World Coffee Day- चार बीजों से लाखो टन तक… कुछ ऐसा है भारत में कॉफी का इतिहास

भारत में चाय का चलन और इसका क्रेज आज भी है. लेकिन एक क्लास सोसायटी में शामिल होने की होड़ में अब लोग कॉफी की ओर मुड़ने लगे हैं। हम भारतीयों की एक आदत है “देखा—देखी — खेता—खेती” मतलब की भैया अगर सामने वाला चाय के बदले कॉफी पी रहा है तो हम भी कॉफी ही आडर्र करेंगे। कॉफी आज के वक्त में एक क्लास कैटोगरी की पेय पदार्थ है, जिसको आप भारत का अंग्रेजी वर्ग कह सकते हैं.

अब नाम में भी तो फर्क है ना चाय और कॉफी, कॉफी पहले से ही अंग्रेजी है और इसकी हिन्दी तो है नहीं.. तो यह आज के डेट में स्टैण्डर्ड पेय पदार्थ है। आपके आस पास सीसीडी, स्टारबक्स और न जाने किस-किस नाम के कॉफी कैफै मिल जाएंगे जहां कॉफी का रेट सीधे 100 रुपये से ही स्टार्ट होता है। मतलब कॉफी और चाय के रेट में भी फर्क है।

यमन में पहली बार उगाई गई थी कॉफी

खैर कॉफी को लेकर आज जो स्टैण्डर्ड है वो आज से नहीं बल्कि इतिहास में भी इसका हाल कुछ ऐसा ही था। कॉफी का नाम सुनते ही हम समझते हैं कि यह यूरोप या अमेरिका से निकली हुई चीज होगी। लेकिन असल में कॉफी एशिया में पैदा हुई और यहां से दुनिया भर में पहुंची। पहली बार कॉफी को यमन में उगाया गया। वहीं पर लोगों ने इसका नाम अरबी में ‘कहवा’ रखा जो बाद में कॉफी और इसी से कैफे शब्द बना। उस समय यह केवल सूफी संत लोग भगवान को याद करने से पहले पिया करते थे। साल 1414 आते-आते कॉफी मक्का में प्रचलित हो गया, लेकिन आम लोगों तक इसकी पहुंच नहीं थी। काहिरा में एक धार्मिक विश्वविद्यालय के पास कुछ घरों के लोग इसकी खेती करते थे। 1554 तक यह सीरियाई शहर अलेप्पो और ऑटोमन साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी इस्तांबुल तक पहुंचा और यहीं से यूरोप गया।

कॉफी

अरब में उसी समय कॉफी हाउस भी खोलने का चलन चल पड़ा था। लोग इन जगहों पर बैठकर चर्चा करते थे, मुशायरे सुनते थे और शतरंज खेलते थे। ये जगहें बौद्धिक जीवन का प्रतीक बनने लगी। आलम यह हो गया कि लोग मस्जिदों के बजाए कॉफी हाउसों में ज्यादा दिखने लगे थे। एक समय तो ऐसा भी आया कि, जब कॉफी पीने पर मौत की सज़ा तक का ऐलान हुआ। लेकिन कॉफी का क्रेज कुछ ऐसा सर चढ़ा था कि मुस्लिम विद्वानों को कॉफी के सेवन की अनुमति मिल ही गई।

एक सूफी बाबा के कारण भारत पहुंची कॉफी

भारत के बगल में लोग कॉफी के दीवाने हो रहे थे तो भला भारत में इसकी खुशबू कैसे नहीं पहुंची। जब मक्का में लोग कॉफी का जमकर स्वाद ले रहे थे तब उसी दौर में वहां भारत के एक सूफी संत हज यात्रा पर पहुंचे हुए थे। इस सूफी संत का नाम था बाबा बुदान। हज से लौटते समय उन्होंने कुछ लोगों को वहां यह पेय पदार्थ पीते देखा था। 

कॉफी का स्वाद बाबा ने भी चखा और उन्हें इसका स्वाद बड़ा पसंद आया। उस समय अरब से बाहर कॉफी को ले जाना अपराध था और मौत की सजा तक हो सकती थी। लेकिन बाबा बुदान ने हिम्मत करके कॉफी के चार बीज़ों को अपने पास रख लिया। कोई कहता है कि बाबा अपनी कमर में इसे बांध कर लेकर आए थे तो कोई कहता है कि बाबा 4 बीजों को अपनी दाढ़ी में छूपा कर भारत लाए थे।  

कॉफी बीन्स को भारत लाकर बाबा बुदान ने उसे चिकमंगलूर ज़िले के चंद्रगिरि पहाड़ियों में लगा दिया, जहां वो जल्दी उगने लगे। आज भी इस पहाड़ी पर कॉफ़ी उत्पादन होता है। 20वीं सदी के आते—आते कॉफ़ी पूरे दक्षिणी राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में लोकप्रिय पेय पदार्थ और फसल हो गई। अंग्रेजों के जमाने में चाय की डिमांड नार्थ इंडिया में ज्यादा बढ़ी लेकिन भारत को चाय देने वाले अंग्रेज भारत की कॉफ़ी संस्कृति के बारे में भी जानकर बहुत प्रभावित हुए।

उन्हानें इसका कमर्शियलाइजेशन किया और इसके लिए कई कॉफ़ी के बागान दक्षिणी कर्नाटक में कूर्ग की पहाड़ियों, उत्तरी केरल के वायनाड और अन्य क्षेत्रों में बनवाए गए। कल तक दक्षिण भारत में ही खपत होने वाली कॉफी बीन्स अब देश से बाहर जाने लगी और इसका एक स्थानीय बाज़ार भी विकसित हुआ।

कॉफी

19वीं सदी में दूध में बनने लगी कॉफी

19वीं शताब्दी आते-आते दक्षिण भारत के लोग कॉफ़ी को दूध के साथ बनाने लगे और इसमें मिठास के लिए शहद या गुड़ मिलाने लगे थे। इस दौर में कॉफी साउथ इंडिया के कई घरों की रूटीन पेय पदार्थ बन गई थी। लेकिन नॉर्थ में इसका उतना क्रेज नहीं रहा। यहीं कारण है कि पहली बार दक्षिण में ही 20वीं शताब्दी में Indian Coffee House की स्थापना की गई। इसी दौर में कॉफी के कंटेनर की जगह मिट्टी के बर्तन की जगह स्टील के टम्बलरों ने ले ली। इसमें दो हिस्से होते हैं, एक हिस्से में Fresh Ground भरा होता और दूसरा हिस्सा पीसी हुई कॉफ़ी से भरा होता है। यह काफी भारत में 20वीं सदी में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई। इसे दुनिया के अन्य जगहों पर में Kopi Tarik के नाम से जाना जाता है।

आज भारत दुनिया के 10 प्रमुख कॉफी उत्पादक देशों में से एक है। साल 2014-2015 में भारत में 3.27 लाख मेट्रिक टन कॉफी का उत्पादन हुआ था। हमारे यहां अरबिका और रोबस्ता दो तरह की कॉफी उगाई जाती है। कर्नाटक में देश की 71 फीसदी कॉफी उगाई जाती है। वहीं आज भारत की कॉफी तुर्की, जर्मनी, बेल्जियम, रूस और ऑस्ट्रेलिया में एक्सपोर्ट होती है। भारत में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र पद्रेश और ओडिशा में सबसे ज्यादा कॉफी का उत्पादन होता है। वहीं त्रिपुरा, नागालैंड और असम में भी कॉफी उगाई जाती है।

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