तबाही एक ऐसा शब्द जिसकी कल्पना मात्र से ही हमारी आंखों के सामने विनाश नज़र आने लगता है. जहाँ न तो किसी जीव का बच पाना संभव है न ही किसी मनुष्य का.. ऐसे में जहाँ साल 2020 की शुरुवात से ही अब तक मुनष्य जाति अनेकों तरह की मुसीबतों का सामना कर रही है.
वहीं अभी न जानें कितनी मुसीबतें आना बाकी रह गया है. ऐसे में अगर ये कहे कि साल 2020 तबाही का ही समय है तो शायद ये कहना गलत नहीं होगा. या फिर यूँ कहें कि, आने वाले साल मानव जाति के लिए और विभत्स होने वाला है तो, शायद ये कहना भी गलत नहीं होगा.
हर इंसान जानता है कि, मनुष्य के पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद से मनुष्य ने अपने विकास के लिए पृथ्वी, पर्यावरण सबको नुकसान पहुंचाया है. यही वजह है कि, आज पूरी दुनिया जहां ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर समस्या का सामना कर रही है. वहीं अनेकों तरह की बीमारियां, पर्यावरण में होने वाले अनियमित बदलाव के साथ-साथ धरातल में मौजूद सीमित संसाधनों का दोहन भी इस बात की गवाही है कि आने वाला समय मनुष्य जाति के लिए सबसे बुरा साबित होने वाला है.
आज जहाँ हमारी पूरी दुनिया में गिने चुने जंगल रह गए हैं. वहीं एक तरफ हर साल जंगलों में लगी आग उन्हें खत्म कर रही है वहीं एक दूसरे से आगे निकलने की देशों की होड़ जंगलों को खत्म कर रहे हैं. जिनमें न जानें कितने बेज़ुबान जानवर, हज़ारों लाखों हेक्टर ज़मीन इनकी भेंट चढ़ रहे हैं. साथ-साथ प्रदूषण हर साल, हर वक्त रिकॉर्ड कायम कर रहा है.
मानव जाति द्वारा संसाधनों का अनियमित उपयोग
हम सभी ने बचपन में ही अपनी जर्नल नॉलेज़ की किताब में पढ़ा था कि, दुनिया में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का भंडार सीमित है. हालांकि उसके बाद भी आज पूरी दुनिया इन संसाधनों का बेताहाशा उपयोग कर रही है. ऐसे में जहां बचा हुआ संसाधन आने वाले कुछ दशकों में खत्म हो जाएगा तो वहीं बचे संसाधनों के उपयोग के लिए देशों का आपस में झगड़ना भी लगभग तय हो जाएगा.
VICE द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसमें 2 सैद्धांतिक भौतिकविदों ने निष्कर्ष निकाला थी कि, आने वाले 2 से 4 दशकों के अंदर ही मानव अपने खुद के विनाश का कारण बनेगा. जबकि चिली और ब्रिटेन के शोधकर्ताओँ ने अपने एक शोध जोकि, Nature Scientific में प्रकाशित हुई थी.
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उसमें उन्होंने मानव समाज के पतन को सांख्यिकीय मॉडलिंग के जरिए पता लगाने की कोशिश की. जिसमें उन्होंने दिनों दिन खत्म होते प्राकृतिक संसाधनों और बढ़ती आबादी को आधार बनाकर ये निष्कर्ष निकाला कि आने वाले दशक मानव जाति के लिए सबसे घातक साबित होने वाले हैं.
इन वैज्ञानिकों का मानना है कि, दुनिया में बढ़ते इन खतरों के पीछे खत्म हम सभी मनुष्य जिम्मेदार हैं. जो विकास के नाम पर वनों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं. साथ ही जलवायु संकट समुद्र के स्तर को भी बढ़ाता चला जा रहा है. यही वजह है कि मौसम में भी अनियमित बदलाव, कभी बाढ़ तो कभी सूखा और अनेकों तरह की प्राकृतिक आपदाएं हम सभी झेल रहे हैं.
वनों क विनाश तय करेगा मानव जाति का विनाश
वैज्ञानिकों का मत है कि जिस तरह से आज वनों की कटाई की जा रही है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले सौ साल के अंदर हमारी धरती से वन खत्म हो जाएगें. ऐसे में अगर इस तथ्य को देखकर ऐसा लगता है कि 100 साल का वक्त अभी काफी दूर है तो हम सभी गलत हैं. क्योंकि पिछले कई सालों का दुष्परिणाम है जो आज हम सभी झेल रहे हैं.
ऐसे में अगर जगंलों की कटाई का अनुपात बढ़ता रहा और जंगल खत्म होते रहे तो ये सौ साल की दूरी और भी कम हो सकती है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या कहें या फिर समुद्र के जलस्तरों का बढ़ना उनमें अपार वृद्धि दर्ज की जाएगी.
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आज जिस तरह से हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में संसाधनों की कमी के कारण मनुष्य जाति के साथ सभी जीवों के अस्तित्व पर खतरा बढ़ता जा रहा है. ऐसे में बात चाहे ऑक्सीजन की हो या फिर मिट्टी के संरक्षण या फिर जल चक्र के रेगुलाइज की इनके बुनियादी सिस्टम में अनियमितता आना संभव है.
ऐसे में जहां हमारी दुनिया 6 करोड़ वर्ग किलोमीटर के जंगलों से घटकर आज 4 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर पहुंच गई है. तब हम सभी इतनी मुसीबतें झेल रहे हैं तो जिस समय ये अनुपात और कम होगा, इस पृथ्वी के साथ-साथ मनुष्यों और जीवों का क्या होगा..? ऐसे में इन सभी बातों से साफ जाहिर है कि वन नहीं तो पृथ्वी नहीं और पृथ्वी नहीं तो जीव नहीं, इंसान नहीं