहा नही करती हैं और दूसरों को भी इसकी परवाहा नही करने देगी। वो खुद को ”डार्क और डेडली” कहना पसंद करती हैं. उनका मानना कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने का जूनून है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं.
Sangeeta Gharu खुद को डार्क और डेडली कहना पसंद करती हैं

संगीता जोधपुर के मारवाड़ी परिवार से हैं. उनके पिता इंडियन एयरफोर्स में शेफ हैं. उनके पिता चाहते थे कि बिटीयां आर्मी अफसर बने. लेकिन करियर को लेकर संगीता के कुछ अलग ही प्लान थे. जब वो क्लास 8 में पहुंचीं, तब तक उन्होंने तय कर लिया था कि वो मॉडल ही बनेंगी.
कॉलेज में उन्हें पढ़ाई और फैशन शो के बीच किसी एक को तवज्जो देने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. बाद में उन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जाकर जयपुर में प्रोफेशनल मॉडलिंग करने का फैसला लिया.
आज संगीता एक कामयाब मॉडल हैं. वो 30 से ज्यादा लेबल के लिए रैंपवॉक कर चुकी है पर उनका राजस्थान से रैंप तक का सफर आसान नहीं था.संगीता ने जो परिवार के खिलाफ जा कर फैसला लिया. उनके इस फैसले से नाराज होकर पिता ने कई महीनों तक उनसे बात नहीं की. उन्होंने सब कुछ अकेले संभाला.. वो कहती हैं, ‘मेरे रंग की वजह से कई चीजें मुश्किल हो गई थीं. मुझे आसानी से इंडस्ट्री में स्वीकार नहीं किया गया था. क्योंकि मैं काली थी. मेरे साथ जिन लड़कियों ने ऑडिशन दिया, उनको आसानी से काम मिल रहे थे. लैक्मे फैशन वीक में एक स्टाइलिस्ट ने मुझे रैंप पर चलने नहीं दिया था. उसने एक और शो में भी यही किया था. इससे साफ था कि मुझे रैंप पर नहीं जाने दिया जा रहा था, क्योंकि मै काली हूँ.’ संगीता को मेकअप करना पसंद है पर फेयरनेस क्रीम में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वो आसानी से अपने आप को किसी भी ग्लैमरस लुक में ढाल सकती हैं.
हमारे स्कूलों में बच्चों को किताबी पढ़ाई के साथ-साथ उनकी सोच को डेवलप करने की जरूरत है. नैतिक शिक्षा सिर्फ सफाई और दया की ही नहीं होनी चाहिए. बच्चों को सिखाना चाहिए कि वो किसी के रंग और बनावट को देखकर उसके बारे में राय ना बनाएं. ये उम्र के इसी पड़ाव पर हो सकता है कि उनकी सोच को बदल कर उन्हें अच्छा इंसान बनाया जाए। खैर इतने लम्बे संघर्ष के बाद संगीता सफल मॉडल हैं और अब परिवार भी उनके साथ है. वो चाहे जैसी भी हों, उन्हें खुद पर नाज है. उनका कहना हैं कि अगर आप अंदर से सुन्दर हों, तो बाहर से कोई फर्क नहीं पड़ता.
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