इंसान अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने की खातिर क्या-क्या कर सकता है? अगर आप ये सवाल किसी भी इंसान से करें तो सामान्यता उसका जवाब होगा की. अच्छी नौकरी हो, अच्छा पैसा हो, अच्छा परिवार हो तो इंसान एक बेहतर जिंदगी जी सकता है.
ऐसे में क्या वाकई ऐसा होना संभव है. क्या वाकई हमारी जिंदगी में बस इतना ही हो और हमारी जिंदगी आसान हो जाएगी. अगर वाकई आपको ऐसा लगता है तो कहीं न कहीं आप भी धोखे में हो सकते हैं. इस पर गहन चिंतन की जरूरत है. आज अगर हम एक बेहतर जिंदगी की बात करते हैं तो, उसकी शुरूवात भले ही हमसे या हमारे परिवार से होती है. हाँ मगर उसका जुड़ाव हमारे आस-पास के परिवेश, हमारे समाज से भी होता है.
हमारे आस-पास का माहौल भी हमें बेहतर बनाने में कारगर होता है. ऐसे में हमारा परिवेश ही है जो हमें बेहतर तरीके से जीने नहीं देता. ये बात केवल हम पर लागू नहीं होती. क्योंकि उस परिवेश में हम भी शामिल होते हैं. इसलिए हम भी जिम्मेदार होते हैं.
इसको आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि, हर साल एक संस्था ‘सतत् विकास समाधान नेटवर्क’ (Sustainable Development Solutions Network for the United Nations) दुनिया भर के देशों की Happiness Report जारी करती है. जैसा की नाम से मालूम चलता है कि, इस रिपोर्ट में कौन सा देश कितना खुशहाल है. पता लगाने की बात की जाती है. और हर साल की तरह ही Happiness Index Report में हमारा देश नीचे से टॉप से कुछ स्थान की दूरी पर है.
Happiness Report of India

अब अगर आप सोच रहे हैं कि, बीते साल दुनिया ने बहुत बुरा दौर देखा और ऐसे में भारत अगर नीचे से टॉप की तरफ है तो क्या होता है. लेकिन आपका मानना गलत है. इसलिए क्योंकि भारत इस Happiness Index Report में हर साल नीचे से टॉप की तरफ रहता है. सभ्यता, विविधता, खान-पान हर लिहाज में एक खदान जैसा भारत, जिसे जितना खोदों उतना ही अलग समझते रहो. जब इन जैसे सर्वे में नीचे से टॉप की तरफ आता हो हमारी खासियत कहीं न कहीं धूमिल होती दिखाई देती है.
हमारे देश में अनेकों भाषायें हैं, अनेकों तरह के लोग हैं. अनेकों विविधताऐं यही वजह है कि, हमारा देश पूरी दुनिया से भिन्न है. लेकिन यही विविधताऐं हैं कि, शायद हमारा देश दुनिया के इस सर्वे में नीचे से कुछ कदम छोड़कर जगह बना पाता है.
Sustainable Development Solutions Network for the United Nations देश की खुशहाली मापने के लिए महज छ: कारकों को शामिल करता है. जोकि Gallup World Poll पर आधारित होती है. वो कारक हैं-
- प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानता).
- सामाजिक सहयोग.
- जन्म के समय स्वस्थ जीवन प्रत्याशा.
- जीवन में विकल्प चुनने की स्वतंत्रता.
- उदारता.
- भ्रष्टाचार की धारणा.
अब अगर आपने इन्हें पढ़ लिया है तो, यही सवाल खुद से पूछ कर देखिए. जवाब क्या आता है जरा कल्पना करिए. आपने आखिरी किसी के सहयोग में हाथ कब बढ़ाया था, आखिरी बार दिल खोलकर कब हंसे थे, आखिरी बार अपने खातिर कब जीए थे, और आखिरी बार कोई काम कराने की खातिर घूस कब दिया था. और जितना आप कमाते हैं उतने में आपका गुजर बसर कैसा है.?
अगर इनका जवाब आपको मिलता है तो क्या होगा.? जाहिर है आपको मालूम चल जाएगा की हकीकत कहाँ जाकर ठहरती है. शायद यही वजह है कि, हमारा देश हर साल Gallup World Poll की Happiness Index Report में कहीं नीचे जाकर ठहरता है. क्योंकि हमारे देश में खुशियों के माने अधिकतर लोगों को समझ नहीं आते. वो बस घिसते जाते हैं-घिसते जाते हैं खुद को. महज़ अपनी जरूरतों को पूरा करने की खातिर. ऐसे में अनेकों ऐसे लोग भी होते हैं जो अपनी जरूरतों तक भी नहीं पहुंच पाते.

जाहिर है, हर इंसान की खुशियां (Happiness Matters) मायने रखती हैं. ऐसे में हमें भी सोचना हो कि, हम सामने वालो को कितनी खुशी दे पा रहे हैं. हम सामने वाले की कितनी तकलीफ कम कर पा रहे हैं.
अगर हम ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो निश्चित ही हम कुछ बदलने में भी कामयाब हो सकेंगे. हम Happiness Index Report में भी कहीं बीच में आ सकेंगे या फिर एक वक्त आए की टॉप 10 में शामिल हो सकेंगे. खैर ये तो कल्पना करने वाली बात है. हकीकत तो ये है कि, हमारे देश में अधिकतर हर इंसान एक ही रूल फॉलो करता है “अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता.” ऐसे में इस नजरिए को हम एक दिन में या एक साल में बदल नहीं सकते. हाँ मगर कोशिश जरूर कर सकते हैं.
क्योंकि हर इंसान की खुशियां मायने रखती हैं. हर इंसान को हंसने-खुश रहने का हक है. ऐसे में आप भी खुश रहिए और अपने आस-पास के परिवेश में लोगों को खुश रखने की कोशिश करिए.