हमारे देश का नाम क्या है? हिंदी में इस सवाल का जवाब है भारत और यही सवाल अंग्रेजी में होगा तो हम भारत की जगह इंडिया नाम बताते देखे जाएंगे। शुरू से यही पढ़ाया गया है। भारत को अंग्रेजी में इंडिया कहते हैं। लेकिन दुनिया के किसी और देश के तो दो नाम नहीं है, फिर हमारे देश के दो नाम कैसे? ये सवाल भी हाल में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में पूछा गया था। जो काफी चर्चा में रहा। इस याचिका का मुख्य उद्देश्य था कि, देश का एक नाम होना चाहिए, जो कि भारत हो और इंडिया को रिप्लेस कर दिया जाए। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर याचिकाकर्ता को संबंधित मंत्रालय के पास जाने की सलाह दी, लेकिन कोर्ट ने ये भी कहा कि, नाम बदला जा सकता है और कई देशों ने अपना नाम बदला है। इसमें कुछ नया नहीं।
हमारे देश का नाम भारत या इंडिया?
असल में ये सवाल करना ही गलत है कि, इन दो नामों में से देश का नाम क्या है। हमारे देश का संविधान अपने पहले आर्टिकल में ही कहता है India that is Bharat। यानि देश का नाम भारत ही है। लेकिन इसके आलावा इंडिया नाम भी ऑफिशियल तौर पर यूज होता है। वहीं इन दो नामों के आलावा हमारे देश का नाम हिन्दुस्तान, आर्यवर्त और जम्बूद्वीप है। जो आपको आज भी किसी भी पूजा पाठ के मंत्रोचार में सुनने को मिल जाएगा।
भारत का सबसे पुराना नाम जम्बुद्वीप है। आज के भारत, आर्यावर्त, भारतवर्ष से भी बड़ा। दरअसल, जामुन फल को संस्कृत में ‘जम्बु’ कहा जाता है। अनेक उल्लेख बताते हैं कि, भारत में कभी जामुन के पेड़ों की बहुलता थी. इसी वजह से इसे जम्बुद्वीप कहा गया।
लेकिन हमारे देश को लेकर सबसे ज्यादा स्वीकार्य नाम है वो भारत है। हमारे देश को सबसे ज्यादा भारत नाम से सबसे ज्यादा पुकारा जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि, भारत का नाम भारत कैसे पड़ा? ज्यादातर लोगों के पास इसका जवाब कालिदास के महान काव्य अभिज्ञानशाकुन्तलम् से उदृत होता है। जिसमें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी का जिक्र है। इन दोनों के बेटे का नाम भरत था। कहा जाता है कि, उन्हीं के नाम पर भारत का नामकरण हुआ। कहा जाता है कि, ये महाकाव्य एक प्रेम आधारित काव्य था। जिसकी प्रसिद्धि बहुत थी, इसलिए इन्हीं भरत को भारत के नाम की उत्पति मानी जाती है।
ऐतरेय ब्राह्मण में भी दुष्यन्तपुत्र भरत का ही जिक्र मिलता है। जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने और अश्वमेध यज्ञ किया। उनके द्वारा शासित इस विशाल साम्राज्य का नाम भारत पड़ा। लेकिन इनके अलावा और भी कई सारे भरत हैं। जो भारत के नामकरण के उत्तराधिकारी है। इनमें भगवान श्री रामचन्द्र के भाई और राजा दशरथ के दूसरे बेटे भरत भी हैं। वहीं नाट्यशास्त्र के रचैयता भरत मुनि का नाम भी सामने आता है। लेकिन कई ऐतिहासिक साक्ष्य इससे भी पहले भारत नाम की प्रामाणिकता बताते हैं।

भरत गण और भारत का अर्थ
अग्निहोत्री लोग जो यज्ञ प्रिए थे, उन्हें भरथ या भरत जन कहा जाता था। वहीं वेद में भरत या भरथ का अर्थ अग्नि, या एक जन समूह से भी है। भर शब्द का अर्थ भरण करने , अग्नि , युद्ध और समूह है। ऐसा माना जाता है कि, इन लोगों के लिए यज्ञ आम था। इसलिए अग्नि इनका पर्याय बन गया। यानि भारत में भरत नाम का एक जन समूह था। जिसके राज को भारत कहा गया। वहीं एक भरत नाम के राजा का जिक्र भी आता है। जो तब की सरस्वती नदी और पंजाब के इलाके में राज करता था। इसके राज्य को ही भारत कहा गया हो।
दरअसल, भरतजनों का वृतान्त भारतीय इतिहास में इतना प्राचीन और दूर से चला आता है। भरत के बाकी अर्थ खत्म होकर सिर्फ एक भरत नाम पर टिक गए है। ऐसे में भारत की व्युत्पत्ति के सन्दर्भ में दुष्यन्तपुत्र भरत को ही याद किया जाता है। लेकिन मूल रूप से भर का अर्थ जन होता है यानि ये नाम भरत समूह के लोगों से ही आया।
वेद में भरत का अर्थ अग्नि होने का कारण ये भी है कि, भरत जन निरन्तर यज्ञकर्म करते थे। ऐसे में अग्नि भरतजनों का विशेषण हो गया। सन्दर्भ बताते हैं कि, देवश्रवा और देववात नाम के दो भरत ऋषियों ने मंथन के द्वारा आग जलाने की तकनीक खोज निकाली थी। इसलिए अग्नि यानि आग को भारत कहा गया।
ये लोग वेदपाठ करते थे। ऐसे में इनकी वाणी को भारती कहा गया। यह काव्यपाठ सरस्वती के तट पर होता था। इसलिए यह नाम भी कवियों की वाणी से जुड़ा रहा। यहीं कारण है कि, भारती और सरस्वती वेद और अन्य शास्त्रों में बहुत जगह मिलते हैं।
दसराजन युद्ध और भारत
ऋग्वेद में दसराजन युद्ध का जिक्र है। इस युद्ध से भारत नाम का गहरा संबंध है। दसराजन का अर्थ है दस राजाओं का युद्ध। तब के सरस्वती और आज के घग्घर के कछार में बसने भरतजनों के अनेक काबिले थे इनके संघ को ही भरत कहा गया। भरत संघ के राजा सुदास थे। जिनका काबिला तृत्सु था। उस समय सरस्वती नदी के पूरे इलाके पर सूदास का राज था।
दस राजन युद्ध में सुदास के तृत्सु क़बीले के विरुद्ध दस अन्य प्रमुख जातियों के गण या जन लड़ रहे थे। इनमें पंचजन (जिसे अविभाजित पंजाब समझा जाए) यानी पुरु, यदु, तुर्वसु, अनु और द्रुह्यु के अलावा भालानस (बोलान दर्रा इलाक़), अलिन (काफ़िरिस्तान), शिव (सिन्ध), पक्थ (पश्तून) और विषाणिनी क़बीले शामिल थे। यह युद्ध सुदास ने जीता था।
असल में ये युद्ध दो महान ऋषियों के बीच था जिनका नाम वशिष्ठ और विश्वामित्र था। सुदास के सलाहकार वशिष्ठ थे। और बाकी दस राजाओं के विश्वामित्र। दसराजन युद्ध के बारे में कहा जाता है कि, ये युद्ध महाभारत से भी करीब ढाई हजार साल पहले हुआ था।
महाभारत में भारत नाम
जैसा कि, हमने बताया दस राजन युद्ध के बाद भरतजनो का राज हो गाया। तब से इनके द्वारा शासन किए जाने वाले भू भाग में आने वाले सभी वंश या जनो के संघ को भारत कहा जाने लगा।
महाभारत जोकि इसके ढाई हजार साल बाद हुआ वो मुख्य रूप से एक परिवारिक झगड़ा था। यानि कौरव और पांडव के बीच राज करने को लेकर हुआ युद्ध। लेकिन ये परिवारिक झगड़ा महा समर बन गया।
क्योंकि, इस युद्ध में पूरे भारत भर के राजाओं ने कौरव या पांडवों की तरफ से युद्ध में भाग लिया था इसे महाभारत कहा गया।। श्री कृष्ण जो की यदु वंश के थे, उनके सैनिकों ने भी इस युद्ध में भाग लिया था। महाभारत में उस समय के भारत का भगौलिक चित्रण भी मिलता है।

ईरान से संबंध और हिन्दू शब्द
भारत के बारे में तो जान गए। लेकिन हिन्दुस्तान नाम का भी एक पुराना इतिहास है। आम तौर पर हिन्दू शब्द को लेकर कहा जाता है कि, ये मुगल काल या मुस्लिम शासकों के समय आया हुआ शब्द है। लेकिन असल में हिन्दू शब्द मुस्लिम इतिहास और ईशा के इतिहास से भी पुराना है।
दरअसल, सिंधु घाटी सभ्यता के समय ईरानियों और भारतीयों का गहरा संबंध था। ईरान का पुराना नाम फारस था, इससे भी पहले इसका नाम अर्यनम, आर्या या आर्यान था। जिसका जिक्र ज़रस्थ्रू धर्म के ग्रंथ अवेस्ता में मिलता है। कहते हैं कि, हिंदुकुश के उस पार अर्यान था और इधर आर्यव्रत। दोनों ही बड़े प्रभावशाली संघ थे।
अग्निपूजक ज़रस्थ्रूतियों और भारतीय परंपरा दोनों में अर्यमन, अथर्वन, होम, सोम, हवन जैसी समानअर्थी पदावलियाँ हैं। इस पार यज्ञ की परम्परा थी तो उधर यश्न की। अवेस्ता की भाषा और संस्कृत में भी गहरा संबंध है। उस समय की ईरानी संस्कृति वैदिक मूल्यों पर आधारित थी।
हिन्दुस्तान और इंडिया
ईरानियों के कारण ही भारत का नाम बाकी के पश्चिमी देशों तक फैला। अक्कादी सभ्यता के समय पहली बार हिन्दू शब्द का जिक्र मिलता है। तब भारत का संबंध उस समय के अक्कदी, सुमेरु, बेबीलोन और मिस्र हर सभ्यता से था। अखमनी वंश के शिलालेख पर हिंदुश शब्द का जिक्र आता है। जो हकमनी राजा दारा का है जिसमें उसने अपने राज्य का जिक्र किया है। जिसमें उस समय भारत के तीन सत्रप भी थे। यानि हंदुश शब्द ईशा से 2 हजार साल पहले आ गया था।
उस समय सिंध का मतलब केवल एक धारा से नहीं था, इसका अर्थ सागर, धारा और जल भी था। सिंधु के तब के सप्तसिन्ध’, वाले क्षेत्र को प्राचीन ईरानी ‘हफ़्तहिन्दू’ कहते थे। ऐसे में ये तो जाहिर है कि, हिन्द, हिन्दू, हिन्दवान, हिन्दुश जैसे शब्द अत्यन्त प्राचीन हैं। ऐसे में हिन्द के साथ ही संस्कृत के स्थान शब्द जो कि, फारसी में स्तान हो जाता है, मिलकर हिन्दुस्थान और फारसी में हिन्दुस्तान बना।
इंडिया की बात करें तो हिन्दश का ग्रीक समरूप इंडस है। इसी से भारत के लिए ग्रीक में India अथवा सिन्धु के लिए Indus बना। दरअसल ग्रीक इंडस, अरब, अक्काद, पर्शियन सम्बन्धों का ही परिणाम स्वरूप है।
मेगास्थनीज के अनुसार बख़्त्र, बाख्त्री (बैक्ट्रिया), गान्धार, तक्षशिला (टेक्सला) इलाक़ों से हिन्द, हिन्दवान, हिन्दू जैसे शब्द प्रचलित थे। यानि ये बात मौर्य काल और उससे पहले से होगी। मेगास्थनीज ने इसे अपनी इंडिका किताब में इसे इंडस, इंडिया जैसा नाम दिया।
लेकिन सबसे ज्यादा भारत शब्द पर जोर भारत में आम लोग देते हैं। क्योंकि, ये शब्द भारतीय प्राचीन गौरवमयी इतिहास का द्योतक है। ये हमारी सभ्यता और संस्कृति को दर्शाता है। इसलिए हमारे देश का नाम भारत है और हम सब भारतीय हैं।