बिरजू महाराज.. एक ऐसा नाम, एक ऐसी हस्ती.. जिनकी ताल पर कभी पूरा बॉलीवुड थिरका करता था। जिनके सुरों की चर्चा देश विदेश में हुआ करती थी आज उस हस्ती की ताल अचानक थम गई। कथक सम्राट बिरजू महाराज का 17 जनवरी 2022 को हार्टअटैक के चलते निधन हो गया। 4 फरवरी 1938 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ के ‘कालका-बिन्दादीन घराने’ में जन्में बिरजू महाराज में अनुभव की कोई कमी नहीं थी. बचपन से लेकर मरते दम तक उन्होंने सभी को अपनी कला से लुभाया है। उनके पैदा होने से लेकर मरने तक की उनकी कहानी काफी रोचक रही है.
दुखहरण से बिरजू महाराज बनने की कहानी-
कालका बिन्दादीन घराने में जन्मे बिरजू महाराज का नाम सबसे पहले दुखहरण रखा गया था। लेकिन बाद में इसे बदल कर बृजमोहन नाथ मिश्रा कर दिया गया. खास बात तो ये थी कि, जिस अस्पताल में बिरजू महाराज का जन्म हुआ था उस दिन अस्पताल में उन्हें छोड़कर बाकी सभी लड़कियां पैदा हुई थी. जिसकी वजह से इतनी लड़कियों में अकेला लड़का होने की वजह से बिरजू महाराज को बृजमोहन कहकर पुकारा जाने लगा.
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जब गोद में ही पिता को हुआ बिरजू की प्रतिभा का आभास
बिरजू महाराज की उम्र केवल तीन साल ही थी जब पहली बार उनके पिता अच्छन महाराज को उनके अंदर प्रतिभा का आभास होने लगा था। इसी के चलते उन्होंने बिरजू को बचपन से ही कला दीक्षा देना शुरू कर दिया। मगर अफसोस इसके कुछ सालों बाद ही जब बिरजू की उम्र केवल 9 साल थी तभी उनके पिता दुनिया को छोड़कर चल बसे और इसके बाद उनके दोनो चाचा, मशहूर आचार्य शंभू और लच्छू महाराज ने ही उन्हें प्रशिक्षित किया. और इसके बाद उनकी कला ही उनकी आय का जरिया बन गई.. 13 साल की उम्र में ही बिरजू महाराज ने दिल्ली के संगीत भारती में कथक की शिक्षा देना शुरू कर दिया था। फिर धीरे धीरे उम्र बढ़ने के साथ उनकी प्रतिभा और पद में भी इजाफा हो गया. कई नृत्य स्कूलों व कॉलेजों में नृत्य की शिक्षा देने का बाद बिरजू ने कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही अपना एक नाट्य विद्यालय खोला।

बिरजू महाराज ने हासिल की सुर संगीत की दुनिया में महारथ
बचपन से ही बिरजू महाराज संगीत और नृत्य की दुनिया में खोए हुए थे, और इसी के बलबूते पर ही उन्होंने विभिन्न तरह के नृत्यनाटक, नृत्यावलियों की रचना की. जिनमें गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव और फाग बहार इत्यादि का नाम शामिल हैं। इतना ही नहीं, सत्यजीत रॉय की फिल्म “शतरंज के खिलाड़ी” में भी इन्होनें उच्च कोटि की दो नृत्यनाटिकाओं की भी रचना की है. बिरजू महाराज को ताल वाद्यों की खास समझ थी, वो तबला, पखावज, ढ़ोलक, नाल और ताल वाले वाद्य के साथ वायलिन, स्वर मंडल और सितार आदि के सुरों को भी बेहतर तरीके से जानते थे।
देश ही नहीं विदेशों में बिरजू महाराज के संगीत को मिली पहचान
पंडित बिरजू महाराज ने संगीत भारती और भारतीय कला केंद्र में अध्यापन किया जिसके बाद दिल्ली में कत्थक केंद्र के प्रभारी का पद भी संभाला. संगीत के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया उन्हें प्रतिष्ठित ‘संगीत नाटक अकादमी’ , ‘पद्म विभूषण’ मिला। वहीं मध्य प्रदेश सरकार सरकार द्वारा इन्हें ‘कालिदास सम्मान’ से भी नवाजा गया है। 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में उन्हें लता मंगेश्कर पुरस्कार से नवाजा गया।
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