सन् 1914 में शुरू हुआ पहला विश्व युद्ध 1918 में जाकर बस खत्म ही हुआ था. दुनिया भर में लाखों सैनिक शहीद हुए तो कई बेकसूर लोगों ने अपनी जानें गवाईं। दुनिया इस सदमें से उभर भी नहीं पाई थी कि, एक और विश्व संकट ने अपनी दस्तक दे दी।
ये विश्व संकट दुनिया की सबसे बड़ी महामारी स्पैनिश फ्लू का था। जितने लोग पहले विश्व युद्ध में नहीं मारे गए उससे ज्यादा लोगों की मौतें इस महामारी से हुई। 1918 में दुनिया में अपने पैर पसारने वाली इस महामारी ने करीब 2 सालों में ही 5 करोड़ लोगों को निगल लिया था। उस समय पूरी दुनिया की आबादी भी लगभग 180 करोड़ की ही थी यानी कि दुनिया का हर चौथा शख्स इस बीमारी की चपेट में था और सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि, भारत में इस बीमारी से करीब 2 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
स्पेनिश फ्लू का पहला मामला अमेरिका में पाया गया था, इससे संक्रमित हुए पहले शख्स का नाम Albert Gitchell था। एलबर्ट अमेरिकी आर्मी में रसोईए का काम करता था, विश्व युद्ध के दौरान ही मार्च 1918 में एक दिन अचानक उसके शरीर का तापमान 104 डिग्री पहुंच गया। सेना ने एलबर्ट को तुरंत पास के एक अस्पताल में भर्ती कराया। मगर जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक इस वायरस ने सेना के सैकड़ो जवानों को अपना शिकार बना लिया था।

Spanish Flu को भारत लाए थे ब्रिटिश सैनिक
पहले विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश इंडिया के सैनिक मुंबई बंदरगाह पर उतरे तो वो अपने साथ इन्फ्लुएंजा फ्लू यानी की स्पेनिश फ्लू को भी भारत साथ लाए। इस फ्लू ने मुंबई के साथ-साथ पूरे देश में मौत का ऐसा कहर ढाया कि, भारत में सिर्फ एक महीने के अंदर लाशों की कतारे लगनी शुरू हो गई। आलम ये था कि, गंगा में भी लोगों की लाशें बहने लगी थी। इस फ्लू को उस समय H1N1 वायरस का नाम दिया गया था।
जबकि, इस बीमारी का नाम स्पेनिश फ्लू पड़ने के पीछे भी एक अलग कहानी जुड़ी हुई है। दरअसल, इस बीमारी का संक्रमण सबसे पहले अमेरिका में फैला उसके बाद इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी में भी कई मामलें पाए गए। मगर इन सभी देशों ने इस बीमारी को दुनिया से छिपा कर रखा। लेकिन जैसे ही स्पेन में इस वायरस ने अपने पैर पसारने शुरू किए तो पहली बार इस महामारी के खतरे का जिक्र किया गया। स्पेन वो पहला देश था जिसने इस महामारी के भयावह रूप को दुनिया के सामने स्वीकार किया। इसी वजह से इस महामारी का नाम स्पैनिश फ्लू रख दिया गया।
दुनिया में स्पैनिश फ्लू से मरने वालों में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी शामिल थी। 20-40 साल के लोगों में इस महामारी का असर मौत तक रहा। तो वहीं इस दौरान Sex Ratio में भी काफी अंतर देखने को मिला। जिसकी वजह महामारी से मरने वालों में पुरूषों की तादाद ज्यादा होना थी। क्योंकि, उस दौर में ज्यादातर पुरूष ही काम करने बाहर जाया करते थे। और ठीक कोरोना की ही तरह ये भी एक से दूसरे में फैलने वाली बीमारी थी। तेजी से होती आदमियों की मौत के बीच कई देशों में मजदूरों की कमी होने लगी थी। जिसको देखते हुए महिलाओं को मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाने लगा।
इस महामारी से भारत में होने वाली मौतों का असर क्रांतिकारियों पर भी पड़ने लगा था। लोगों में अंग्रेजों को देश से बाहर फेंकने की चिंगारी भी इस दौरान तेजी से भड़कने लगी थी। क्योंकि, इस महामारी से भारत में होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजह ब्रिटिश शासन की लापरवाही को माना गया। खुद महात्मा गांधी भी इस महामारी का शिकार हुए थे। इस बात का जिक्र ब्रिटिश पत्रकार और लेखिका Laura Spinney द्वारा लिखी गई एक किताब में किया गया है। महात्मा गांधी उस वक्त साबरमती आश्रम में उपवास कर रहे थे, और उन्होंने इस दौरान लोगों से खुदकों दूर रखना सबसे बेहतर उपाय समझा। तो वहीं मशहूर उपन्यासकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्नी संग कई रिश्तेदारों ने इस महामारी में अपनी जान गवां दी थी।
भयावह थे Spanish Flu के वक्त देश के हालात
1920 के अंत तक दुनिया ने स्पैनिश फ्लू पर काबू पा लिया था, इसके बाद पूरा एक दशक बीत गया। मगर वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि नहीं कर पाए कि, आखिर इसके संक्रमण की शुरूआत कहां से हुई? 1930 के दशक में कई लोगों ने इसपर शक जताते हुए कहा कि, इस पैथोजन को जर्मन सेना ने एक हथियार के तौर पर तैयार किया था लेकिन वो लीक हो गया।
वैसे ऐसी ही कई बातें इस समय देश में फैले कोरोना वायरस के लिए भी कही जा रही हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो कोरोना को चाइनीज वायरस तक कह दिया है। खैर, उस दौर में भी इस महामारी पर लगाम कसने का बस एक ही तरीका काम आया और वो था Lockdown और Social Distancing. दरअसल, एक रिसर्च में ये पाया गया था कि, जिन अमेरिका सहित कई देशों के जिन शहरों में समय रहते लॉकडउन कर दिया गया और लोगों ने महामारी के खतरे को समझकर एक-दूसरे दूरी बनाना शुरू कर दिया था। उन शहरों में मौत के आंकड़े बाकी शहरों के मुकाबले काफी कम थे। उदाहरण के तौर पर अमेरिकी शहर San Francisco, saint louis, और Kansas में समय से लॉकडाउन कर लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का भा पालन किया जिसके चलते वहां अमेरिका के बाकी शहरों के मुकाबले मृत्यु दर 30-50 प्रतिशत कम थी।
करीब एक सदी पहले बीत चुकी इस महामारी का इतिहास किसी मौत के मंजर से कम नहीं रहा होगा। इस समय एक बार फिर दुनिया ऐसे ही एक विश्व संकट से गुजर रही है। देश के हालात और बद्तर ना हो इसके लिए भारत में समय से ल़ॉकडाउन का ऐलान भी कर दिया गया था। मगर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना सरकार के हाथ में नहीं है। उसके लिए हम लोगों को खुद आगे आना होगा। और एक-दूसरे से दूर बनाकर रखनी होगी ताकि ना सिर्फ हमारा देश बल्कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसी महामारी के चंगुल से जल्द निकल सके।