सड़कों पर निकलते हुए, चौराहे से गुजरते हुए या फिर मंदिरों मस्जिदों की राहों पर आप सबने हमेशा बच्चों को भीख मांगते देखते होगा और देख कर उनके लिए कभी-कभी कुछ करने के ख्यालात भी आपके अंदर आते होगें, हालांकि चाह कर भी आप उनके लिए कुछ नहीं कर पाते और फिर वहां से चुपचाप आप गुजर जाते हैं और अपनी जिंदगी में फिर मसगूल हो जाते हैं.
हालांकि इन सबके बीच भी कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उन बच्चों की भी फ्रिक करते हैं. उनके लिए अपना सब कुछ लुटा देते हैं. यहां तक कि वो लोग उन बच्चों को अपना नाम तक देते हैं. ऐसे ही हैं ओडिशा के पिछड़े इलाके कालाहांडी में रहने वाले एक दंपती, जो आज के दौर में उन बेसहारा बच्चों के देवदूत हैं. जो उन बच्चों को पालने का पूरा जिम्मा खुद उठाते हैं. ये पति-पत्नी सड़क पर बेसहारा घूमने वाले बच्चों को अपने घर लेकर आते हैं और उनके पालन-पोषण का करते हैं. श्यामसुंदर और उनकी पत्नी कसूरी जसोदा आश्रम के नाम से अनाथालय चलाते हैं. फिलहाल यहां 23 लड़के और 113 लड़कियां रह रही हैं.
Jasoda Anath Ashram – दान में मिले पैसों से बना अनाथालय

इन बच्चों को श्यामसुंदर ने अपना नाम भी दिया है. आम जनता के चंदे से चलने वाले इस अनाथ आश्रम को सरकारी मदद भी मिलती है. अपने नेक काम के चलते इलाके में इस दंपती की ख्याति बढ़ती ही जा रही है. श्यादमसुंदर बताते हैं, ‘कुछ साल पहले उन्होंने सड़क पर एक अनाथ बच्चे को घूमते हुए देखा. उनकी मां ने उसे घर लाकर गोद लेने के लिए कहा, तब से वह इस काम में जुटे हुए हैं. इसके अलावा वो कहते हैं हमने इस अनाथालय को दान में मिले पैसों से बनाया है.
Jasoda Anath Ashram – एक छोटे से कमरे से हुई थी अनाथ आश्रम की शुरूआत

जब से हमने इस काम की शुरूवात की है, हमें कई बच्चे सड़क किनारे, बसों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लावारिस पड़े मिले. इनमें ज्याएदातर लड़कियां थीं. ‘कुछ नवजात बच्चों को तो कुत्ते अपना शिकार बनाने का प्रयास कर चुके थे. ऐसे में हमने एक जगह छोटा सा कमरा बनाया ताकि लोग यहां अपने बच्चों को छोड़ सकें. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी तो हमने लोगों की मदद से अनाथ आश्रम का निर्माण करवाया. ‘ श्यामसुंदर का कहना है कि ये बच्चे अब अपने जैविक माता-पिता के नाम के स्थान पर हमारे नाम का इस्तेमाल करते हैं.
अब तक हमारे ही नाम पर आश्रम की 12 लड़कियों की शादी भी कराई जा चुकी है. हमने लोगों से अपील की है कि वे अपने नवजात बच्चों को सड़क पर छोड़ने के बजाय उनके आश्रम में छोड़ जाएं ताकि हम उनका जीवन संवार सकें. ऐसे लोग शायद इस दुनिंया में बहुत कम मिलते हैं. जो अपनी फिकर छोड़ कर उनके लिए काम करते हैं जीते हैं जोकि उनके अपने नहीं होते.