ये तो हम सब जानते हैं कि खाना हमारे लिए कितना जरूरी है। बिना खाने के हमारे शरीर को एनर्जी नहीं मिल सकती और बिना एनर्जी के कोई काम संभव नहीं है, यहां तक की हमारा होना भी संभव नही है। दोस्तो, आज मैं खाने की बात इसलिए कर रही हूं क्योंकि, आज है 16 अक्टूबर यानि वर्ल्ड फूड डे.. जिसे मनाने की वजह शायद आप सब जानते ही होंगे।
इसे मनाने की शुरूआत फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ने आज ही के दिन साल 1945 में की थी। ताकि देश में भूखमरी से होने वाली समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक किया जा सके.. उन्हें खाने की IMPORTANCE समझाई जा सके.. तो वहीं, FAO ने फूड एक्सेसिबिलिटी, अवेलेबिलिटी और सस्टेनेबिलिटी को लेकर एक लक्ष्य रखा है कि 2030 तक दुनिया में जीरो हंगर हो। यानि की दुनिया में कोई भुखा नहीं सोएगा, हर किसी को हेल्दी फूड मिलेगा और खाने की बर्बादी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।
FAO के डायरेक्टर जेनरल जोस ग्राज़ियानो दा सिल्वा ने दुनिया के हर देश को अपने संदेश में कहा है कि, जीरो हंगर का मतलब सिर्फ लोगों को खाना देना नहीं बल्कि हमारी धरती को भी पोषण मिलने से भी है।

Food Day- सबसे फूडी नेशन के तौर पर जाना जाता है भारत
इसके अलावा अगर बात हमारे देश की करें, तो दुनिया में भारत सबसे फूडी नेशन के तौर पर जाना जाता है। यहां के हर एक कोने में आपको अलग—अलग तरह के पकवान खाने को मिलेंगे। और यह सिर्फ इस लिए possible है क्योंकि भारत का कल्चर कंपोजिट है।
यहां आपको दुनिया का सबसे जायकेदार खाना खाने को मिलेगा। लेकिन भारत के कल्चर में खाने को लेकर कई तरह की बातें और भी हैं। इन बातों को हम दो तरीको से देख सकते हैं पहला है सेल्फ फूड जिसमें यह चर्चा आती है कि किस तरह का खाना खाएं और कितना खाएं। यानी ये एक व्यक्ति के हेल्थ से जुड़ा है।
दूसरे पार्ट में यह चर्चा विश्व स्तर की है। जिसे हम हमारी इंडिननेस की थ्योरी भी कह सकते हैं। दरअसल, हमारे कल्चर में अन्न को अन्नपूर्णा मां माना जाता है। इसीलिए अन्न की बर्बादी को पाप समझा जाता है। इसी के आधार पर एक वैदिक श्लोक भी है —
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
इसका मतलब है कि सभी सुखी रहे, सभी निरोग रहे, सभी अच्छा देखें, कोई भी दुख का भागी न बनें और यह सब बिना खाने के पूरा नहीं होता है। हमारे भारत में एक कहावत है कि जैसा अन्न खाएंगे वैसा ही मन होगा और मन के हिसाब से ही तन होगा। वहीं अन्न दान को सबसे बड़ा दान माना गया है। ऐसे में भारतीय कल्चर की थ्योरी यहीं है कि दुनिया की सुख, शांति और समृद्धि के लिए खाने की बर्बादी नहीं बल्कि इसका दान करना चाहिए ताकि कोई भी भूखा न रह सके।
Food Day- देश में हर साल 194 मिलियन लोग भूखे सोते हैं
बात हमने कल्चर की कर ली। लेकिन आज के भारत में यह बातें सिर्फ किताबों में सिमट कर रह गई हैं। भारत जहां अन्न की पूजा होती है, उसी देश में भोजन की बर्बादी सबसे ज्यादा है। यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल जितना फूड प्रोडयूस होता है उसका 40 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है।
हमारे देश में हर दिन 194 मिलियन लोग भूखे सोते हैं, वहीं दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारतीय है। हमारे यहां उपजाए जानेवाले गेहूं का 50 फीसदी हर साल बर्बाद हो जाता है। खुद हमारी सरकार का मानना है कि हमारे देश में हर साल 50 हजार करोड़ की कीमत का खाना बर्बाद होता है। ये बाते और आंकड़े देखकर दीपक तले अंधेरे वाली कहावत याद आती है।
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दुनिया में जिस लक्ष्य से फूड डे मनाया जाता है उसी लक्ष्य से भारतीय संस्कृति में अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। लेकिन अफसोस..कि, अब इसका यह अर्थ नही रहा है। यह महज एक पूजा—पाठ की फॉर्मेलिटी मात्र बन गई है।
फूड डे को लेकर एफओए ने कलेक्टीव के साथ—साथ इंडिविजुअल प्रयासों पर भी जोर देने की बात कही है। जिसकी बात हमारी संस्कृति भी करती है। ऐसे में भारत में अगर खाने की बर्बादी रोकनी है और फूड एक्सेसिबिलिटी, अवेलेबिलिटी और सस्टेनेबिलिटी के संग जीरो हंगर के गोल को अचीव करना है अन्न की बर्बादी को पाप मानने की मान्यता और अन्न दान महादान की फिलॉसफी को प्रैक्टिकल रूप में लाना होगा।