पॉल्यूशन मतलब प्रदूषण, आधुनिक युग की सबसे बड़ी अगर कोई प्रॉब्लम है तो यह प्रदूषण ही है। इसके कई प्रकार हैं, जैसे एयर, वॉटर और लैण्ड और अब स्पेस भी, हमने सब कुछ गंदा कर दिया है और अपने द्वारा फैलाई इसी गंदगी को हम दुनियावाले नाम देते हैं पॉल्यूशन। प्रदूषण, चाहें किसी भी तरह का हो यह सही नहीं है। इसमें भी जब बात एयर पॉल्यूशन की आती है तब तो हमें और सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि किसी भी तरह का पॉल्यूशन अंतत: हमारी प्राणवायु को ही खत्म करता है। अब हमारे देश की राजधानी दिल्ली की ही बात कर लेते हैं। यहां 10.9 मिलियन गाड़ियां हैं और इनमें भी 7 मिलियन टू व्हीलर्स हैं। दिल्ली की जनसंख्या ही तरह वाहनों की संख्या भी पिछले कुछ सालों में बढ़ी है। तभी तो हमारी दिल्ली का यह हाल हो गया है कि, हर दम यहां की एयर क्वालिटी पीएम 2.5 पर ही रहती है। यानि दिल्ली की जो नॉर्मल हवा है उसमें सांस लेना 11 सिगरेट पीने के बराबर है। इसीलिए दिल्ली दुनिया की सबसे ज्यादा पॉल्यूटेड सिटी में नंबर एक के पायदान पर रहता है।
लेकिन यह हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है। दिल्ली के अलावा देश के अन्य बड़े शहर जैसे कि पटना, मुंबई, कोलकाता, प्रयागराज आदि की एयर क्वालिटी भी दिल्ली जैसी ही है। मतलब हमारे देश में जितनी तेजी से हवा खराब हो रही हैं उससे तो यही लगता है कि, वो दिन दूर नहीं जब हर भारतवासी नकाबपोश या मास्कपोश बनकर ही घूमता दिखेगा। खुली हवा में सांस लेना एक कहानी बन जाएगी। खैर मास्क से याद आया कि, नकाबपोश या मास्कपोश होना कोई पसंद तो नहीं ही करता होगा। लेकिन मजबूरी है क्योंकि पॉल्यूशन वाले हमारे शहरों में खुली हवा में सांस लेने जैसी कोई चीज है नहीं.. तो खुली नाक के साथ घूमना कैसे पॉसिब्ल है। लेकिन नाक के छेद तो छोटे होते हैं इसके लिए आधा चेहरा ढ़कने की क्या जरूरत है? कह तो आप भी रहे होंगे कि, बात तो सही है। लेकिन मास्क के अलावा कोई दूसरा उपाय क्या है? आपके इसी सवाल के जवाब में स्टार्ट-अप और इनोवेशन की दुनिया में अब पॉल्यूशन से बचने के लिए बड़े मास्क का रिप्लेसमेंट आ गया है। यह कमाल किया है दिल्ली आईआईटी के छात्रों ने।

अब मास्क नहीं Nosofilter लगाइए
मास्क के रिप्लेसमेंट में अब हमारे पास मार्केट में एक नया प्रोडक्ट है जिसे नाम दिया गया है नोसोफिल्टर। नाम के अनुसार ही इसका काम है। इसे बस नाक के दोनो छेदों पर लगाना है और फिर खुली हवा में निकल जाना है। जहां घूमना चाहते हैं घूमिए। पॉल्यूशन आपका नाक के छेद के पास तो आएगा लेकिन अंदर नहीं जा पाएगा क्योंकि नोसोफिल्टर्स इन्हें बाहर ही रोक देगा और आपको मिलेगी एकदम साफ और शुद्ध हवा। बाहर कितना भी पॉल्यूशन हो आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। साथ ही आप अपने लुक को लेकर भी सारी चिंताएं भूल जाएंगे।
नोसोफिल्टर के बारे में इतना कुछ जानने के बाद अब कई सारे सवाल आपके मन में होंगे कि, यह कैसा दिखता है। काम कैसे करता है, बनाया किसने, इसके बनने की कहानी क्या है? तो आपको यह सब हम बताएंगे लेकिन सबसे पहले आपके पैसे वाली जिज्ञासा को शांत करते हैं। दरअसल आप ये प्रोडक्ट अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जेसी ऑनलाइन शॉपिंग एप्स से भी ऑर्डर कर सकते हैं और दाम आपकी जेब के अनुकूल ही है।
Nosofilter के बनने की कहानी
नोसोफिल्टर नैनो फाइबर नाम की तकनीक का गजब कारनामा है। जिसे दिल्ली आईआईटी के स्टूडेंट रहे प्रतीक शर्मा ने डेवलप किया है। उनकी स्टार्टअप ‘नैनोक्लीन’ ने इस नोसोफिल्टर को मार्केट में उतारा है। इसकी खासियत यह है कि, यह न तो आपके नाक के अंदर जाता है न ही आपके पूरे चेहरे को ढ़कता है। यह बस आपकी नाक पर चिपकता है और जो सांस आप लेते हैं उसमें से पॉल्यूटेंट को छान देता है और प्योर एयर को आपके फेफड़ों में भेजता है। एक इंटरव्यू में प्रतीक बताते हैं कि, वे बीकानेर से आते हैं, जहां सेंड डस्ट एक रोजमर्रा की चीज हैं। नोसोफिल्टर बनाने के लेकर आइडिया के बारे में वे बताते हैं कि, उनकी मां एक अस्थमा मरीज है और उनकों धूल—धक्कड़ की दिक्कत हमेशा रही है। वहीं से नोसोफिल्टर जैसी चीज़ को बनाने का आइडिया आया।

आईआईटी दिल्ली में अपने कुछ दोस्तों के संग मिलकर प्रतीक ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया। इसी बीच उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ टेक्सटाइल एंड फाइबर इंजीनियरिंग के प्रोफेसर अश्विनी कुमार अग्रवाल की मदद नैनो फाइबर के लिए ली। प्रोफेसर अग्रवाल इस फिल्टर के बारे में बताते हैं कि, जब हम इसे डेवलप कर रहे थे तो एयर रेजिस्टेंस बहुत ज्यादा आ रहा था। ऐसे में हमने नैनो फाइबर तकनीक का इस्तेमाल किया। जिसमें हमने एक ही जगह पर कई ऐसे छेद किए जिसमें से हवा तो चली जाए लेकिन पॉल्यूशन पार्टिकल्स नहीं। वे बताते हैं कि, इस प्रोडक्टस में जो मेटेरियल हैं वो बायों कम्पैटेबल हैं, ऐसे में यह अगर शरीर में चला भी जाता है तो कोई नुकसान नहीं होता।
प्रतीक की कंपनी ‘नैनोक्लीन’ ने सिर्फ नाक के लिए ही नैनो फिल्टर डेवलप नहीं किया है। नाक के अलावा एक और अजूबा सा फिल्टर इनके पास है। इस फिल्टर को बस अपने घर के एयर कंडीशनर यानि की एसी में लगा देना है। फिर आपका एसी एक और एक्स्ट्रा काम करेगा और वो काम होगा एयर प्यूरीफायर का। प्रतीक ने अपने इन प्रोडक्टस को दुनिया के 118 देशों में पेटेंट करवाया हुआ है। यानि यह नोसोफिल्टर एकदम देसी इनोवेशन है। साथ ही यह इनोवेशन यह भी बताता है कि, नैनोफाइबर तकनीक के क्षेत्र में भारत की क्षमता यूएस, जापान, साउथ कोरिया से कम नहीं है। यह भारत में एक नया क्षेत्र है जिसमें यहां के इनोवेटर्स भी कई नए और शानदार इन्वेंशन्स कर रहे हैं।