भारत में मनाए जानेवाले सबसे प्रमुख त्योहारों की जब बात आती है तो दो त्योहारों के नाम एक साथ ही हमारी जुबान पर आते हैं… ये हैं होली और दीवाली। दीवाली में तो अभी टाइम है लेकिन होली तो बस आ ही गई है। रंगो के इस त्योहार का इंतजार तो हमसब बेसब्री से करते हैं। भारत के इस रंगीन त्योहार की धूम तो पूरी दुनिया में रहती है। लेकिन बात भारत की करें तो यहां रंगो के इस त्योहार को लेकर जो उमंग, जो विविधताएं, जो कल्चर दिखता है वो दुनिया में अद्वितीय है। होली का त्योहार पूरे हिन्दुस्तान में कब से मनाया जाता है इसके ऐतिहासिक साक्ष्य तो मिलते नहीं और शायद इसलिए यह भी नहीं पता कि इस त्योहार की शुरूआत कब हुई।
लेकिन होली को लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं हैं। होली मुख्यरुप से दो दिनों का त्योहार होता है, पहला दिन होता है होलिका दहन का और फिर दूसरे दिन होती है होली। होली के बारे में तो हम लोग बहुत कुछ जानते हैं और इसका आनंद उठाते हैं, लेकिन अगर इस पर्व के उद्देश्य को समझना हो तो वो बिना होलिका दहन की चर्चा के पूरा नहीं हो सकता, जितना महत्व होली का है उतना ही महत्व होलिका दहन का है। महत्व तो जानना जरूरी ही है लेकिन यह सवाल भी आपके मन में होगा कि आखिर होलिका दहन क्यों किया जाता है?
होलिका दहन के इतिहास की बात करें तो इसके बारे में भी वैसे कोई एैतिहासिक साक्ष्य नहीं हैं, लेकिन कई पौराणिक कहानियां इससे जुड़ी हुईं हैं। ये कहानिया सत युग, त्रेता युग और द्वापर युग में अलग—अलग तरीकों से सुनाई गई है। लेकिन सबका महत्व एक समान है और जो मैसेज भी हमे मिलता है वो भी एक ही है। तो इन पौराणिक कहानियों के बारे में जान लेते हैं ओर साथ में इनसे मिसनेवाले मैसेज के बारे में भी आपको बताएंगे।
प्रह्लाद की कहानी और होलिका दहन

हिन्दू संस्कृति में प्रह्लाद को सबसे बड़े भक्तों में से एक माना जाता है, जिसे उसके पिता हिरण्यकशिपु से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था। प्रह्लाद ईश्वर को समर्पित एक बालक था, परन्तु उसके पिता ईश्वर को नहीं मानते थे। वो खुद को हि भगवान बताते और लोगों से उनकी पूजा करने को कहते। तो कहानी कुछ इस तरह से आगे बढ़ती है कि प्रह्लाद के मुंह से हर समय भगवान का नाम सुन उसके पिता गुस्से में रहते और वो अपने बेटे को सबक सिखाना चाहते थे।
उन्होंने अपने पुत्र को समझाने के सारे प्रयास किए, परन्तु प्रह्लाद में कोई परिवर्तन नहीं आया। जब वह, प्रह्लाद को बदल नहीं पाए तो उन्होंने उसे मारने का सोच लिया और इसके लिए अपनी बहन होलिका का साथ लिया, जिसे वरदान प्राप्त था कि यदि वह अपनी गोद में किसी को भी ले कर अग्नि में प्रवेश करेगी तो स्वयं उसे कुछ नहीं होगा परन्तु गोद में बैठा व्यक्ति भस्म हो जाएगा। होलिका ने प्रह्लाद को जलाने के लिए अपनी गोद में बिठाया, परन्तु ईश्वर का नाम जब रहे प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका खुद ही आग में जलकर भस्म हो गई।

कहानी क्या कहना चाहती है :— प्रह्लाद की इस कहानी में सिर्फ भक्ति की बात नहीं है बल्कि इसके अंदर जीवन से जुड़ी एक और भी फिलॉस्पी है। होलिका होली से पहले इसलिए जलाई जाती है क्योंकि होलिका भूत काल यानि की बीते हुए कल का सिंबल है। जो इंसान को अपने ही अंदर पड़े रहने देना चाहती है। अक्सर कोई घटना जो हमारे साथ होती है हम उससे कई दिनों तक प्रभावित रहते हैं, यह होलिका भी वहीं हैं। होलिका दहन करने से मतलब है अपने पास्ट को, उन पुरानी चीजों को छोड़ आनेवाले नए पन के लिए खुद को तैयार करना।
जब तक हम अपने पुराने विचारों को खत्म नहीं करेंगे तब तक हम किसी नएपन को अपनाने के लिए तैयार नहीं होंगे। जब होलिका जल जाती है तो सिर्फ राख बचती है, लेकिन यहां से एक नई शुरूआत होती है ठीक खालीपन पर नए रंग के चढ़ने के जैसे। अगले दिन की होली इसी नए उमंग का प्रतीक है। यहां घमंड और विश्वास के बीच के बारीक लाइन को भी दिखाया गया है।
कामदेव और भगवान शिव की कहानी और होलिका दहन
होली और होलिका दहन से जुड़ी एक कहानी भगवान शिव से भी जुड़ी हुई है। कहानी उस समय की है जब माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में देवताओं की ओर से एक चाल चली गई और एक एक्सपेरिमेंट किया गया। यह एक्सपेरिमेंट था कि भगवान शिव में काम के गुण को जगाने का ताकी उनकी तपस्या भंग हो। तो जिम्मेदारी काम के मामलों के एक्सपर्ट कामदेवता को सौंपी गई, वे भी अपने सामान के संग कैलाश पहुंच गए और लेग शिवजी पर काम शक्ति वाले तीर छोड़ने,
शिव की तपस्या तो टूटी लेकिन एक बहुत बड़े क्रोध के साथ, इतना ज्यादा क्रोध था कि शिव जी का तीसरा आंख खुल गया और बेचारे काम देवता जलकर राख हो गए। इस तरह दुनिया से काम की इच्छा ही खत्म हो गई। बेचारे देवता लोग शिव के पास पहुंचे और कहने लगे की भगवान जी अगर कामदेवता ही नहीं रहेंगे तो दुनिया आगे कैसे बढ़ेगी, ऐसे में शिव जी ने काम देव की राख को अपने ऊपर लगाकर फिर से उन्हें जिंदा किया।
कहानी का अर्थ :— इस कहानी का अर्थ भी पीछली कहानी की तरह ही है। यह कहानी बताती है कि जिंदगी में किसी चीज की बहुतायत इंसान के जिंदगी को दायरों में बांध देती है। ऐसे में जरूरी है कि हम एक समय पर खुद को विराम देकर अपने आप का आत्म मुल्यांकन करें और कई सारी चीजों को छोड़ दें और एक नई शुरूआत करें।
महाभारत की कहानी और Holika Dahan
महाभारत की कहानी से भी एक होली का जुड़ाव है। वैसे यह कहानी तो भगवान राम से भी पहले की है लेकिन भगवान कृष्ण ने इसका जिक्र महाभारत के समय धर्म राज युधिष्ठर से किया था। कृष्ण ने बताया – एक बार श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन मे एक असुर महिला थी। उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि उसे एक वरदान प्राप्त था, उसे गली में खेल रहे बच्चों, के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन, गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि – उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं। फिर ऐसा ही किया गया और तब से होलिका दहन और होली का त्योहार मनाया जाता है।
कहानी का अर्थ :— यहां भी रक्षसी महिला बीते हुए काल को दर्शाती है और बच्चे नए दौर को, यहां भी यह संदेश है कि आनेवाली पीढ़ी पुरानी पीढ़ीयों से अलग एक नई शुरूआत करती है। हमे जिंदगी में आए हर एक नएपन का उत्सव मनाना चाहिए।
होलिका दहन की कहानियां हमें अपनी जीनव का मूल संदेश देती हैं और वो है जिंदगी में आगे बढ़ने का। क्यों कि यह लाइफ आगे बढ़ने के लिए है, हम आगे बढ़ेगे तभी खुद से चीजों को एक्स प्लोर कर सकेंगे। हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा जिंदगी से सीखने और इसे जानने की इच्छा रखने वाली की रही है और हम तब तक कुछ सीख् या जान नहीं सकते जबतक हमारे अंदर जानने की इच्छा न हो और यह इच्छा तभी होगी जब हम अपने आप को खाली करें और तैयार कर सकें जीवन में आए नए पन को एन्जॉय करने के लिए। हमारी संस्कृति की इसी खासियत के कारण ही तो आज भी हम कह पाते
‘यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा’