अपने आस-पास की दुनियां में हम इतने उलझे रहते हैं कि अपनी ज़िन्दगी की छोटी-मोटी परेशानियों से ऊपर उठ ही नहीं पाते.. ये तक नहीं सोच पाते कि हमसे बाहर भी एक दुनिया है और उसमें लोग रहते हैं। और अगर ऐसे में कोई अपनी कीमत पर दूसरों की परवाह करने निकल पड़े तो उसकी कहानी सूरज की किरणों से बयां होती है।
ऐसी ही एक कहानी है दिल्ली के मेडिसिन बाबा की, जिनके कपड़ों पर उन्होंने गरीबों को मुफ्त में दवा देने के बारे में लिखवा रखा है। कुर्ते पर फोन नंबर और ईमेल आईडी भी है, जिससे लोग उनसे संपर्क कर सकें. दोनों पैरों से अपाहिज मेडिसिन बाबा रोजाना छह से सात किलोमीटर पैदल चलकर दवा इकट्ठा करते हैं.
आपको बता दें कि, मेडिसिन बाबा का असली नाम है ओंकारनाथ. जिनकी उम्र आज करीब 80 साल हो चुकी है। लेकिन इसके बावजूद भी वो पिछले लगभग 12 साल वे यह अभियान चला रहे हैं. उनका कहना है कि वे हर महीने चार से छह लाख रुपये की दवाएं जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटते हैं. दवाएं जमा करने के लिए मेडिसिन बाबा दिल्ली के ऐसे इलाकों में घूमते हैं जहां धनवान परिवार रहते हैं और जो महंगी दवा दान कर सकते हैं. वे बताते हैं, “दिल्ली में ऐसे कई परिवार हैं जो इलाज के लिए महंगी दवा खरीद लेते हैं, और एक बार ठिक हो जाने के बाद वे दवाएं उनके किसी काम की नहीं होतीं। तो बस वहीं कूड़े में फेंकने के बजाय ऐसी दवाएं मेरे काम आ जाती हैं. मैं इन्हें आगे जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचाता हूं। उनका कहना है कि दवा लेने से पहले वो ये तक सुनिश्चित कर लेते हैं कि कोई भी दवा एक्सपायर न हो और मरीजों के सेवन लायक हो.
Medicine Baba – एक हादसे ने ओंकारनाथ को बनाया मेडिसिन बाबा
साल 2008 में लक्ष्मीनगर में मेट्रो की साइट पर एक हादसा हुआ था। उस हादसे ने कुछ मज़दूरों की जान ले ली. और कई और की ज़िन्दगी बदल दी. हादसे के तमाशबीनों में एक इंसान ऐसा भी था, जो घायल मज़दूरों के पीछे-पीछे अस्पताल तक गया. वहां उसने देखा कि मज़दूरों को मामूली मरहम-पट्टी करने के बाद ये कह कर वापस भेजा जा रहा है कि दवाएं नहीं हैं. खरीद के लाओ तो इलाज कर देंगे. मजदूर मायूस होकर वापस चले गए. लेकिन वो इंसान नहीं गया. वो वहीं रह गया. लौटा एक बिलकुल नया आदमी – मेडिसिन बाबा.
तब से बाबा रोज़ सुबह एक भगवा कुर्ता पहनकर मंगलापुरी के अपने घर से निकलकर शहर के अलग अलग इलाकों में जाते हैं और आवाज़ लगा-लगा कर लोगों से वो दवाएं उन्हें देने को कहते हैं, जो उनके लिए बेकार हैं. बाबा के कुर्ते पर आगे हिंदी में और पीछे अंग्रेजी में ‘चलता-फिरता मेडिसिन बैंक’ लिखा होता है. साथ में कुर्ते पर उनका नंबर भी हैं कि कोई दवाएं देना या फिर लेना चाहे तो उन तक पहुंच सके. मेडिसिन बाबा मेट्रो में कम चलते हैं, क्योंकि वो महंगी है। वो हमेशा डीटीसी बसों में अपना सीनियर सिटीजन पास लिए ही सफर करते दिखाई देते है। और जहां बस नहीं पहुंचती वहां पैदल जाते हैं. आपको बता दें कि, बचपन में 12 साल की उम्र में एक्सीडेंट में एक पैर टेढ़ा हो गया था. लेकिन इसके बावजूद भी बाबा रोज करीब 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलते हैं।
Medicine Baba – घर-घर जाकर इकठ्ठा करते हैं दवाईयां फिर गरीबों को बांटते हैं मुफ्त
मेडिसिन बाबा ऐसे कई गरीब मरीज़ों के लिए वरदान है जो डॉक्टर की बतायी महंगी दवाईयां नहीं खरीद सकते। दवाएं जमा करने के लिए उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है लेकिन बांटने के लिए उनके पास अपना एक दफ्तर है. दरअसल दक्षिण पश्चिम दिल्ली के मंगलापुरी में स्थित एक बस्ती में मेडिसिन बाबा का घर है. और यहीं एक छोटे से किराए के कमरे से वो अपना दफ्तर भी चलाते हैं. उनका छोटा सा कमरा दवाओं से भरा पड़ा है. रोजाना शाम चार बजे से लेकर रात के आठ बजे तक वे गरीब और जरूरतमंदों को मुफ्त में दवा बांटते हैं. वे बताते हैं कि, पहले लोग कहते थे कि इसने भीख मांगने का नया तरीका निकाल लिया है. लेकिन मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता था. मैं अपना काम सच्ची लगन के साथ करता गया। अब महीने में 400 से लेकर 600 मरीज मेरे पास दवा लेने आते हैं।
मेडिसिन बाबा जैसे बहुत कम लोग होते हैं, जो इतनी ज्यादा उम्र हो जाने के बाद भी नि:स्वार्थ भाव से समाज के गरीव लोगों की इस तरह सेवा कर रहे हैं। मेडिसिन बाबा का बस एक यही सपना है कि वे जरूरतमंद लोगों के लिए एक दवाई बैंक स्थापित कर सकें।