एक बार शेक्सपियर ने कहा था, कि नाम में क्या रखा है। लेकिन अगर शेक्सपियर भारत में होते तो वो इसके उलट कहते कि नाम में बहुत कुछ रखा है। दरअसल, भारतीय संस्कृति में नामकरण संस्कार भी 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। और सिर्फ इंसान ही नहीं स्थानों के नाम भी किसी कारण से रखे जाते हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि, यहां हर नाम के पीछे एक कहानी छिपी होती है, और इसी तरह बिहार के चंपारण जिले के सुशील कुमार ने भी अपने जिले के नाम के पीछे छिपी कहानी को पहचान कर उसके महत्व को फिर से जिंदा कर दिखाया है।
आज सुशील कुमार किसी पहचान के मोहताज नही हैं। अगर दिमाग से इनकी तस्वीर निकल गई हो तो थोड़ा सा फ्लैशबैक में चलिए, साल था 2011 और टीवी पर चल रहा था केबीसी का शो, एक तरफ अमिताभ बच्चन और दूसरी ओर बिहार के मोतिहारी का एक नौजवान। माहौल पूरी तरह सस्पेंस भरा, सब टकटकी बांधकर देख रहे थे, बस इंतजार था इतिहास बनने का और अचानक से बिग बी के मुंह से निकला ‘सही जवाब’। इस एक शब्द ने सुशील कुमार की जिंदगी बदल दी। वे केबीसी के पहले ऐसे कंटेस्टेंट बन गए, जिसने 5 करोड़ की राशि जीत ली थी।
और इसके बाद क्या था, नाम हुआ शोहरत मिली। सुशील मनरेगा के ब्रांड एम्बेसडर बने। लेकिन धीरे-धीरे मीडिया से गुम होते गए। मगर सुशील कुमार जिस जिले के रहने वाले हैं उसका नाम चंपारण है। अब यह दो जिले हैं पूर्वी और पश्चिमी। गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन के कारण चंपारण विश्व पटल पर जाना-पहचाना नाम है। लेकिन चंपारण का नाम चंपारण क्यों पड़ा? इस सवाल का जवाब हर कोई नहीं जानता।
चंपा से चंपारण के सफर पर निकल पड़े सुशील कुमार
यही सवाल एक बार सुशील के मन में था और उस दिन उनके पिता ने घर पर चंपा का पौधा लगाने की बात कही। बस मालूम हो गया कि चंपारण असल में पहले चंपा के पेड़ों का जंगल था। लेकिन आज चंपारण में चंपा के पेड़ मुश्किल से ही दिखते हैं। सुशील की माने तो यहीं पर उनके दिमाग में चंपारण के नाम के महत्व को फिर से जीवंत करने का विचार आया। उन्होंने सोचा कि कितना अच्छा हो अगर चंपारण के हर घर के बाहर एक चंपा का पेड़ लग जाए। बस फिर क्या था सुशील ने अपनी स्कूटी उठाई और कुछ लोगों को साथ लेकर निकल पड़े ‘चंपा से चंपारण’ के सफर पर।
सुबह खुद लोगों के घरों पर चंपा का पौधा लेकर पहुंचते और खुद ही खुरपी से मिट्टी खोदकर चंपा का पौधा लगा देते। एक चंपा लगाने से शुरू हुआ यह सफर एक आंदोलन बन गया। पहले शहर, फिर गांव हर जगह लोगों में इसके प्रति उत्साह दिखाया। सोशल मीडिया के जरिए सुशील खुद इसके बारे में लोगों को जानकारी देते और लोगों को इस मुहिम से जोड़ते। धीरे-धीरे मोतिहारी और इसके आस-पास के सभी जिलों की नर्सरियों के सारे चंपा के पौधे बिक गए। नर्सरी वाले लोगों के फोन से परेशान हो गए, कोई भी फोन आता बस चंपा का जिक्र होता।

ऐसे में बिहार से बाहर देश और विदेश के दूसरे कोने में रहनेसवाले लोगों ने भी इस मुहिम को सपोर्ट किया। जिसका जैसे बन पड़ा उसने वैसे सपोर्ट किया। चंपारण में पेड़ लगाने का ऐसा आंदोलन पहले कभी देखा नहीं गया था। लेकिन सुशील कुमार की मेहनत और लगन की बदौलत आज चंपारण में 70 हजार से ज्यादा चंपा के पेड़ हैं। इस मुहिम को लेकर सुशील की दीवानगी ऐसी है कि उनके पास हर उस पेड़ की जानकारी है जिसे लगाया गया हो। वे खुद पेड़ को लगाने से लेकर इसके बड़े होने तक की देख-रेख की प्रक्रिया को मॉनिटर करते रहते हैं।
सुशील कुमार के अनुसार उन्होने यह अभियान विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर 22 अप्रैल, 2018 को शुरू किया था। उस दौरान कुछ ही रोज पहले मोतिहारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चंपारण सत्याग्रह समापन समारोह में भाग लेने पहुंचे थे। तब जोरदार अतिक्रमण हटाओ अभियान के कारण मोतीहारी की सड़कें खुली, काफी चौड़ी और साफ सुथरी लगने लगीं थी। उसी समय सड़कों के किनारे चंपा के पौधे लगाने से इस अभियान की शुरूआत की गई और फिर सिलसिला शुरू हो गया ‘चंपा से चंपारण’ का। अभियान को गति 5 जून, 2018 को पर्यावरण दिवस के मौके पर मिली, जब इस अभियान से जुड़े सभी लोगों ने मिलकर एक साथ 21 हजार चंपा के पौधे लगाए।
चंपा से चंपारण- चंपा के पेड़ों से फिर खिला उठा चंपारण
सुशील कुमार ने अपने अभियान ‘चंपा से चंपारण’ के जरिए आज चंपारण में फिर से चंपा के पेड़ों वाला स्थान बना दिया है। लेकिन उनका पौधारोपण का अभियान अभी थमा नहीं है। चंपा अभियान के साथ ही वे पीपल, बरगद और देसी नीम के पौधे लगाने के अभियान में जुट गए हैं। वे कहते हैं चंपा अभियान के दौरान ही हमने सोचा था कि, इसमें अन्य पेड़ों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
सुशील बताते हैं कि पीपल और बरगद के पेड़ों को लेकर लोगों में एक नेगेटिविटी है। ये पेड़ काट तो दिए जाते हैं लेकिन नेगेटिविटी के कारण कोई लगाना नहीं चाहता। ऐसे में हम कुछ ऐसी जगहों को चिन्हित कर रहे हैं जहां इन्हें लगाया जा सके। साथ ही हर एक पेड़ का रजिस्टर भी मेंटेन कर रह हैं, ताकि नष्ट हो गए पौधों की जगह फिर से पौधे लगाए जा सके। अभी तक 250 से ज्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं। वे कहते हैं कि अब हमने इसमे देशी नीम को भी शामिल किया है।
सुशील कुमार के इस अभियान से आपको नाम का महत्व तो पता चल ही गया होगा। हमारी भारतीय संस्कृति में नाम अक्सर प्रकृति से जुड़े हुए रहते हैं, ऐसे में अगर प्रकृति ही नहीं रहेगी तो इन नामों का महत्व ही क्या रहेगा। सुशील कुमार ने चंपारण को आज सही मायने में उसके नाम का अर्थ दिया है और साथ ही तेजी से प्रदूषित होते शहर को एक नया जीवनदान।