ज़मीन में गढ़े मटके में 18 घंटे पकने के बाद तैयार होता है कश्मीर का ‘हरिसा’

कश्मीर घाटी ना सिर्फ मौसम, सुन्दर नज़ारों बल्कि स्वादिष्ट खाने के लिए जानी जाती है। वैसे तो कश्मीर में चाहे आप कुछ भी खाएं सब स्वादिष्ट ही होता है मगर यहां के हरिसा की बात ही कुछ और है। क्योंकि इसे कश्मीर के सबसे पसंदीदा खानों में से सबसे पसंदीदा कहना ग़लत नहीं होगा। दरअसल इसका एक कारण ये भी है कि घाटी में हड्डियां जमा देने वाली ठंड से बचने और शारीरिक फुर्ती के लिए कश्मीर में हरिसा लोगों की पहली पसंद होता है। ये जितना स्वादिष्ट है समझ लीजिए कि ये उतना ही पौष्टिक भी है। हरिसा खाने के लिए सुबह ही शहर की सभी दुकानों पर लोगों की कतारें लग जाती हैं। दरअसल इतनी ठण्ड में हरिसा खाकर लोग पूरे दिन लोग गर्माहट महसूस करते हैं और साथ ही इसमें डाले गए मसाले सर्दी में होने वाली तमाम बीमारियों से बचाते हैं। जिन लोगों को शरीर में दर्द होता है, उनका दावा है कि ‘हरीसा’ खाने से दर्द से राहत मिलती है और कई अन्य बीमारियों से भी बचाव होता है।

हरिसा खाने में जितना लज़ीज़ है समझ लीजिए कि ये उतना ही बनाने में कठिन है। दूसरे किसी खाने की तरह ये 1 या 2 घंटे में नहीं बनता बल्कि इसको तैयार करने के लिए कम से कम 17 घंटे का समय चाहिए होता है। इसलिए हरिसा को लोग घर में नहीं बना पाते हैं बल्कि इसे ढाबों से ही खरीदते हैं। हरिसा को बनाने के लिए ख़ास महारत हासिल होनी चाहिए। क्योंकि इसे बनाना हर किसी के बस की बात नहीं, इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए सही मीट का चयन और अच्छे मसालों का चयन करना बहुत जरुरी होता है। इस पकवान को कश्मीरी केसर, सुगंधित मसाले, चावल, मांस और नमक के मिश्रण से बनाया जाता है। कैलोरी और प्रोटीन सामग्री से युक्त, हरीसा आसानी से पच जाता है। इसे एक बड़े मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है जो पूरा ही ज़मीन के अंदर गढ़ा हुआ होता है। इसे पूरी रात लकड़ी जलाकर गर्म रखा जाता है और सुबह ताजा खाया जाता है। अच्छी हरिसा बनाने में तकरीबन 17 से 18 घंटे लगते हैं।

सबसे पहले, चावल बनाया जाता है और इसे मसालों के साथ अच्छे से मिला दिया जाता है। फिर इसमें बिना हड्डियों वाला मांस एड किया जाता है। इसमें बहुत सारी मेहनत लतगी है और इसे बनाने में काफी समय भी देना पड़ता है। हरिसा बनाने के लिए यहां के दुकानदार पूरी ईमानदारी से कई घंटों की मेहनत से इसे बनाते हैं। इसी वजह से इतने सालों बाद भी इसका स्वाद जस का तस बना हुआ है। वरना लोग आजकल समय की बचत करने के लिए खाना पकाने के काम में जल्दबाज़ी करने लगे हैं। वैसे तो हरीसा श्रीनगर के पुराने शहर के नवाकदल, राजौरी कदल, सराफ कदल, गोजवारा, इलाकों में होती थी, लेकिन अब इसकी बढ़ती डिमांड को देख श्रीनगर समेत घाटी में हर जगह इसकी दुकानें खुल चुकी हैं। न केवल कश्मीरियों के बीच, बल्कि सर्दियों के दौरान कश्मीर आने वाले पर्यटकों के लिए भी ये पसंदीदा चीज है। आप कह सकते हैं कि हरीसा एक खाने से कहीं ज़्यादा एक परंपरा है जो कश्मीरियों के दिल और उनकी संस्कृति के बहुत करीब है।

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