साल था, 1965 का जिस समय भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा था. वहीं ऐसा भी माना जाता है कि, इस युद्ध की शुरूवात भारतीय सेना ने 6 सितंबर 1965 को वेस्टर्न फ्रंट पर अंतरराष्ट्रीय सीमा को लांघते हुए की थी. हालांकि इस युद्ध को आज वो दर्जा नहीं दिया गया है, जितना की साल 1971 में हुए युद्ध या फिर 1962 में इंडो-चाइना युद्ध को दिया जाता है. क्योंकि इस युद्ध में न तो कोई देश हारा था और न ही कोई देश जीता है. क्योंकि दोनों ही देश आज भी ऐसा मानते हैं कि, जीत हमारी हुई थी.
हालांकि इस युद्ध से जुड़ा एक किस्सा है, जो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर देगा. क्योंकि जहाँ एक तरफ भारतीय सेना ने हर युद्ध की तरह इस युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया था. वहीं दूसरी तरफ इस युद्ध के दौरान एक किस्सा है, जो हर भारतीय को जानना चाहिए.
ये किस्सा है कि, जिस समय भारतीय सेना पाकिस्तान पर चढ़ाई के लिए जा रही थी. उस दौरान सेना ने पंजाब से दिल्ली जा रहे एक ट्रक को रूकवा लिया था. इस ट्रक में गेहूं की बोरियां लदी थी. उस दौरान फौज़ियों ने ट्रक ड्रायवर से कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ चल रही लड़ाई में हमें आपकी जरूरत है. जिसके बाद ट्रक ड्राइवर ने ट्रक में लदी सभी गेहूं की बोरियों को वहीं उतार दिया और सेना को लेकर ट्रक ड्राइवर पाकिस्तान की सीमा में घुस गया था. जिसके बाद उस ट्रक ने पाकिस्तानी सेना पर इस कदर कहर बरपाया की सभी ने अपने दांतों तले उंगलियां दबा ली.
ये कोई किस्सा नहीं है, ये हकीकत है और उस ट्रक ड्राइवर का नाम कमल नयन है. जो उस समय ट्रक नंबर पीएनआर 5317 ट्रक में लगभग 90 बोरी गेहूं की लादकर दिल्ली जा रहे थे. उस दौरान सेना की एक टुकड़ी ने कमल को रोका और उनसे कहा कि, “भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ गई है. हमें आपके ट्रक की जरूरत है.”

जिसके बाद कमल ने ट्रक में लदी सभी बोरियों को सड़क के किनारे ही उतार दिया और ट्रक में सेना का गोला-बारूद लेकर सेना की मदद के लिए निकल पड़े. इस दौरान जब कमल नयन पाकिस्तान के सियालकोट सेक्टर में सेना को लेकर पहुंचे तो, हर तरफ दुश्मनों की सेना थी. जिसके बाद कमल नयन बिना रूके सेना के ज़वानों को लेकर पाकिस्तानी सैनिकों पर ट्रक लेकर बढ़ गए. इस दौरान कई बार कमल नयन ने ट्रक को पाकिस्तानी सैनिकों पर किसी फिल्मी स्टाइल की तरफ चढ़ा दिया. साथ ही कई बार तो कमल नयन ने खुद हथियारों पर अपनी कमान बना ली. जिसके चलते कई बार उन्होंने खुद गोला-बारूद दुश्मनों पर फेंका.
जिस समय युद्ध विराम हुआ और कमल नयन वापस आए तो, वो एक ट्रक ड्राइवर नहीं रह गए थे. वो उन हीरोज में से एक थे, जिन्होंने भारतीय सैनिकों के साथ, उन्हीं की तरफ अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया था.
कमल नयन को भारतीय सरकार भी कर चुकी है, सम्मानित

वो कहते हैं न की कभी-कभी इंसान दूसरों से तो जीत जाता है, हालांकि अपनों से हार जाता है. जिस समय कमल ने भारतीय की मदद की थी. उनके पराक्रम और साहस को देखते हुए भारतीय सरकार ने उन्हें सेना के वीरता सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया था. साथ ही सरकार ने एक घोषणा की थी कि सरकार उन्हें 15 लाख रुपए नगद और 70 हजार रुपए सालाना देने की बात कही थी. हाँ, मगर अफसोस सरकार ये भूल गई.
जिसके चलते कमल कहते हैं कि, “जिस समय पाकिस्तानी सेना मेरे सामने खड़ी थी और मैं जंग के मैदान में था. मुझको किसी भी बात का डर नहीं लगा. लेकिन अब तो पांच दशक से ज्यादा का वक्त निकल गया है, लेकिन सरकार अपनी बातों पर खरी नहीं उतर पाई. जिसके चलते अब मैं हारा हुआ महसूस करता हूँ.”
कमल नयन- नेताओं के दर पर बहादुरी का प्रमाण देना पड़ता है
साथ ही अपनी जिंदगी का किस्सा साझा करते हुए कमल नयन कहते हैं कि, “एक वक्त था. जिस समय में तीन महीने तक अपना घर-बार छोड़कर देश के लिए मैं लड़ता रहा. जिसके लिए सरकार ने मुझे सम्मानित किया. लेकिन सुविधाऐं और पुरस्कार की रकम देना सरकार भूल गई. यही वजह है कि, आज के समय में मैं देश के कई विभागों और बाबूओं के चक्कर काटता हूँ. अब मैं थक गया हूँ. वहीं कुछ समय पहले मैं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से इस सिलसिले में मिल था. लेकिन वहाँ के स्टॉफ का रवैया देखकर मैं वापस आ गया.”
ज़ाहिर है, सरकार इस वीर सिपाही को भूल सकती है, सरकार अपने किए वादों को भूल सकती है. लेकिन हम नहीं, तभी तो हम इस वीर सिपाही 1965 भारत-पाकिस्तान को वो हीरो कहते हैं, जिसका पराक्रम और साहस आज हर भारतीय के लिए मिसाल है.