कहानी नंबर 1.
1794 में ब्रिटेन की जेंटलमैन मैगजीन में एक अर्टिकल छपा जिसे सलवेनस अर्बन ने लिखा था। इस मैगजीन में एक सर्जरी के बारे में जिक्र किया गया था और यह सर्जरी नाक से जुड़ी थी जिसे अंजाम दिया गया था पुणे की सड़कों पर और वो भी एक कुम्हार के यानि एक पॉटर के द्वारा। तब के जर्नल में लिखा गया था कि,
”अंग्रेजी डॉक्टरों ने भारत में 1793 में इस ऑपरेशन को देखा, जहां ब्रिटिश सेना मैसूर के सुल्तान टीपू साहिब से लड़ रही थी। गायसी जो ब्रिटिश सेना के लिए एक बैलगाड़ी चलाता था, उसे दुश्मन द्वारा बंदी बना लिया गया और उसकी नाक और हाथ काट दिए गए। उसी की नाक का यह ऑपरेशन था। एक नई नाक एक त्वचा-ग्राफ्टिंग प्रक्रिया के जरिए लगाई गई। उसके माथे से त्वचा और वांछित नाक के आकार का एक मोम टेम्पलेट का उपयोग किया गया। ऑपरेशन के दस महीने बाद बनाई गई एक पेंटिंग में उस आदमी का चेहरा एकदम नेचुरल लग रहा है। यह विधि यूरोप में विकसित की गई किसी भी चीज़ से कहीं बेहतर थी और इसे जल्दी ही अपनाया गया, जिसे ‘हिंदू पद्धति’ के रूप में जाना जाता है।”

इस खबर ने भारत की इस विद्या के बारे में जानने को लेकर यूरोपिय लोगों के बीच गजब की इच्छा जगी और फिर इसपर कई जर्नल्स छपे। वहीं ब्रिटेन मे भी इसके बाद नोज सर्जरी को सफलता पूर्वक अंजाम दिया गया ठीक उसी तरीके को आजमाकर जो पुणे में उस कुम्हार ने अपनाया था। सबसे पहले जस्टीन सी. कार्प्यू ने इस सर्जरी को सफलता पूर्वक अंजाम दिया, उन्होंने भारत में हुए ऑपरेशन को फॉलो करते हुए फोरहेड से ‘इंडियन प्लेप’ लेकर नोज़ सर्जरी की। 1816 में कार्प्यू ने फोरहेड के एक प्लेप से कटी नाक को ठीक करने के लिए दो सफल सर्जरियों के अपने लेख प्रकाशित करवाए। इसके बाद 1818 में जर्मन सर्जन कार्ल फर्डिनेंड वॉन ग्रफे ने इसी आधार पर इस सर्जरी को पूरा किया और उसी ने ‘राइनोप्लास्टी’ का नया नाम इस सर्जरी को दिया। इसके बाद कई सारी किताबें लिखीं गईं जिसमें भारतीय सर्जरी सिस्टम के वर्डस यूज हुए।
कहानी नं. 2
लेकिन 1890 में एक और कमाल की बात सामने आई। उस समय सर हैमिल्टन बॉवर जो भारत में तैनात थे, उन्हें उस समय रूस औरचीन के बोर्डर पर सिक्रेट मिशन के लिए भेजा गया। यहां उन्हें एक मार्केट में एक छोटा-सा मैन्युस्क्रिप्ट मिला। लेकिन हैमिल्टन उसे पढ़ नहीं सकें तो उन्होंने उसे कोलकाता में रुडॉल्फ हन्डलै के पास इसे भेज दिया। वहां यह पता चला कि, इस मैन्युस्क्रिप्ट में जो बात लिखी है वो संस्कृत में है लेकिन इसे लिखा गया था गुप्ता ब्राह्मी लिपी में। इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण बात लिखी थी वो यह थी कि, इसमें भारतीय चिकित्सा के बड़े ऋषियों के नाम थे, जैसे कि अत्रैय, हरिता, परासरा, सुश्रुत, वसिष्ठ, गर्ग आदि।
हन्डलै ने आगे चलकर सुश्रुत सहिंता को फुल इंग्लिश ट्रांसलेट किया ऐसे में फिर बात सामने आई कि, जो खबर जेंटलमैन मैगजीन मे छपी थी वो बात ही सुश्रुत सम्हिता में लिखी थी, ऐसे में यह बात तो सही हो गई कि, सर्जरी कि विद्या कई हजार सालों से भारत में एक नार्मल प्रक्रिया के रुप में मौजूद थी। लेकिन पश्चिमी लोगों की यही दो मुही बात भी देखने को मिली जब 1 जून 1895 को ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में एक रिपोर्ट में उन्होंने इसी तरीके को यूजलेस बता दिया। यानि एक तरफ तो वे सुश्रुत सम्हिता के नॉलेज को अपना तो रहे थे लेकिन दूसरी ओर इसे भारत का ज्ञान बता कर बेकार भी कह रहे थे, अब ऐसा क्यों था इस बात को आप खुद से भी समझ सकते हैं।
कौन थे ‘सुश्रुत’ जिन्हें कहा जाता है Father of plastic Surgery
इतिहासकारों में सुश्रुत के कालखंड को लेकर थोड़ा मतभेद है, कई लोग उन्हें 3 हजार ई. पूर्व का मानते हैं तो कई उन्हें 600 ई. पूर्व का। लेकिन यह बात पक्की मानी जाती है कि, उनका जन्म स्थान और उनके काम का स्थान बनारस था। उन्हें इंडियन मेडिसिन का पितामाह और प्लास्टिक सर्जरी का पितामाह कहा जाता है। उनके किए गए कामों की जानकारी उनके द्वारा रचित ‘सुश्रुत सहिंता’ में मिलती है। इसमें प्लास्टिक सर्जरी पर दुनिया का सबसे पुराना ज्ञान है। साथ ही में है आयुर्वेदिक ज्ञान। इस किताब को आयुर्वेदिक चिकित्सा के तीन महान ग्रंथों चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय में से एक माना जाता है।
सुश्रुत कौन थे? इस सवाल का जवाब अगर हम जानने के लिए निकलते हैं तो इतिहास हमें बहुत ही कम नॉलेज दे पाता हैं। क्योंकि मेडिकल साइंस के इस महान इंसान के बारे में इतिहास में हमें बहुत कम जानकारी ही मिलती है। उनके बारे में कहा जाता है कि, वो छठी शताब्दी बी. सी में रहे होंगे लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जाता कि, वो इससे भी पहले यानि की 1000 से 2000 बी.सी में रहे होंगे। यह भी हो सकता है कि, या तो वो चरक के समय के होंगे या फिर उनके बाद। यानि की उनके बारे में जानकारियां केवल अनुमान के आधार पर ही लगाई गई हैं। सुश्रुत के बारे में महाभारत में जिक्र मिलता है कि, वो महर्षि विश्वामित्र के बेटे थे, लेकिन ज्यादात्तर लोग इस बात से भी असहमत हैं। उनके बारे में जो जानकारी है वो मिथिकल कहानी है जिसमें पता चलता है कि, वो बनारस में रहते थे और वहीं पर अपनी मेडिकल विद्या से लोगों का ईलाज करते थे। कहानियों में मिलता है कि, भगवान की ओर से चिकित्सा के देवता धनवंतरी को भेजा गया था जिन्होंने दिवोदास को शिक्षा दी और उनसे फिर यह ज्ञान सुश्रुत को मिला।
भारत में शल्य चिकित्सा यानि प्लास्टिक सर्जरी का अभ्यास सुश्रुत के समय से पहले से ही जारी था लेकिन उन्होंने जो इसमें काम किया वो इसका सबसे उन्नत रुप था। उन्होंने सर्जरी के अलग—अलग तरीकों को ईज़ाद किया। जैसे कि, चींटियों को सिलने के लिए चींटी के सिर का उपयोग करना और कॉस्मेटिक सर्जरी में उन्होंने कई चीज़ों का आविष्कार किया। उनकी विशेषता राइनोप्लास्टी थी यानि कटी हुई नाक की सर्जरी। उस समय नाक भारतीयों के लिए एक बड़ी चीज मानी जाती थी। नाक का कटना मतलब ईज्जत का जाना, दंण्ड के रुप में नाक का कटना एक बड़ी सजा थी, ऐसे में नाक की सर्जरी भारत में बहुत फेमस रही। उनकी लिखी संहिता बताती है कि, एक सर्जन को कैसे काम करना चाहिए। उनकी सर्जरी में अलकोहल और केनाबीस यानि भांग के यूज होने की भी बात मिलती है। वे बताते हैं कि, इससे पेशेंट की इंद्रियां अलग तरह से काम करती हैं और सर्जरी करने में आसानी होती है।
सुश्रुत ने अपने कई शिष्यों को शल्य चिकित्सा का ज्ञान दिया। इन शिष्यों को सुश्रुत के रूप में जाना जाता था और उन्हें सर्जरी में प्रशिक्षण शुरू करने से पहले छह साल तक अध्ययन कराया जाता था। बताया जाता है कि, सुश्रुत अपने शिष्यों को उपचार के लिए खुद को समर्पित करने और दूसरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने की शपथ पढ़ाई शुरू करने से पहले दिलवाते थे। सुश्रुत अपने छात्रों को सर्जरी के चीर फाड़ सिखाने के लिए उन्हें सब्जियों या मृत जानवरों पर प्रैक्टिस करवाते, जैसे ही छात्र वनस्पति, जानवरों की लाशों के ऊपर अपने आप को सक्षम साबित कर देता तो फिर उन्हें अपनी सर्जन के रुप में काम करने की अनुमति मिलती थी। सुश्रुत के शिष्य को शल्य चिकित्सा के साथ ही शरीर रचना विज्ञान की भी शिक्षा दी जाती थी।
Father of plastic Surgery सुश्रुत ने चिकित्सा और फिजिशियन्स पर यह कहा
सुश्रुत ने ‘सुश्रुत सहिंता’ लिखी जिसमें उन्होंने चिकित्सकों के लिए कई निर्देश दिए हैं। वे कहते हैं कि, चिकित्सकों को अपने रोगियों का समग्र रूप से इलाज करना चाहिए। उन्होंने चरक की तरह ही दावा किया कि, शरीर में असंतुलन के कारण ही लोग बीमार होते हैं और यह चिकित्सकों का कर्तव्य है कि, वे इस असंतुलन को सही करने में मदद करें। सुश्रुत कहते हैं कि, सर्जन को मरीज के पूर्ण समर्पण का सम्मान करना चाहिए और अपने रोगी को अपने बेटे के रूप में मानना चाहिए। वे चिकित्सा की प्रैक्टिस करने वालों से कहते हैं कि, उनहे व्यापक रूप से पढ़ाई करनी चाहिए, बुद्धिमाता को श्रेष्ठ करना चाहिए और ज्यादा तर्कसंगत से ऊपर होना चाहिए।
साथ ही विभिन्न प्रभावों को पहचानने की कला भी उनके अंदर होना जरूरी है जो किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ सकते हैं। चरक ने पहले से ही बीमारी के इलाज के लिए एक रोगी के पर्यावरण और आनुवंशिक मार्करों को समझने के महत्व पर जोर दिया था। सुश्रुत ने अपने छात्रों को रोगी के प्रश्न पूछने और उससे सही जवाबों को निकलवाने की कला सिखाई थी। उन्होंने बताया है कि, अगर चिकित्सक बीमारी में पर्यावरणीय कारकों या जीवनशैली विकल्पों को खारिज करता है तो आनुवांशिकी पर विचार किया जा सकता है। लेकिन अगर बीमारी अनुवांशिक नहीं है और इंसान के आस—पास के पर्यावरण भी ठीक है तो उसकी जीवन शैली इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है।
सुश्रुत ने माना कि, मन और शरीर के संतुलन से ही अच्छा हेल्थ पाया जा सकता है और इसके लिए जरूरी है कि, हम उचित और अच्छा खाना खाएं और व्यायाम करें। साथ ही, वो यह भी कहते हैं कि, अगर रोगी का असंतुलन गंभीर हो तब सर्जरी सबसे अच्छा उपाय है। सुश्रुत के लिए, वास्तव में, सर्जरी चिकित्सा में सबसे अच्छी थी क्योंकि यह सबसे अधिक सकारात्मक परिणाम देती थी। उन्होंने खोए हुए बालों के विकास और अनचाहे बालों को हटाने के उपाय भी बताए। इसके अलावा सुश्रुत ने 12 तरीके के अघातों के ईलाज और 6 तरह के फ्रैक्चर के ईलाज बताएं हैं। सुश्रुत का यह ज्ञान भारत में प्रैक्टिकल रुप से जारी रहा और उनकी सहिंता भी जिसका बाद में अरबी,अंग्रेजी, जर्मन और कई भाषाओं में ट्रांसलेट हुआ। दुनिया ने सुश्रुत के नॉलेज को अपनाया और उसके आधार पर काम करते हुए आधुनिक युग के मेडिकल साइंस में प्रगति की लेकिन सुश्रुत को बाद में दूर करने की कोशिश की गई। खैर ऐसा हुआ नहीं दुनिया आज उनके बारे में जानती है और उनके नॉलेज का सम्मान करती है।