22 साल की उम्र जब ज़्यादातर नौजवान अच्छी नौकरी बड़ी गाड़ी और ऐश और आराम की ज़िंदगी के सपने देखते हैं मगर देश में एक ऐसा भी नौजवान हुआ जिसने 22 की उम्र में घायल अफसर से कहा कि ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’ और जाकर खुद दुश्मनों से भिड़ गया, और फिर हंसते हंसते शहीद हो गया।
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा आज भी अपने साथियों परिवारवालों और देशवासियों के दिलों में जिंदा हैं। विक्रम नेताजी सुभाष चंद्र बोस और चंद्रशेखर आजाद से प्रभावित थे। वो अपनी माँ से अक्सर कहा करते थे कि माँ मुझे देश के लिए कुछ करना है। चंडीगढ़ का डीएवी कॉलेज हो या फिर पंजाब यूनिवर्सिटी का कैंपस हो या सेक्टर-17 का सैलून। शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा यहां के हीरो हैं।
Vikram Batra ने देश के लिए अच्छी नौकरी को भी ठुकराया
हिमाचल प्रदेश पालमपुर के घुग्गर गांव में 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। स्कूलिंग वहीं हुई और बाद में विक्रम डीएवी कॉलेज में चार साल पढ़े, उसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी में उन्होंने अपनी बाकि की पढ़ाई की, सीडीएस की तैयारी भी यहीं की और एमए इंग्लिश में एडमिशन भी लिया। विक्रम ने ग्रैजुएशन के बाद सेना में जाने का पूरा मन बना लिया और सीडीएस की भी तैयारी शुरू कर दी।
विक्रम को ग्रेजुएशन के बाद ही हांगकांग में अच्छी सैलरी में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन विक्रम का ज़ज़्बा तो सेना में जाने का था और देश की सेवा करने का था इसलिए उन्होंने इस नौकरी को ठुकरा दिया। जिसके बाद विक्रम को 1997 में जम्मू के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया।1999 में हुई कारगिल की जंग में विक्रम भी शामिल थे। इस दौरान विक्रम के अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें प्रमोशन भी मिला और वो कैप्टन बना दिए गए।
श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को ही दिया गया। बेहद कठिन क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को इस पोस्ट पर विजय हासिल की। इसके बाद सेना ने प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने की कवायद शुरू कर दी। इसका जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को ही दिया गया। जिस दौरान इस आपरेशन में लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर ने विक्रम बत्रा के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया।
Vikram Batra हमेशा करगिल के हीरो माने जाते रहेंगे
मिशन लगभग पूरा हो होने वाला था हर कोई राहत की सांस ले रहा था। मगर उससे पहले ही लड़ाई के दौरान एक विस्फोट में लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह ज़ख्मी हो गये। मगर तभी कैप्टन बत्रा ने कहा कि – ‘तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’ और वो उन्हें पीछे घसीटने लगे। इसी दौरान कैप्टन बत्रा की छाती में गोली लगी और उनकी जुबां से बस एक आखिरी शब्द निकला “जय माता दी” जिसके बाद वो शहीद हो गए।
उनकी शहादत को एक दशक बीत गया पर अब भी उनके दोस्त उनका जिक्र सुनते ही ये जुमले दोहराते हैं ‘या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर’, ‘ये दिल मांगे मोर’।