Leap year : स्कूल में नहीं समझ पाए थे, अब आसान भाषा में समझ लीजिए

‘लीप ईयर’, हर चार साल पर आता है। चार साल से पहले हम न तो इसे याद करते हैं न कोई मतलब है। लेकिन साल में जुड़े इस एक्सट्रा दिन से कई लोगों की अच्छी और बुरी यादें जुड़ी हैं, जिन्हें वो भूल भी जाते है लेकिन यह लीप ईयर आते ही वो पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। जैसे कि किसी का जन्मदिन लीप ईयर में हो मतलब 29 फरवरी को सोचिए उसका क्या हाल होता होगा…. बहुत लोग कहगे कि यह तो बहुत खुशी का दिन होगा क्यों कि 4 साल में उसे एक दिन अपना जन्मदिन मनाने का मौका मिलता होगा।

लेकिन उस बर्थडे बॉय या गर्ल से भी पूछ लो उसका क्या हाल होता होगा….चार साल के बराबर की पार्टी दोस्तों को देनी होती होगी और बदले में चाल साल की बर्थडे बम वाली पीटाई। खैर यह तो हंसी मजाक की बाते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि ये लीप ईयर चीज क्या है? और यह शुरूआत आखिर कब से हुई…. कि हां 4 साल में एक बार लीप ईयर आएगा? और क्या हमारे इंडियन कैलेंडर में भी ऐसा कुछ होता है।

Leap year

हर चार साल में क्यों आता है लीप ईयर?


यह सवाल एक ऐसा सवाल है जिसका टीचर ने हमें बहुत बार जवाब दिया है और हर बार पहले से ज्यादा अच्छे तरीके से समझाया है कि भैया लीप ईयर इसलिए होता है, लेकिन हम कौन सा समझे हैं… बस इतना ही याद रहा कि हर चार साल में एक साल लीप ईयर होगा मतलब फरवरी में एक दिन ज्यादा फरवरी मनाना होगा। अगर किसी दोस्त का बर्थडे हो या फिर संडे हो तो यह दिन खुशी देने वाला होता था और अगर इस दिन स्कूल जाना हो तो बेकार। मतलब स्कूल वालों को भी ज़रा समझना चाहिए कि यह दिन इतने सालों पर एक बार आता है तो बच्चों को एन्जॉय करने के लिए छोड़ देना चाहिए।

खैर सवाल यह था कि आखिर यह लीप ईयर है क्या और कैसे पता चलता है? वैसे तो आपके टीचर ने इस सवाल का जवाब दिया होगा…. पता है कि आप समझे नहीं होंगे… पर एक कोशिश हम भी कर रहे हैं। दरअसल हर साल फरवरी महिने में 28 दिन होते हैं और 4 साल पर इस महिने में एक दिन एकस्ट्रा जुड़ जाता है और महिना हो जाता है 29 दिन का। मतलब यह लीप ईयर हो जाता है। असान भाषा में कहें कि जिस साल फरवरी में 29 दिन होते हैं उसे लीप ईयर कहते हैं।

अब सवाल उठता है कि आखिर यह पता कैसे चलेगा कि इसी साल में फरवरी महिने में 29 दिन होंगे? तो आपको बता दें कि लीप ईयर में होते हैं 366 दिन और ऐसे अन्य सालों में होते हैं 365 दिन….। नहीं… नहीं…. 365 नहीं होते, असल में हर साल में होते हैं 365 दिन और 6 घंटे। इसी टाइम में धरती सूरज का एक चक्कर पूरा करती है। चूंकि ये 6 घंटे का अतिरिक्‍त समय दर्ज नहीं होता है इसलिए हर चार साल के 6 घंटे मिलाकर 4 साल में एक दिन पूरा कर दिया जाता है। तो बस इसलिए लीप ईयर में हो जाते हैं 366 दिन, चार साल में 6 घंटे मिलाकर होते हैं 24 घंटे यानी एक दिन सो इसे जोड़ दिया जाता है फरवरी महिने में, ताकि संतुलन बना रहे।

Leap year

अब समझ गए, अगर ऐसी वाली फीलिंग आ रही है तो जरा रुकिए असली नॉलेज अभी बाकी है। कोई साल लीप ईयर है या नहीं यह पता ऐसे नहीं चलता की चार साल हो गए यह साल लीप ईयर है। असल में इस बात का पता लगाने के दो पैमाने हैं। पहला यह कि उस साल की संख्या को चार से डिवाइड किया जा सके। जैसे 2000 को 4 से डिवाइड किया जा सकता है। इसी तरह 2004, 2008, 2012, 2016 और अब यह साल 2020।

इसके अलावा दूसरा पैमाना है कि अगर कोई वर्ष 100 की संख्‍या से डिवाइड हो जाए तो वह लीप ईयर नहीं होता लेकिन अगर वही वर्ष पूरी तरह से 400 की संख्‍या से डिवाइड हो जाए तो वह लीप ईयर कहलाएगा। एग्जांपल के लिए 1300 की संख्‍या 100 से तो विभाजित हो जाती है लेकिन यह 400 से विभाजित नहीं हो सकती है। इसी तरह 2000 को 100 से डिवाइड किया जा सकता है लेकिन यह 400 से भी पूरी तरह डिवाइड हो जाता है, इसलिए यह लीप ईयर था।

लीप ईयर का इतिहास क्या है?

लीप ईयर तो जान गए लेकिन आखिर यह अनोखा दिमाग लगाया किसने और इस लीप ईयर की शुरूआत कैसे हुई? यह भी एक सवाल है। तो बता दें कि बात करीब 2000 साल ईसापूर्व की है, जब इटली पर जूलियस सीजर का राज हुआ करता था और उस समय के कैलेंडर में होते थे 355 दिन। लेकिन इस समय एक दिक्कत होती थी कि हर दो वर्ष पर 22 दिनों का हिसाब जोड़ना पड़ता था। बेचारा जूलियस सीजर इससे रहता था परेशान। उसने अपने ज्योतिषी से ऐसी व्यवस्था करने को कहा जिससे कालक्रम गड़बड़ हुए बगैर इस प्रॉब्लम सॉल्व कर लें। ऐसे में ज्योतिषी ने एक साल में 365 दिनों को शामिल करके हर 4 साल में एक दिन जोड़ने का फॉर्मूला निकाला। इसे जूलियस ने मान लिया और लागू कर दिया।

पहले तो यह चलता रहा लेकिन फिर 16वीं शताब्दी में इसमें दिक्कते आनी लगीं। असल में चर्च को जूलियस कैलेंडर के अनुसार ईस्टर का दिन तय करने में दिक्कत होती थी। दरअसल इस कैलेंडर के मैथ के अनुसार एक साल 365 दिन और 25 मिनट का होता था। जो 19 मिनट ज्यादा था नए मैथ के कैलकुलेशन से। ऐसे में कैलेंडर के कालक्रम में कई बदलाव और सुधार किए गए। इस बार ये सुधार करने वाले थे पोप ग्रेगरी। उन्होंने ही 29 दिनों के साल को लीप ईयर का नाम दे दिया। आज हम जिस ग्रेगोरियन कैलेंडर को फॉलो करते हैं वो पोप ग्रेगोरी के नाम पर ही रखा गया है।

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लीप ईयर पर जन्में है तो आप हैं ‘लीपलिंग’

लीप इयर में 29 फरवरी का दिन काफी लोगों के लिए एक्साइट करनेवाला होता है खासकर उनके लिए जिनका बर्थडे इस दिन को होता है। वे लोग अपना जन्म दिन तो चार साल में एक बार या सांकेतिक रुप से 28 फरवरी को मना लेते हैं लेकिन असल दिक्कत होती है कागजी कार्यवाही में। सरकारी कागजों में, कानूनी दस्‍तावेजों में तो यह 29 फरवरी ही आधिकारिक तिथि के रुप में दर्ज होती है। ऐसे में अगर कागज के अधार पर 29 फरवरी को जन्‍मे व्‍यक्ति के उम्र निर्धारण में अलग ही फेर दिखता है।

कागज के हिसाब से वो आदमी अपना वास्‍तविक 25वां जन्‍मदिन मनाने अपने 100 साल के होने का इंतजार करता है। सिर्फ इतना ही नहीं इस दिन हर साल 28 फरवरी तक काम करके पूरे महीने का वेतन लेने वाले कर्मचारियों को एक दिन एक्स्ट्रा काम करना पड़ता है वो भी बिना पेमेंट के। वैसे आपको एक मजेदार चीज़ बता दें कि इस दिन को जन्में लोगों को दुनिया ‘लीपलिंग’ के नाम से जानती है।

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इस दिन को कुछ खास लोगों का जन्म हुआ

मोरारजी देसाई :— भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व. मोरारजी देसाई का जन्म लीप ईयर में हुआ था। उनका जन्‍म 29 फरवरी 1896 को हुआ था। वे जनता पार्टी की सरकार में वर्ष 1977 से 1979 तक प्रधानमंत्री रहे।

सुपरमैन :— हकीकत में तो यह कैरेक्टर नहीं है। लेकिन रील लाइफ के इस कैरेक्टर का जन्म भी लीप ईयर में हुआ था। सुपरमैन एक ऐसा पात्र है जो अपने सुपर पॉवर के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।

रुक्‍मिणी देवी अरुंदाले :— रुक्‍मिणी देवी भारत की प्रसिद्ध नृत्‍यांगना थीं जिनका जन्म 29 फरवरी 1904 को मदुरै में हुआ था। उन्‍होंने कलाक्षेत्र नामक संस्‍था की स्‍थापना की थी। वे भरतनाट्यम की शास्त्रीय नृत्‍यांगना और प्रशिक्षक थीं। वे वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट भी रहीं।

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