सेलफोन, मतलब मोबाइल, इसे मोबाइल शायद इसलिए कहते हैं क्योंकि आज हम जहां जाते हैं यह वहां हमारे पॉकेट में हमारे संग यह जाती हैं और वहां भी जहां आप सबसे ज्यादा समय खुद के संग कभी बिताते थे, मतलब वॉशरूम। खैर मोबाइल का जमाना बड़ी तेजी से बदला है, कहां कभी कीपैड सेट का जमाना था और कहां अब तो यह सोचना भी पाप लगता है कि, सेलफोन बिना टच स्क्रीन वाले भी होते हैं। खैर मोबाइल का मार्केट ऐसा है कि हर दूसरे दिन मार्केट में एक नया फोन नए फीचर्स के संग आपके हाथ में या जेब में रखे फोन से भी कम दाम में लांच हो जाता है और टीवी पर, यूट्यूब पर और अन्य सोशल मीडिया पर उसका एड आपको यह फील कराने लगता है कि ये नया फोन नहीं खरीदा तो फिर क्या किया, तुम्हारी जिंदगी तो बेकार है!
बस इतना सा जैसे ही फील होता है और हम दौड़ पड़ते हैं उस मोबाइल को खरीदने के रास्ते पर, जैसे वो ही हमारी मंजिल हो, वो मिल गया तो सक्सेस मिल गई और फिर इसी कड़ी में हम अपना पुराना मोबाइल बेचते हैं, इधर—उधर से बाकी बचे पैसों का जुगाड़ करते हैं और पहुंच जाते हैं मोबाइल की शॉप पर वो नए फीचर वाला मोबाइल खरीदने। फिर क्या….? फिर वही होता है जो पहले हुआ होता है, घर पहुंचते ही टीवी पर फिर एक नया एड और फिर अंदर एक नई चुल कि, भाई ये वाला मोबाइल तो खरीदना ही हैं!

पता है कि, इतना पढ़ कर आपके मुख पर एक हंसी-सी आ गई होगी क्योंकि ऐसी वाली चुल आज की युवा पीढ़ी के हर युवा में जरूर मचती है। लेकिन मोबाइल यूज करने का यह क्रेज कहां तक जा सकता है? क्या कोई मोबाइल को लेकर अपने अंदर की चुल से कोई रिकॉर्ड बना सकता है? कई सोचेंगे कि, आइडिया तो बहुत अच्छा है। लेकिन वैसे बता दें कि, यह हमारा आइडिया नहीं है, हम तो यह आर्टिकल इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि, एक महाशय हैं जिन्होंने अपने अंदर मोबाइल यूज करने की चुल को लेकर कुछ ऐसा किया कि, रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड कायम कर दिए हैं। हम जिन महोदय का जिक्र कर रहे हैं वो रहते मुंबई के थाने में हैं और उनका नाम है मिस्टर जयेश काले।
Jayesh Kale नोकिया वाले और नोकिया कहकर चिढ़ाने लगे थे लोग
वैसे जयेश काले के अंदर किसी भी फोन को यूज करने की चुल नहीं हैं, वो एक खास ब्रांड का फोन यूज करते हैं जिससे हम सब लोग परीचित हैं। उनके पास इस कंपनी के इतने फोन हैं कि, लोग उन्हें इसी कंपनी के नाम से बुलाते हैं। कोई उन्हें ‘नोकिया’ कहता है, तो कोई ‘जयेश काले नोकिया वाले’ कहकर भी बुलाता है। लेकिन वे इन बातों से चिढ़ते नहीं बल्कि वे इसे एक कांम्पलीमेंट के रुप में लेते हैं।
नोकिया फोन्स को लेकर हम कोई एड नहीं कर रहे यह बात पहले ही साफ कर दें, वैसे आपको पता ही होगा कि, जब बात नेाकिया फोन्स की आती है और उसमें भी बात अगर उसके कीपैड जमाने वाले फोन्स की हो तो, एक चीज़ उसके साथ जुड़ी होती है और वो है अमरता वाला वरदान! जी हां, उस जमाने में नोकिया मोबाइल फोन्स के बारे में तो लोग कहते थे कि इसको तो भगवान से अमरता का वरदान मिला हुआ हुआ। शायद ही कोई भारतीय मोबाइल यूजर हो जिसने नोकिया की अमरता का प्रमाण अपने आंखो से न देखा हो। मतलब कहीं से भी फेंक दो, कितनी भी ऊंचाई से गिरा दो मजाल है कि फोन का बाल भी बाका हो सके। कहीं कहीं तो लोग मजाक में कहते थे कि, मोबाइल से मारकर कपार फोड़ देंगे, मतलब मजबूती ऐसी थी कि, सामने वाले का सिर फूट जाए मगर मोबाइल न टूटे। नोकिया का यहीं प्रमाण अपनी आंखों से काले ने भी देखा था।
Jayesh kale ने सिर्फ Nokia ही क्यों चुना
वे बताते हैं कि, कॉलेज टाइम की बात थी, उनके पास उस समय नेाकिया का 3310 मोबाइल था। एक समय वे थर्ड फ्लोर पर अपने दोस्त के संग खड़े थे, इसी दौरान थोड़ा सा धक्का लगा और फोन नीचे गिर गया। जान हलक पर लिए, भागते हुए, सीढ़ियों से फटाफट उतरते हुए…काले अपनी प्यारी नोकिया 3310 के पास पहुंचते हैं। दिमाग में एक द्वंद चल रहा था कि, मोबाइल ठीक होगा या नहीं, मन हार गया था कि, अब तो नया मोबाइल ही खरीदना पड़ेगा, अफसोस हो रहा था कि, अभी तो नया लिया था। इन सभी सवालों के बीच आखिरकार जयेश ने मोबाइल को उठाते हुए उसका रेड वाला बटन जोर से दबाया और दबाए रखा, जितना टाइम लग रहा था मन में उतनी ही हलचल मच रही थी, मन कह रहा था ना बेटा अब ये न खुलेगा और जुबान से निकल रहा था, खुल जा प्लीज खुल जा, और जैसे ही मोबाइल में हरी लाइट जली चेहरे पर एक रौनक सी आ गई, ऐसा लगा कि, जैसे खोई हुई चीज मिल गई, कोई बहुत दूर गया अपना वापस लौट आया।
फिर क्या था इस घटना ने जयेश को नोकिया के ऊपर इतना विश्वास करने पर मजबूर कर दिया कि, वो नोकिया का हर फोन खरीद कर अपने पास रखने लगे। आज आलम यह है कि उनके पास करीब 2 हजार से ज्यादा फोन हैं और यह सब नोकिया के अलग—अलग मॉडल हैं। इसमें आम कॉलिंग फोन्स है तो वहीं सेटेलाइट फोन्स भी हैं। उनके पास के मोबाइल का स्टोरेज इतना बढ़ गया है कि आज उनके घर में जगह नहीं बची है कि, वो इन मोबाइल्स को रख सकें! जयेश की पत्नी उनकी शिकायत करते हुए कहती हैं कि, मेरे कर्बड तक में इनके मोबाइल्स का कब्जा हैं। जयेश ने तो अपने कार के अंदर तक मोबाइल का तांता लगा कर रखा है। इसके कारण उनको बहुत बार बहुत सी दिक्तते हुईं हैं, जैसे कि, मॉल वगैरा में कार पार्किंग में दिक्कत हो जाती। जयेश बताते हैं कि मेरे पास सेटेलाइट फोन क्यों है इसको लेकर भी दिक्कत हुई है। कई बार कस्टम के लोगों से भी इसी कारण भेट—मुलाकात हो गई है। लेकिन बाद में जयेश ने उन लोगों को इस बारे में समझा दिया और इस समय तक जयेश का नाम लिम्का बुक में छप गया था इसलिए ज्यादा कोई दिक्कत नहीं हुई। क्रेज होना या अंदर किसी चीज़ को लेकर चुल मचना भी बड़ी अजीब चीज होती हैं। लेकिन अगर अंदर मचने वाली चुल अच्छे काम से जुड़ी हो तो उसको पूरा जरूर करना चाहिए और दुनिया तो यूनिक लोगों का स्वागत करती है। तो भाई जयेश आपका ये क्रेज सच में बिल्कुल यूनिक है, रीयल में आपके जैसा शायद ही कोई मोबाइल मैन दूसरा हो।