Naval Daga, जिन्होंने पर्यावरण को बचाने को खपा दिए 42 साल

रामायण में श्रीराम ने कहा था कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। जब राम ने यह बात कही थी तो इसके प्रति इंसानों के कर्तव्यों का भी जिक्र किया था। लेकिन वक्त के साथ-साथ इंसानों ने प्रकृति यानी की यह धरती जहां हम रहते हैं, जो हमारी जननी है उसका दोहन शुरू कर दिया। इंसान उस मूर्ख की तरह हो गया है जो उसी डाल को काट रहा होता है, जिस पर वह बैठा है। हाल ही में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे ने लोगों को डाल काटने वाली बात का एहसास तो कराया है, लेकिन अभी भी लोग इसे लेकर सजग नहीं हैं। लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे लोग हैं जो धरती के महत्व को जानते हैं और इसे बचाने के साथ—साथ लोगों में भी इसके लिए जागरूकता पैदा कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जयपुर के रहने वाले नवल डागा। जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी “मदर नेचर” के नाम कर दी है।  

अंधाधुंध विकास की होड़ में इंसानों ने पर्यावरण का दोहन तो किया ही है, लेकिन साथ में जितना कुछ इस प्रकृति में बचा है उसके लिए भी एक प्रतिकूल स्थितियां पैदा कर दी। ऐसे में राजस्थान के जयपुर के रहने वाले नवल डागा जननी और जन्मभूमि के महत्व को समझते हुए पर्यावरण को बचाने और इसके छांव में रहकर जीने के अपने कई सालों के एक्सपीरियंस को आज लोंगो को समझा रहे हैं साथ ही उन्हें भी प्रेरित कर रहे हैं कि वे भी प्रकृति के लिए कुछ करें।

Naval Daga: डागा का घर है, ग्रीन हाउस

कहते हैं हर अच्छे, बड़े और परिवर्तनकारी काम की शुरूआत अपने घर से करनी चाहिए। डागा ने भी कुछ ऐसा ही किया है। नवल डागा का घर ग्रीन हाउस से कई बढ़कर है। उन्होंने अपने घर की छत पर ही एक बड़ा गार्डन बना रखा है, जहां 400 के करीब गमले हैं और नवल इन गमलों में सब्जियां उगाते हैं। उनका यह घर अपने आप में प्रकृति का एक छोटा सा नमूना है। अगर गर्मी के दिनों में आप डागा के घर के अंदर जाएंगे तो अंदर और बाहर के टेम्परेचर में करीब 9 से 13 डिग्री का अंतर महसूस होगा। उनके घर की हर दीवारों पर आपको पर्यावरण से संबंधित कैप्शन भी पढ़ने को मिल जाएंगे।

Naval Daga: पिता की प्रेरणा से करियर बनाने के दिनों में पेड़ लगाए

पर्यावरण के प्रति अपने लगाव के बारे में नवल डागा ने दूरदर्शन को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिताजी के कहने पर शुरू किया। नवल बताते हैं कि उस समय नौकरी को लेकर उतनी दिलचस्पी नहीं थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि यह तय नहीं था कि करना क्या है। डागा ने बताया कि 12 वीं के बाद कॉमर्स में एडमीशन लिया और पास करने के बाद एक नौकरी लग गई। तब 1800 की तनख्वाह वाली इस जॉब को लेकर मां तो खुश थी पर पिताजी ने कहा कि कुछ ऐसा करो जिससे कि लोग तुम्हारे नाम से मेरा नाम जाने।  

नवल बताते हैं कि उस समय उन्हें अपने पिता की वह बात समझ नहीं आई। ऐसे में उन्होंने उनसे इस बारे में बात की तो पिता ने कहा कि ‘पेड़ लगाओ’। उन्होंने कहा कि पेड़ सब कुछ देता है। नवल बताते हैं कि पिताजी ने उन्हें समझाया की प्रकृति में पेड़ और अन्य जीवों का हमसे और हमारी जिंदगी से एक गहरा लिंक है। तभी से उन्होंने पेड़ लगाने और प्रकृति के संरक्षण में अपनी जिन्दगी लगा दी।

Naval Daga: प्रकृति बचाने के साथ रोजगार भी देते हैं

पेड़, पानी, वन्य जीवों के सरंक्षण के लिए 13 जुलाई, 1977 से जयपुर के नवल डागा लोगों में जागरूकता लाने के लिए काम कर रहे हैं। वे रोजमर्रा की ज़िंदगी में काम आने वाली वस्तुओं पर पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के मुहावरे, दोहे और लोकोक्तियों को अनूठे अंदाज़ में प्रिंट करके उनको आमजन तक पहुंचाते हैं, ताकी आमजन की रूची पर्यावरण को बचाने में बढ़ा सके और इसमें उनकी सहभागिता हो सके। वहीं उन्होंने प्रकृति से जुड़ी हुई और बेकार हो गईं चीजों का इस्तेमाल करके ट्री, वॉटर, वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन जैसे विषयों से जुड़े 6822 प्रकार के आइटम बनवाए हैं और इनपर 14 भारतीय भाषाओं में पर्यावरण संगरक्षण से जुड़ी बातें लिखकर लोंगो तक पहुंचाते हैं।

इन आइटम को बनाने के लिए डागा कचरे की वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। जैसे की बेकार लकड़ी, कांच, प्लास्टिक, कागज, गत्ता, फ्लेक्स, विनाइल इत्यादि। वे बताते हैं कि जलावन वाली लकड़ी को काम में लेकर बेहद छोटे आइटम बनाते हैं जैसे कि पेन स्टैंड, मोबाइल स्टैंड, टेबल स्टैंड, चाबी स्टैंड, जो मार्केट में 25 से 100 रूपयों में बिकते हैं।

इस तरीके से डागर वेस्ट मेटेरियल को यूज तो करते ही हैं, साथ ही में कई ग्रामीण लोगों को रोजगार भी देते हैं। साथ ही वे रिसाइकिल पेपरों की किताब भी बनाते हैं। जिनमें वे पर्यावरण पर अधारित लप्रेक, दोहे और अन्य प्रेरक बाते लिखते हैं। ये किताबें 3 से 9 रुपये के बीच में बिकती हैं।

Naval Daga: समाप्त होती भारतीय संस्कृति को मानते हैं बड़ा कारण

नवल डागा ने डीडी के एक इंटरव्यू में कहा कि आज लोगों में वेस्टर्न कल्चर का प्रभाव बढ़ रहा है। यहीं कारण है कि वो अपनी सहूलियतों के लिए पर्यावरण को खुद से दूर कर रहे हैं। हम पहले से ज्यादा आराम पसंद हो गए है। यहीं कारण है कि बिमारियों से घिरते जा रहे हैं। वे कहते हैं कि जामाना यूट्यूब वीडियो का है, इंसान केवल कानों से काम निकालना चाहता है। आजकल तो लोगों ने एसी लगा लिया है, तो अब खिडकियां भी नहीं खुलती। इस इंटरव्यू में डागा कहते हैं कि अगर हम रिमोट से काम करना बंद कर दें तो कई बिमारियों का इलाज निकल जाएगा। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने भारतीय कल्चर को अपनाएं ताकी प्रकृति को साथ लेकर चल सकें.

Naval Daga: सांस्कृतिक के जरिए पर्यावरण से जोड़ने का तरीका

नवल पर्यावरण संबंधी संदेशों को लोगों तक पहुंचाने का जो तरीका अपनाते हैं शायद ही कोई दूसरा वैसा तरीका अपनाता होगा। वे अपने द्वारा लिखें गए संदेशों को 302 से ज्यादा प्रकार के कुशनों पर प्रिंट करवाकर लोंगो तक पहुंचाते हैं। साथ हीं उन्होंने बेकार की चीजों से ही गौत्रों से जुड़े 546 प्रकार के आइटम्स भी तैयार किए हैं। इसके अलावा 100 तरह के झोले और 60 विषयों का संदेश देते चैक बुक कवर सहित विभिन्न चीजें वे तैयार करवाते हैं। इन आइटमों में से ज्यादातर सिर्फ गिफ्ट्स देने के लिए ही बनवाए जाते हैं।

यानी नवल वो कोई मौका और जरिया नहीं छोड़ते जिसके जरिए वे लोगों तक पर्यावरण की बात को पहुंचा सकें। सच में पर्यावरण के लिए जीना अगर किसी को सीखना है तो नवल डागा से वो सीख सकता है। उनकी पूरी जिन्दगी आज एक संदेश है कि अगर हमें अपनी डाल सुरक्षित रखनी है तो उसे काटने के बजाए उसके साथ ही बेहतरी से जीने का तरीका अपनाना होगा। नवल की एक और बात मैं यहां चलते चलते बताना चाहूंगा जिस पर ध्यान देना जरूरी है, वे कहते हैं कि पैसे खर्च कर 10 पेड़ लगाने से अच्छा है कि हम पहले से प्राकृतिक रूप से पनपे पेड़ों की हिफाजत करें, क्योंकि पेड़ लगाने से ही पर्यावरण के प्रति हमारी ड्यूटी खत्म नहीं होती, बल्की उसी समय सही मायने में पर्यावरण के लिए हमारी जिम्मेदारियां और बढ़ जाती हैं। 

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