जनवरी के महीने में चार ऐसे दिन आते हैं जो हमे अपने देश और इसके लिए हमारे अंदर की राष्ट्रीयता को उठने वाली भावना से हमेशा हमें जोड़े रहते हैं। इसमें सबसे पहला दिन है 15 जनवरी का जिसे हम, आप और पूरा देश आर्मी डे के नाम से जानता है। इसके बाद 23 जनवरी सुभाष चंद्र बोस की जयंती, 26 जनवरी गणतंत्र दिवस और 30 जनवरी महात्मा गांधी की पुण्य तिथि का दिन आता है। हम बात आर्मी डे की करने जा रहे हैं। आज हमारे देश की सेना पूरी दुनिया की ताकतवर सेनाओं की टॉप 5 लिस्ट में चौथे स्थान पर आती है। भारत से ऊपर अमेरिका, रूस और चीन का नंबर आता है। इस लिस्ट में भारत की रैंकिंग चौथे स्थान पर यूं ही नहीं है। इसके पीछे कई सारे बलिदानों की कहानी है, जिनमें भारतीय सेना के पराक्रम की वो गाथा है जिसे जानना हमारे और आपके लिए जरूरी भी है और गर्व करने योग्य भी।
वैसे तो भारतीय आर्मी की नींव 1776 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के अधीन रखी गई था। लेकिन देश में आर्मी डे 15 जनवरी को मनाया जाता है। इसका एक मात्र कारण है कि आज ही के दिन ही साल 1949 में जनरल कोडनान मडप्पा करियप्पा सेना प्रमुख नियुक्त किए गए थे। भारतीय सेना को जनरल करियप्पा ने अपने 30 साल दिए। वो 1953 में सेवानिवृत्त हो गये फिर भी किसी न किसी रूप में भारतीय सेना को सहयोग देते रहे। वे राजपूत रेजीमेंट से थे। कहते हैं एक सेना तभी सशक्त हो सकती है जब उसे एक सशक्त नेतृत्व मिल सके, और जनरल करियप्पा के रूप में भारत को आजादी के बाद पहला भारतीय आर्मी जनरल कुछ ऐसा ही मिला था। जिसने अपने नेतृत्व में भारतीय सेना को उस समय एक मजबूत सेना बनाया जब उसके पास कुछ भी नहीं था।

कौन थे के.एम करियप्पा?
हम में से बहुत लोग 1971 की लड़ाई को याद रखते हैं और इसी कारण हमें जनरल सैम मानेकशॉ याद भी रहते हैं। लेकिन हममें से बहुत से लोगों को जनरल करियप्पा का चेहरा याद नहीं है। जनरल करियप्पा का जन्म साल 1899 में कर्नाटक के कुर्ग में हुआ था। उन्होंने 20 साल की उम्र में ही ब्रिटिश इंडियन आर्मी को ज्वाइन कर लिया था। उन्होंने 1947 में भारत-पाक के बीच हुई पहली लड़ाई में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था। भारत-पाक आजादी के वक्त दोनों देशों के बीच सेनाओं के बंटवारे की जिम्मेदारी उनके ही पास थी। 1973 में राष्ट्रपति ने उन्हें फील्ड मार्शल पद से सम्मानित किया था।
उनके पहले आर्मी चीफ बनने को लेकर एक किस्सा मशहूर है। कहा जाता है कि, देश की आज़ादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इंडियन आर्मी के चीफ की नियुक्ती के लिए एक मीटिंग बुलाई। इसमें कई नेता और आर्मी ऑफिसर मौजूद थे। पंडित नेहरू ने अपनी बात कहते हुए कहा कि, मैं समझता हूं कि, हमें किसी अंग्रेज़ को इंडियन आर्मी का चीफ बनाना चाहिए क्योंकि हमारे पास सेना को लीड करने का एक्सपीरियंस नहीं है। अब बात पंडित जी ने कही थी तो किसी में उसे काटने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन उसी समय नेहरू जी का विरोध करते हुए एक आवाज आई ‘मैं कुछ कहना चाहता हूं’।
पंडित नेहरू ने कहा कि, आप जो कहना चाहते हैं वो कहिए.. इसपर उस व्यक्ति ने कहा — हमारे पास तो देश को भी लीड करने का भी एक्सपीरियंस नहीं है तो क्यों न हम किसी ब्रिटिश को भारत का प्रधानमंत्री बना दें। इस एक बात से ताहौत शांत और गंभीर हो गया। तब नेहरू ने पूछा कि, क्या आप इंडियन आर्मी के पहले जनरल बनने को तैयार हैं? अब बारी उस आदमी की भी जिसने नेहरू से सवाल किया था, उसके पास अच्छा मौका भी था लेकिन उसने कहा मैं तो नहीं लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा इसके लिए सबसे सही हैं। जिस आदमी ने करियप्पा का नाम आगे किया था वे लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर थे।
पाकिस्तान के प्रसिडेंट भी कर चुके थे के.एम करियप्पा के अंडर में काम
आजादी से पहले भारत और पाकिस्तान दोनों ही एक मुल्क थे। ऐसे में दोनों ओर की सेनाएं भी एक ही टीम का हिस्सा थीं। आजादी अपने साथ बंटवारा लाई और यह बंटवारा हर स्तर पर हुआ। आर्मी भी बंटी। कल तक साथ काम करने वाले लोग अब एक दूसरे के खिलाफ वाले टीम में थे। लेकिन इसके बाद भी कुछ रिश्ते बने रहते हैं। साल 1965 का एक किस्सा बहुत मशहूर है। इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था और इस समय जनरल करियप्पा के बेटे के.सी. करियप्पा भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे। युद्ध के दौरान वे भी जंग लड़ रहे थे और गलती से वे पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश कर गए। इसपर उनके विमान पर पाकिस्तान ने हमला कर दिया। लेकिन विमान से कूदने पर नंदा बच गए लेकिन यहां बात वहीं अभिनंदन वाली हो गई। पाक सेना ने नंदा को बंदी बना लिया।
लेकिन यहां कुछ अलग हो गया। नंदा के युद्ध में बंदी होने की खबर जैसे ही पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति अयुब खान को लगी तो उन्होंने रेडियो के जरिए पाकिस्तान में तुरंत ऐलान किया कि नंदा पाक सेना के कब्जे में हैं और पूरी तरह सुरक्षित हैं। अयूब खान ने उसी समय तुरंत करियप्पा को फोन लगाया और बेटे को रिहा करने की बात कही। इसके बाद में अयूब की पत्नी और उनका बड़ा बेटा अख़्तर अयूब उनसे मिलने भी आये थे।

आर्मी का सम्मान करें, चाहें कहीं भी हों
देश के आजाद होने के बाद से आजतक भारतीय आर्मी हर मोर्चे पर देश की सेफटी के लिए खड़ी हुई हैं। हमारी सेना ने कई सारी कुबार्नियां दी हैं जिन्हें हम और आप भूला नहीं सकते। इस देश की सेना के कारण ही आज हम अपने घरों में सुरक्षित हैं और देश की सीमाओं के अंदर सफलता के नए नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैं। ऐसे में हम सभी भारतीयों पर देश की सेना का एक कर्ज है जिसे हम सब को खुद से समझना चाहिए। ऐसे में हमे देश की सेना के हर एक सैनिक का अपने स्तर पर सम्मान करना चाहिए।
हम और आप कई बार यह आमतौर पर खबर सुनते हैं कि, कोई जवान जो देश की सीमा पर पहरा दे रहा हैं, उसका परिवार कई दिक्कतों को झेल रहा है, कई बार ऐसी खबरें आती हैं कि, उनकी जमीनें हड़प ली जाती हैं या उनके परिवार को किसी न किसी तरीके से तंग किया जाता है। सर्विस से रिटायर्ड होने के बाद उन्हें छोटे से छोटे कामों के लिए भी आम चक्कर पर चक्कर लगवाए जाते हैं, उनके सर्विस तक का कभी—कभी मजाक बनाया जाता है। कई लोग तो यह तक कह देते हैं कि नौकरी ही कर रहे थे कोई जंग तो नहीं लड़ रहे थे, वहीं कई बार अगर कोई सैनिक शहीद हो जाता है तो उसे कई बार उचित सम्मान तक नहीं मिलता, सरकार की ओर से घोषणाएं तो की जाती हैं लेकिन उसकी जमीनी हकिकत कुछ और ही होती है।
इन सारे काम में कहीं न कहीं हम और आप जैसे भारतीय लोग ही शातिल होते हैं। यह करके हम उनके उस समर्पण और त्याग का मजाक बना रहे होते हैं जो उन्होंने हमारे देश की सुरक्षा के लिए दिया हैं। एक सैनिक का अपमान पूरी सेना का अपमान है। इस लिए हमें ऐसे हालातों में हर उस रिटायर्ड सैनिक की मदद करनी चाहिए जिसने अपनी जिंदगी का एक हिस्सा सेना को समर्पित किया हो।