जब भी कभी दिवाली नजदीक आने को होती है, हर इंसान अपनी-अपनी तैयारियों में मग्न हो जाता है. जहां एक तरह दिवाली का पूरा सप्ताह ही कई सारे त्योहार कतार में लगे रहते हैं. वहीं दिवाली के पहले एक दिन पहले छोटी दिवाली भी मनाई जाती है. यही वजह है कि, अधिकतर लोग इसे छोटीप दिवाली के नाम से ही जानते हैं. हालांकि छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि, नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण, यमराज और बजरंगबली की पूजा अर्चना की जाती है. ऐसा भी माना जाता है कि, इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से मनुष्य को नरक में मिलने वाली यातनाओं में कमी हो जाती है. चलिए आपको बताते हैं कि, छोटी दिवाली की हमारी परंपराओं में कितनी अहमियत है-
नरक चतुर्दशी पर ही कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
ऐसा माना जाता है कि, नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने का त्यौहार कहा जाता है. क्योंकि हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन को भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था. यही वजह है कि, इस दिन को नरक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं.
विष्णु और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर एक असुर था, जिसने अपनी सिद्ध की शक्तियों से मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि देवी-दवताओं को भी परेशान कर रखा था. यही नहीं नरकासुर ने अपनी शक्तियों से साधु-संतों के साथ-साथ 16 हजार रानियों को भी बंदी बना रखा था. नरकासुर के ही आतंक से ड़रकर देवता और ऋषि-मनियों ने भगवान श्रीकृष्ण के पास जाकर मदद की गुहार लगाई थी. जिसके बाद श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, यहीं वजह थी कि, इन सभी रानियों ने श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था. जिस दिन नरकासुर का वध हुआ था…उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी.
छोटी दिवाली- कृष्ण की 16 हजार पटरानियों की असल हकीकत
जिस दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, तो उन पर ये मुसीबत आ खड़ी हो गई थी कि, समाज उन्हें अपनायेगा या नहीं…वहीं इन रानियों की मुक्ति के बाद जब उन पर ये मुसीबत आ खड़ी हो गई थी. क्या समाज उन्हें अपनाएगा या नहीं तो रानियों ने श्रीकृष्ण से गुहार लगाई थी कि इसका वो कोई उपाय निकालें. ताकि उनको उनका सम्मान वापस मिल सके. यही वजह थी कि, भगवान श्रीकृष्ण ने इन 16 हजार रानियों से सांकेतिक विवाह किया था. जिसके चलते इन सभी ने घर-घर दीपदान किया था. तब से लेकर अब तक ये परंपरा यूं ही चली आ रही है.
इस दिन का काम दिलाता है मुक्ति, नहीं जाना पड़ता यमलोक-

वहीं ऐसा भी माना जाता है कि, नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठने और स्नान करने का अपना अलग ही महत्व है. ऐसा करने से ऐसा माना जाता है कि, मनुष्य को यम लोक के दर्शन नहीं करना पड़ता है. यहीं नहीं इस दिन को शुद्ध कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर तिलांजलि दी जाती है. ये विधि यम-तर्पण कहलाती है. जिससे पूरे साल के पाप नष्ट हो जाते हैं.
इस दौरान इन मंत्रों का जाप किया जाता है.
ॐ यमाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नमः, ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दध्नाय नमः, ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्ठिने नमः, ॐ वृकोदराय नमः, ॐ चित्राय नमः, ॐ चित्रगुप्ताय नमः
संध्या में ऐसे जलाएं दीप
सबको मालूम है, जैसे-जैसे संध्या होती है. ठीक उसी तरह हमारे यहां देवताओं का पूजन और सभी विधियों की शुरूवात हो जाती है. इसलिए इस संध्या दीपदान करना चाहिए. साथ ही नरक निवृत्ति के लिए एक दीपक पूर्व दिशा में मुख करके अपने घर के मुख्य द्वारे पर रखना चाहिए. जिसके साथ ही घर में बने मंदिर से लेकर हर जगह दीपक जलाना चाहिए.