हमारे देश में ना जानें कितनी ही राजनीतिक पार्टियां रहती हैं, राजनीति करती हैं. ये राजनेता भी हर एक मुद्दे पर अपनी बात करने से लेकर उस बात को भुनाने का कोई जरिया नहीं छोड़ते. क्योंकि उन्हें हर तरफ से राजनीति को बढ़ावा देना होता है. लेकिन अगर हम अपने समाज की बात करें तो, हमारे समाज में पिछले कुछ सालों में जिस तरह की राजनीति पनप रही है. उस तरीके की राजनीति हमारे समाज के साथ-साथ हमारी सभ्यता और हमारी विरासत के लिए भी हानिकारक है. ऐसा इसलिए नहीं कि, राजनीति में कई और नए चेहरे आ गए। ऐसा इसलिए कि, नेताओं के दिए भाषण और नेताओं द्वारा की गई बयानबाजी के बीच उन्हें उनसे फुर्सत मिल जाती है। हालांकि उसके बाद समाज में एक नई किस्म की बहस जन्म ले लेती है। क्योंकि हमेशा से नेताओं के नीचे का तबका नेताओं की कही बातों का अनुसरण करता है।
हमारे देश में चाहे पक्ष की बात हो या फिर विपक्ष की बात या फिर किसी भी आम नागरिक की ही बात क्यों ना हो, बोलने और कहने की आजादी सबको है। लोकतंत्र भी हमारा यही कहता है। हालांकि पिछले कुछ सालों की राजनीति में लोकतंत्र की इसी आजादी ने देश को दो फाक में बांट दिया है। एक जो उसके पक्ष में खड़ा है, एक जो विपक्ष में…
क्योंकि आज हमारे समाज में हिंदू-मुस्लिम सबसे ज्यादा होने लगा है। मुस्लिमों को CAA-NRC, NPR को लेकर तमाम गुट भड़का रहे हैं. खैर इस कलह की बात, वहीं जानें जो इसमें इसको रोकने से लेकर इसको लागू करने की बात करते हैं. हालांकि हमें आज से 9 साल पहले हुए 26/11 के हमले को एक बार फिर से सोचना चाहिए.
26/11 का कसाब नहीं था, मुस्लिम

दुनिया जानती है कि, पूरी दुनिया में जहां हिंदुओं की बात होती है तो हिन्दुस्तान की बात जरूर होती है. क्योंकि यहां लगभग एक अरब की आबादी हिंदुओं की रहती है। साथ में अन्य कई समुदाय भी भारत का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि राजनीतिक बोलियों ने इन सभी के बीच एक ऐसी दरार खींच दी है। जोकि दिखाई तो नहीं देती, हाँ, मगर उसे महसूस जरूर किया जा सकता है। क्योंकि जिस दौरान 26/11 का हमला भारत में हुआ था। उस समय कुल 174 लोगों की मौत हुई थी। शुरुआती जांच में भारतीय राजनेताओं ने कहा कि, ये हत्यारे RSS से हैं। यही नहीं उन्होंने कहा कि, ये हत्यारे हिदूं आतंकवादी हैं। जो भारत में आतंक फैलाना चाहते हैं। जिसमें कांग्रेस के कई नेता शामिल थे. होते भी क्यों न….उन 9 हत्यारों की साजिश ही कुछ ऐसी थी. जिसमें उन्होंने हिंदू आतंकवादी कहलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. हाथों में कलावा बांधे वो आतंकवादी जिस जगह से निकले, कैमरे में सब कुछ रिकॉर्ड हो गया. पूरे चेहरे से लेकर हाथों में बंदूकें और चेहरे पर उबाल साथ ही हाथों में लाल रंग का कलावा….
हिंदुओं की आस्था से जुड़ा ये धागा, उस समय कई पार्टियों से ऐसा लगा की…ये वो आतंकवादी हैं. जो हिंदुस्तान को हिंदुस्तान की लाग रंग से रंग रहे हैं. लेकिन हाल ही में आई एक किताब let me say it now में इस बात का खुलासा किया गया है कि, अगर अजमल कसाब आतंक की उस रात पकड़ा नहीं गया होता, तो हिंदुओं की अस्मिता पर सवाल उठने के साथ-साथ उनके होने पर भी कई तरह के सवाल खड़े हो गए होते।
पाकिस्तान को पहले से ही खबर थी…
भारत में राजनीतिक पार्टियों में मतभेद और यहां की बयानबाजियों की गहराई किसी से छिपी नहीं है। क्योंकि ये नेता कुछ भी बोलते और कहते वक्त अपनी पार्टी के अलावा कुछ नहीं सोचते कि, आखिर ये बोल क्या रहे हैं और इससे किस-किस पर इसका असर पड़ेगा। कुछ ऐसा ही हुआ था उस समय भी. जहां कांग्रेस के कई नेता इसे RSS की साजिश बता रहे थे। वहीं पाकिस्तान की ओर से भेजे इन हत्यारों को पाकिस्तान में रह रहे आकाओं ने, न जानें कितने ही पाठ पढ़ दिए थे।

let me say it now वाली किताब में ऐसे न जानें कितने ही अंश हैं जिन्हें तब की पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने लिखा है। जिसमें उन्होंने अजमल कसाब को लेकर कितनी ही बातें लिखी है। क्योंकि राकेश मारिया ने ही कसाब से पूछताछ की थी। उसी के आधार पर उन्होंने let me say it now लिखी।
जिसमें उन्होंने लिखा कि, 9 के 9 हत्यारे जिस समय पाकिस्तान से हिंदूस्तान आए। उस समय वो पाकिस्तानी नहीं थे। क्योंकि उन्हें हिंदू आतकंवादी बना दिया था. हर एक के पास उनका खुद का पता, पहचान सब कुछ उनकी जेब में था। लश्कर ऐ तैयबा की और पाकिस्तान की तैयारी पूरी थी। जिसमें उन्होंने इन सभी को हिंदू आतंकवादी बनाने की तैयारी की थी. क्योंकि पाकिस्तान ने कभी कल्पना नहीं की थी कि, इनमें से कोई जिंदा बचेगा.

राकेश मारिया, लिखते हैं कि, अगर सब कुछ ठीक रहता तो, कसाब मारा जाता. उसके हाथ में लाल रंग का कलावा होता. साथ ही उसकी जेब में एक समीर दिनेश चौधरी नाम का आइकार्ड मौजूद होता. इस कार्ड के मुताबिक समीर हैदाराबाद के अरुणोदय डिग्री एंड पीजी कॉलेज का छात्र था. साथ ही समीर दिनेश चौधरी के घर का पता टीचर्स कॉलोनी, नगर भावी, बेंगलूरू….
यानि की let me say it now किताब के मुताबिक अगर कसाब उसी समय मारा गया होता, तो भारतीय ऐजेंसियां इन सभी आतंकवातियों के घर से लेकर कॉलेज तक हर जगह जाती। पूछताछ करती तब कुछ जाकर निष्कर्ष निकलता. ठीक जिस तरह कुछ राजनेता इसे उसी समय हिंदू आतंकवादी गतिविधि कह चुके थे. ठीक उनके साथ और न जानें कितने लोग बाहर निकल आते और हिंदूओं को पूरी तरह आतंकी घोषित कर देते। जिससे पूरी दुनिया में एक संदेश जाता कि, हिंदू आतंकवादी होते हैं।
हालांकि अफसोस ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि उन 9 हत्यारों में से एक हत्यारा पकड़ा गया और उसने बता दिया कि, वो पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला है और उसे लश्कर-ए-तैयबा ने ट्रेनिंग दी है।
हमारे देश में ऐसा कहा जाता है कि, आतंक का कोई मजहब नहीं होता। हकीकत भी कुछ ऐसी ही है। क्योंकि ऐसे किसी भी इंसान को ही किसी भी समुदाय में नहीं रख सकते। हालांकि जब जब देश में ऐसी कोई भी घटना होती है। तो नेताओं से लेकर बुद्धजीवियों का एक तबका हमेशा से उसे हिंदू या फिर मुस्लिम समुदाय से जोड़कर कहना नहीं भूलता की वास्तव में आतंकवादी कौन है।