खाने के शौकीन तो शायद हम सभी है, लेकिन खाना बनाने का शौकीन हर कोई नहीं होता। लेकिन खाने का जुड़ाव हमेशा हमारे पेट से होता है। पेट है तो खाना चाहिए और पेट है तो दुनिया के सारे काम हैं, ऐसा कहते अपने लोगों को सुना होगा। लेकिन क्या हो अगर पेट ही न हो तो, क्या ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है, जिसके पास पेट न हो लेकिन वो खाने का भी शौकीन हो, सिर्फ खाना खाने का नहीं बल्कि बनाने का भी! जी बिल्कुल है। वैसे आज हम आपको जिनकी कहानी बताने जा रहे हैं, उनके बारे में जान कर आपको हैरानी तो होगी ही साथ ही आपको उनके बारे में जान कर गर्व भी होगा।
ये बात तो हम सब जानते हैं कि सोशल मीडिया के इस दौर में आज लोगों तक अपनी बात पहुंचाना कितना आसान है। कोई युट्यूबर है तो कोई ट्विटर पर आगे है, तो कोई टिक टॉक पर कमाल कर रहा है। वहीं कोई इंस्टाग्राम पर भी दुनिया भर के लोगों से अपनी चीजे साझा कर रहा है। इंस्टाग्राम पर वैसे तो आपको ट्रैवलर ज्यादा मिलेंगे, लेकिन मास्टर सैफ की भी कमी नहीं हैं। इन्हीं मास्टर शेफ में से एक हैं ‘ नताशा दिद्दी ‘। नताशा का इंस्टाग्राम पर ‘Thegutlessfoodie’ नाम का एक अकाउंट है। इस पर जाते ही आपको लजीज खाने के ऐसे ऐसे डिश मिलेंगे कि देखकर आपके मुंह में पानी आ जाएगा। नताशा के इस अकाउंट पर 70 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। लेकिन इंस्टाग्राम पर एक कामयाब और चर्चित सैफ बनने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। नताशा की ये कहानी उनके इंस्टाग्राम के अकाउंट के नाम Thegutlessfoodie में छुपी है।
Thegutlessfoodie का फंडा और नताशा की कहानी

Gut का मतलब क्या होता है? नहीं जानते… मै भी नहीं जानता था… पर थोड़ा डिक्शनरी चेक किया तो पता चला इसका मतलब होता है पेट, और जब इसमें less शब्द जुड़ जाता है तो मतलब हो जाता है, बिना पेट का! मतलब नताशा के इस अकाउंट का नाम है बिना पेट वाला आदमी जो खाने का शौकीन है। अब भला ऐसा यूनिक नाम क्यू..? दरअसल नताशा ने अपने इस चैनल का नाम अपने विशेषण के तौर पर रखा है। यानि वो भी खाने की शौकीन महिला हैं, हाँ मगर नताशा के पास पेट नहीं है। ये जान कर आप चौंक गए होंगे कि भला कोई आदमी/इंसान बिना पेट का कैसे हो सकता है। तो इसके लिए आपको नताशा की कहानी जाननी होगी। कहानी से पहले आपको ये क्लियर कर देते हैं कि पेट शरीर के अंदर होता है, मतलब जो बाहर हमें दिखता है वो कहने के लिए पेट होता है….
ये बात उन दिनों की है जब नताशा शादी के बाद दिल्ली शिफ्ट हुईं थी। इस नए शहर में जिंदगी ने अलग करवट ली। एक तरफ ऑफिस की लंबी वर्किंग आवर तो दूसरी तरफ नए शहर में ठीक से सैटल होने की टेंशन। इस सब के संग आईं एक और मुसीबत और वो थी नई नवेली शादी में अनबन। शादी ठीक से चली नहीं, जिसके चलते नताशा का तलाक भी हुआ और इस सब से पैदा हुआ स्ट्रेस। 2010 के करीब नताशा के बाएं कंधे में सुई सी चुभन वाली दर्द शुरू हुई। नताशा का ये दर्द खाना खाने के तुरंत बाद शुरू हो जाता था। जिसको लेकर नताशा ने कई डॉक्टर्स को दिखाया। बड़े से बड़े डॉक्टरों को ये कंधे का दर्द लगा और सबकी सलाह ऑपरेशन कराने की थी। डॉक्टरों के कहने पर नताशा ने दो बार रिकंस्ट्रकटिव सर्जरी करवाई। लेकिन दर्द गया नहीं। दर्द तब भी बिल्कुल वैसा का वैसा ही रहा। इसके बाद नताशा ने 6 महीने का स्पोर्ट्स फिजियोथैरिपी भी लिया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इस दर्द से पहले नताशा का वजन 83 केजी था, लेकिन इस पेन और दो reconstructive surgery के बाद वे पेन किलर लेने की आदि हो गईं थीं, जिसके कारण उनका वजन सीधा उल्टा यानी कि 38 केजी हो गया। नताशा इस समय पुणे शिफ्ट हो गईं थीं। इस दौरान उन्होंने स्वीडन में एक्सपर्ट्स डॉक्टर्स से भी सलाह लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सारे बेस्ट डॉक्टर्स की सलाह, अल्ट्रासाउड, एक्सरे, थेरेपी सब नाकाम रहे, नताशा का ये दर्द सही नहीं हुआ।
Natasha diddee के लिए फरिश्ता बनकर आए डॉ भालेराव

नताशा के कंधे में हो रहे असहनीय दर्द के पीछे कारण था उनका पेट। लेकिन कोई डॉक्टर इस बात को समझ नहीं पा रहा था। इसी बीच एक बार जब नताशा हॉस्पिटल में थी, तब डॉ. एस एस भालेराव से उनकी मुलाकात हुई। इस बारे में नताशा बताती हैं, “एक बार वो हॉस्पिटल में अपने बेड पर वराजासन पोज में बैठी थी, क्योंकि बस इसी से उनके दर्द को थोड़ा आराम मिलता था… उसी दौरान एक आदमी आया और वो मुझे देख कर कुछ जानने की कोशिश करने लगा, इसी वक्त मेरे पाप भी अंदर आए और उनकी पहचान मुझसे लप्रोसिक सर्जन डॉ एस एस भालेराव के रूप में कराई। उन्होंने मेरी स्थिति को देकर तुरंत भाप लिया की मेरे पेट में अल्सर है, जिसके कारण खाना पचता नहीं और इससे हीं मेरे कंधे में दर्द बना हुआ है। मैं और मेरे पापा इस बात को जानकर शॉक रह गए, क्योंकि किसी और डॉक्टर ने कभी ऐसा नहीं बताया था।
डॉ भालेराव ने जांच के बाद बताया की नताशा के पेट में ट्यूमर है और नताशा की जिंदगी बचाने का एक मात्र उपाय है कि उसके पेट को ऑपरेशन कर के जल्द से जल्द निकला जाए। नताशा कहती हैं कि kem हॉस्पिटल के सूर्यभान भालेराव ने आठ घंटे के इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक करके उनकी जिंदगी बचा ली। मेरी जिंदगी उनकी कर्जदार है।
इस ऑपरेशन के बाद नताशा की जिंदगी बदल गई। क्योंकि वो एक ऐसी महिला थीं जिसके पास पेट नहीं था। वो खाना खाती तो वो 1 से 2 घंटे में बाहर निकल जाता। ऐसे में उनको दिन में दो से तीन बार न्यूट्रिएंट के रूप में थोड़ा थोड़ा खाना पड़ता। वहीं अब जब उनके पास पेट नहीं था तो शरीर में विटामिन बी की कमी हो जाती जिसका सीधा असर उनकी यादाश्त पर पड़ता। इसके लिए उनको अलग से विटामिन बी की मेडिकेशन लेनी पड़ती।
जब खाने ने बदली जिंदगी

Natasha diddee को खाने से लगाव बचपन में उनकी मां के कारण हुआ। नताशा की मानें तो बचपन में उनका ध्यान डांस और एक्टिंग की ओर था। ऐसे में उनकी मां को लगा कि कहीं उनकी बेटी एक्ट्रेस बनने की ओर न बढ़ जाए (उस समय एक्ट्रेस बनना बड़े घरों में अच्छा नहीं माना जाता था) इसलिए उनकी मां ने उनका ध्यान खाने की ओर कर दिया। नताशा ने आगे चलकर इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट दादर में एडमिशन भी लिया और एक सैफ के तौर पर ट्रेनिंग भी कंप्लीट कर ली। इसके बाद उन्होंने मुंबई के कई नामी होटेल्स, रेस्टोरेंट और फूड ऑर्गनाइजेशन के संग काम किया। शादी के बाद जब वो दिल्ली आईं तब भी उनका ये काम जारी था। लेकिन सर्जरी के बाद उनका ये प्रोफेशन एक अलग मुकाम तक पहुंचा।
नताशा बताती हैं कि, “सर्जरी से पहले मै भी बाकियों की तरह बस जिंदगी काट रही थी। लेकिन सर्जरी के बाद मुझे लगा कि जीने का दूसरा मौका मिला है। मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज ये था कि, मुझे ये बात स्वीकार करना था कि मेरे पास पेट नहीं है। भगवान का शुक्रिया की मै इसमें कामयाब हुई और मेरे शरीर ने बिना पेट के रहना अडॉप्ट कर लिया।”
Natasha diddee ने ये भी रियलाइज किया की उन्हें अच्छे खाने कि जरूरत है। इसी के साथ उन्होंने thegutlessfoodie नाम का एक पेज फेसबुक पर बनाया और अपने बनाए खाने की तस्वीरें और रेसिपी पोस्ट करने लगी। इसके बाद दोस्तों की सलाह पर 2014 में उन्होंने इसी नाम से इंस्टाग्राम पर भी अकाउंट बनाया और देखते हीं देखते वो फेमस हो गईं। उनकी रेसिपी और खाना लोगों को इतना पसंद आया कि दिन ब दिन उनके फॉलोअर्स की संख्या बढ़ती चली गई। यहां से उन्होंने कभी पीछ मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की..
और नताशा की जिंदगी निकल पड़ी एक दूसरे सफर पर, यही वजह है कि, नताशा कहती हैं, मैं मानती हूं कि खाना फस फ्री और कंफर्ट वाला हो। मै जो भी तस्वीर पोस्ट करती हूं वो उस खाने की होती है जो मैं रोज अपने किचन में अपने लिए या अपने परिवार के लिए बनाती हूं। इनमे से ज्यादातर 30 मिनट के अंदर बनकर तैयार हो जाते हैं। मेरे खाने की तस्वीरें मैं अपने फोन के कैमरा से क्लिक करती हूं “
मंदिर से कम नहीं नताशा के लिए उनका किचन

Ted talks में नताशा ने लोगों के सामने बताया की उनके लिए उनका किचन मंदिर की तरह है। इसको लेकर वो एक कारण भी बताती हैं। वे कहती हैं कि वे एक ऐसे परिवार में जन्मी जहां एक धर्म नहीं था। उनके पापा हाफ पारसी और हाफ पंजाबी थे और उनकी मां मराठी। ऐसे में बचपन में उन्हें भगवान से प्रार्थना करने के लिए कोई प्रयेर नहीं सिखाया गया। जब वो सर्जरी के दौर से निकलीं तो उनके पास भी बाकियों की तरह भगवान एक सहारा थे। लेकिन उन्हें प्रार्थना करने आता नहीं था तो वो एक बार एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंची। लेकिन बकौल नताशा उन्हें उससे जवाब के बदले दुत्कार मिला। ऐसे में जब वो घर पहुंची तो उनके दिमाग में अचानक से ये बात खटकी की मंदिर में जाने पर जो काम किया जाता है वो अगर अपने खाने में अप्लाई किया जाए तो!
Natasha diddee बताती हैं कि, “वो किचेन में थीं और मंदिर वाली बात उनके दिमाग में चल रही थी। उन्हें एहसास हुआ कि मंदिर में चप्पल का निकलना और किचेन में खाने के इंग्रेडिएंट्स को छूने का मतलब है स्पर्श करने की भावना को खुद में समाहित करना, जब आप मंदिर में भगवान को देखते हैं उसी तरह खाने के इंग्रेडिएंट्स को देखने का मतलब है. देखने की भावना को समाहित करना, मंदिर में घंटे या मंत्रों को सुनना खाने के पकने की आवाज़ की तरह है, क्योंकि इससे आप सुनने की भावना को समाहित करते हैं, जब आप मंदिर की अगरबत्तियों का सुगंध और किचेन में खाने का सुगंध को महसूस करते हैं तो आप सूंघने कि भावना को समाहित करते हैं और जब आप प्रसाद खाते हैं या घर में बना खाना खाते हैं तब आप स्वाद के भाव को अपने में समाहित करते हैं।”
इस विचार ने नताशा के लिए किचेन को उनका मंदिर बना दिया, जिसका सीधा असर उनके खाने में दिखा। हमारी भारतीय संस्कृति में ये कहा भी जाता है कि, हमारा कर्म ही हमारा धर्म होता है। इसलिए शायद आज भी हमारे देश में काम या काम करने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली चीजों की पूजा होती है। एक अच्छे बावर्ची /सैफ का कर्म है कि वो स्वादिष्ठ और अच्छा खाना बनाए ताकि, खाने वाले को आंनद भी आए और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे। इसलिए हमारी संस्कृति में घरों में खाने पर एक अलग जोर दिया जाता रहा है। आज नताशा कई नामी रेस्टोरेंट के मेनू का भी चयन करती हैं। लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा प्यार अपने किचन से है, और हो भी क्यों न आखिर ये हीं वो जगह है जहां उनकी क्रिएटिविटी को एक आकार मिलता है और हम जैसे उनके चाहने वालों को उनके द्वारा बनाए गए खाने को देखने का मौका मिल पता है।