प्लास्टिक बैन! एक नया कार्यक्रम है जिसे जल्द हमारे देश की मोदी सरकार लागू करने वाली है। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी तो बड़े डिसीजन लेने की मशीन बन गए हैं। बहरहाल सरकार का नया फैसला जो प्लास्टिक बैन का है, महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर से यह लागू हो जाएगा। कहा जा रहा है कि सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से बैन लगाने जा रही है।
सरकार का यह फैसला वाह-वाही बटोर रहा है। सरकार के अपने दल के लोंगो के अलावा सरकार के विरोधी से लेकर, वे लोग भी इस फैसले के बारे में वाह-वाही कर रहे हैं जिनका तालुक्क सरकार से नहीं है या फिर जो सरकार और पॉलिटिकल गतिविधियों में ज्यादा इंट्रेस्ट नहीं रखते हैं। क्यों कि मामला एन्वायरमेंट से जुड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी के एन्वायरमेंट के प्रति लगाव को हम उनके कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय भाषणों में सुन चुके हैं। वे कई बार सिंगल यूज प्लास्टिक बैन के बारे में बात भी कह चुके हैं। हाल ही में ग्रेटर नोएडा में United Nations Conference on Desertification को संबोधित करते हुए कहा कि अब भारत सिंगल यूज प्लास्टिक को गुडबाय कहने जा रहा है।
सरकार के इस कदम को लेकर माना जा रहा है, वातावरण की रक्षा के लिहाज से यह बेहद जरूरी था। ऐसा पहली बार है कि पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगेगा। हालांकि देश के कई राज्यों ने यह काम किया है। भारत के 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक पूरी तरह से बैन है वही 5 में यह आधे रुप से। यह देखने से लगता है कि केन्द्र सरकार ने सही फैसला लिया है। लेकिन क्या सच में इस समय में यह फैसला लेना सही है? अगर यह फैसला लिया जाता है तो क्या असर देखने को मिलेगा? ऐसे कई सवाल हैं।
Plastic ban: सरकार एक बार में बैन नहीं लगाएगी
प्रधानमंत्री के भाषण के बारे में बताते हुए केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि ऐसा नहीं है कि 2 अक्टूबर से प्लास्टिक एकदम से बैन हो जाएगा। उन्होंने कहा है कि सरकार का लक्ष्य 2022 तक भारत को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति दिलानी है। ऐसे में सरकार सबसे पहले उन प्लास्टिकों को सही निपटारा करेगी जिसको कलेक्ट किया नहीं जा सका है, जो करीब 10000 टन है। वहीं उधर रामविलास पासवान बोलत बंद प्लास्टिक के लिए एक अलग विकल्प निकाला जाए। ऐसे में प्लास्टिक बोतल में पानी बेचने वाली कंपनियां सकते में हैं। मोदी सरकार सिर्फ प्लास्टिक बैग बंद करने की बात नहीं कर रही बल्कि यह इससे आगे कप, प्लेट और कई अन्य प्लास्टिक प्रोडक्टस को भी बैन करने की सोच रही है।
Plastic ban: क्या विकल्प है?
1957 में भारत में प्लास्टिक इंडस्ट्री के आई और इसके बाद कामयाबी के कई आयामों पर यह इंडस्ट्री पहुंची। आज भारत में प्लास्टिक के की खपत बढ़ बहुत तेजी से बढ़ रही है। हमारे देश की प्लास्टिक इंडस्ट्रीयों में सबसे ज्यादा लघु उद्योग वाली कंपनियां हैं, जो इस पूरी इंडस्ट्री का 50 फीसद से ज्यादा टर्नओवर देती हैं। वहीं ये लघु इंडस्ट्रियां देश के करीब 0.4 मिलियन लोगों को राजगार देती हैं। 2015 के एक डाटा के अनुसार इस इंडस्ट्री में डायरेक्ट और इनडायरेक्ट रुप से 5 मिलियन लोंगो का रोजगार जुड़ा है। ऐसे में प्लास्टिक बैन के लिए देश क्या तैयार है? यह बड़ा सवाल है।
खाने तक में है प्लास्टिक!
भारत में सबसे ज्यादा खपत प्लास्टिक बैग का है। प्लास्टिक बैग दो अलग-अलग प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं पैदा करते हैं। ये व्यावहारिक रूप से गैर-बायोडिग्रेडेबल हैं इस पर लोग ध्यान नही देते और ये आम तौर पर सड़कों पर या गढ्ढ़ो में, नालों में या पानी के स्त्रोतो में फेंक दिए जाते हैं। जिसके कारण आज यह हमारे खाने में भी घुल गया है। एक शोध के अनुसार दुनिया में कही भी रहने वाला व्यक्ति एक साल में 39,000 से 52,000 माइक्रोप्लास्टिक कणों को न चाहते हुए भी खा रहा है। वहीं इसके आलावा सांस के द्वारा 74,000 माइक्रोप्लास्टिक कण वो अंदर लेता है।
इसके आलावा भारत में प्लास्टिक कचरा सबसे बड़ी दिक्कत है। हमारे शहरों और गांवों में पर्याप्त कचरा निपटान प्रणाली नहीं है। अगर आप कभी ट्रेन से या रोड से भी एक लंबी सफर पर निकलें तो आपको प्लास्टिक के कचरों के ढ़ेर हर घनी आबादी के करीब मिल जाएगी। लेकिन इसके बाद भी प्लास्टिक बैग की मांग बढ़ रही है। क्यों कि यह सस्ता है। कई राज्यों में जहां प्लास्टिक बैग पर बैन लगा वहां पेपर बैग या जूट बैग का चलन चलाया गया लेकिन ग्राहकों को इसके बदले 5 से 10 रुपये तक अतिरिक्त देना पड़ता है।
Plastic ban: क्या प्लास्टिक के विकल्प से पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा?
प्लास्टिक बैग के बदले पेपर बैग या जूट बैग का चलन चलाया महंगा तो है कि इसके अलावे इसका उपयोग भी एक तरह से पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। एक शोध की मानें तो प्लास्टिक जितना पर्यावरण में मौजूद है उस स्तर तक जाने के लिए एक पेपर बैग को 45 बार यूज करना होगा। वहीं जूट बैग को 7100 बार यूज करना होगा। लेकिन इसमें भी हम पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाएंगे। कई लाख पेड़ जिन्हें इन विकल्पों को बनाने के में लिया जाएगा वहीं जो पानी और ऊर्जा लगेगी वो वायुमंडल को और प्रभावित करेगी।
Plastic ban: साइंटिफिक स्टडी की जरूरत
ऐसें में यह जरूरी है कि नेशन वाइड प्लास्टिक बैन से पहले इसके एक बेहतर और संसटेनेबल विकल्प को तैयार करने के लिए साइंटिफिक स्टडी जरूर होनी चाहिए, जिससे पता चलें कि इस बैन का असर क्या होगा और होने वाले इंपेक्ट से हम किस प्रकार से निपट सकते है। प्रतिबंध के कारण प्लास्टिक उद्योग में मौजूदा निवेश, मशीनरी, व्यापार प्रक्रियाओं और नौकरियों का एक बड़ा हिस्से पर असर होगा। व्यवसाय अपने अपनी मशीनरी बदलेंगे जिसके लिए अतिरिक्त लागत लगेगी।
ऐसे में छोटे उद्योगों को हानि होगा। वो भी ऐसे समय में जब हम इकोनॉमिक स्लो डाउंन से गुजर रहे हैं। वहीं अगर सिंगल यूज प्लास्टिक बैन होता है तो कम लागत में दूध, प्लास्टिक की थैलियों, बिस्किट से लेकर टॉयलेटरी पाउच तक आम आदमी तक सस्ते में नहीं पहुंच सकेगा। पैकेजिंग की लागत में कोई वृद्धि गरीबों के डिस्पोजेबल आय को सीधे प्रभावित करेगी।
Plastic ban: क्या होना चाहिए..?
ऐसे में सरकार को चाहिए की प्लास्टिक को एकाएक बंद करने के बजाए इसे धीरे—धीरे खत्म करें। इस समय में सरकार प्लास्टिक कचरे का बेटर ट्रीटमेंट कर सकेगी। भारत के सामाज में रीयूज करने की एक परंपरा है, सरकार रीयूज करने की घरेलू तरीकों को बढ़ावा दे सकती है। प्लास्टिक बैग को कचड़े में फेंकने के बजाए लोग इसे तक तक रीयूज करने की सोचें जब तक इसकी लाइफ खत्म नहीं होती। अगर यह प्रोसेस थोड़ा धीरे हुआ तो बेशक एक बेहतर विकल्प के साथ हम प्लास्टिक को उपयोग से बाहर कर सकेंगे। लेकिन इसके लिए थोड़ा समय तो लगेगा।