जबसे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात कही है तभी से हर दिन देश के किसी ना किसी कोने से ऐसी कुछ कहानियां सुनने को मिल रही है जहां कोई ना कोई बीते कई सालों से स्वदेशी चीजों से रोजगार कमा रहा है। ऐसी ही एक कहानी है उत्तराखंड़ की नमकवाली महिलाओं की.. जो अपनी संस्कृति को सहेजकर उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं और साथ ही उससे रोजगार भी कमा रही हैं।
दरअसल, टिहरी गढ़वाल की रहने वाली शशि रतूड़ी ने साल 1982 में महिला नवजागरण समिति की शुरूआत की, जिसके तहत वो पहाड़ों की कई कलाओं और संस्कृतियों को सहेजने के अलावा ग्रामीणों को रोजगार दिलाने का काम कर रही हैं। इसी के तहत उन्होंने एक नई पहल की शुरूआत की जिसका नाम रखा गया “नमकवाली”
बता दें कि, नमकवाली करीब 10-12 औरतों का एक समूह है जो खास पहाड़ों में कई बरसों से बनते आ रहे पहाड़ी नमक (जिसे पिस्यु लूण कहा जाता है) को तैयार करके ऑनलाइन मार्केटिंग के जरिए देश के अलग-अलग कोनों में भेजती हैं। इससे ना सिर्फ गांव की महिलाओं को रोजगार मिल रहा है बल्कि, उत्तराखंड़ के बाहर रोजगार की तलाश में गए लोगों को भी पहाड़ों से दूर शहरों में इसका स्वाद चखने को मिल रहा है।
नवजागरण समिति की रेखा कोठारी ने की Namakwali की शुरूआत
इस नमकवाली पहल की शुरूआत भले ही नवजागरण समिति के तहत की गई हो, लेकिन इसकी सोच के पीछे सबसे बड़ा योगदान है रेखा कोठारी का। दरअसल, रेखा कोठारी अपनी शादी से पहले से ही महिला नवजागरण समिति का हिस्सा हैं। उस वक्त जब वो हर दिन समिति में काम के लिए या मीटिंग के लिए जाया करती थी। तो वो हमेशा अपनी मां के हाथ का बनाया पिस्यु लूण लेकर जाती थी। वहां जब शशि ने इस नमक को चखा तो ना सिर्फ उन्हें बल्कि बाकी सभी महिलाओं को भी इसका स्वाद बेहद पसंद आया।
रेखा कोठारी चंबा गांव की रहने वाली हैं उन्होंने खुद भी अपनी मां से इसको बनाने की रेसिपी सिखी और समिति में काम करने वाली बाकी महिलाओं को भी इसे बनाना सिखाया। पिस्यु लूण बनाने की रेसिपी पारंपरिक हैं। जिसे सिलबट्टे पर ही पीसा जाता है। और इसे बनाने के लिए अलग-अलग तरह की कुल 10 चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
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नमकवाली पहल की सभी महिलाएं ऑर्डर के हिसाब से नमक को तैयार करती हैं। जिसके लिए उन्होंने 50 ग्राम, 100 ग्राम और 200 ग्राम के पैकेट्स बनाए हुए हैं। नमक तैयार होने के बाद इसकी पैकेजिंग, कूरियर और मार्केटिंग की सारी जिम्मेदारी महिला नवजागरण समिति द्वारा उठाई जाती है।
फिलहाल नमकवाली का ये नमक सिर्फ उत्तराखंड़ ही नहीं बल्कि, दिल्ली से लेकर मुंबई और चेन्नई तक कई बड़े-बड़े शहरों में भेजा जाता है। शशि की मानें तो कई लोग उन्हें 10 किलो नमक तक के ऑर्डर देते हैं। ऐसे में वो हर महीनें करीब 35 किलो नमक बेच पाने में कामयाब होती हैं।
नॉर्मल नमक से काफी अलग है Namakwali के पिस्यु लूण का स्वाद
जहां नमकवाली की शुरूआत में सिर्फ पिस्यु लूण ही बनाकर बेचा जाता था। तो वहीं अब ये महिलाएं स्पेशल ऑर्डर पर कई तरह के नमक को तैयार करने लगी हैं। जिनमें अदरक वाला नमक, भांग वाला नमक, और लहसुन वाला नमक आदि शामिल हैं।
इस पिस्यु लूण की खासियत ये है कि, ये अच्छे स्वाद के साथ-साथ अच्छा स्वास्थय भी देता है। इसमें पारंपरिक मसालों के साथ-साथ कई पहाड़ी जड़ी-बुटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जो कि, शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होते हैं।
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आमतौर पर पहाड़ी लोग पिस्यु लूण को किन्नू, संतरा, या सलाद के अलावा रोटी के साथ भी खाते हैं। इसका स्वाद नॉर्मल नमक से काफी अलग होता है।आपको बता दें कि, सिर्फ नमक पर ही नहीं शशि अब हल्दी पर भी काम कर रही हैं।
पहाड़ों में उगने वाली प्राकृतिक हल्दी को पारंपरिक तरीके से पीसकर अपने ग्राहकों तक पहुंचाना चाहती हैं। ऐसी ही कई चीजों के ऊपर रिसर्च कर शशि और उनकी समिति से जुड़ी सभी महिलाएं पहाड़ी कल्चर और पहाड़ी चीजों को देश के हर कोने में पहचान दिलाने की कोशिश कर रही हैं। साथ ही रोजगार कमाकर आत्मनिर्भर भी बन रही हैं।