दोस्तों तिहाड़ के बारे में सुना है आपने..? वही तिहाड़ जहां लोगों को रखा जाता है जब वो दोषी पाये जाते हैं. उन्हीं दोषियों के बीच एक ऐसी लड़की भी है जो रोज तिहाड़ जाती है और लगभग पूरा दिन वहीं रहती है….लेकिन कोई दोषी बनकर नहीं बल्की कैदियों की प्रेरणा बनकर.
एलीना जॉर्ज….ये वो नाम है जो हर रोज तिहाड़ जेल के चक्कर इसलिए लगाती हैं ताकि वहां पर मौजूद कैदीयों की जिंदगी में बदलाव लाया जा सके.
एलीना खुद बताती हैं कि, “मैंने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान एक स्कॉलर ‘मिशेल फूको’ के बारे में पढ़ा था. उन्होंने समाज में अनुशासन और गलती करने पर अपराधियों के लिए सजा के संदर्भ में काफी कुछ लिखा है. जोकि बहुत अलग नजरिया था. आज वही नजरिया मानों मेरे लिए कॉन्सेप्ट बन मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. मैं वाकई जेल में बंद उन कैदियों के लिए कुछ करुँगी, जिससे उन लोगों में बदलाव लाया जा सके.”
TYCIA के ‘ट्रांसफॉर्मिंग तिहाड़’ प्रोजेक्ट ने बदला नजरिया- Eleena
वहीं की शुरूवाती सफर की बात करें तो वो बताती हैं की सोशियोलॉजी सब्जेक्ट से मास्टर्स पूरी करने के बाद मैंने TYCIA (Turn your concern into action) संगठन के साथ एक इंटर्नशिप के लिए अप्लाई किया था. जहां पर मुझे ‘ट्रांसफॉर्मिंग तिहाड’ नामक प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला. लेकिन मुझे इस दौरान किसी भी कैदी से मिलने का मौका नहीं मिला. उस समय उन्होंने पुलिस ऑफिशियल के साथ काम किया.
इन दो महीनों में मुझे समझ आ गया था की मुझे यहीं काम करना है और इसलिए मैंने TYCIA के साथ एक फेलोशिप प्रोगाम के लिए अप्लाई किया, इस प्रोग्राम में हमने तिहाड़ की जेल नंबर 5 के कैदियों के लिए काम करना शुरू किया. इस जेल में सिर्फ 18 साल से 21 साल की उम्र तक के लड़कों को रखा जाता है.
इस फेलोशिप प्रोगाम को सामान्य स्कूलों से पूरी तरह अलग बनाया. हमने जेल को ही एक स्कूल का रूप दिया और इसमें सभी कैदियों को शामिल किया गया. इस दौरान हमारा उद्देश्य था कि ये लड़के खुद को इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बने.
एलीना खुद बताती हैं कि, “जब मैंने पहली बार तिहाड़ जेल में कदम रखा, मुझे बहुत से लोगों ने कहा कि यह बिल्कुल भी मेरे लिए आसान नहीं होगा. मुझे सबने कहा की एक बार सोच लूं. मेरे मन में भी इसको लेकर उधेड़बुन थी और जब मैं वहां गयी, तो सब मुझे देख रहे थे कि, लेकिन मुझे समझ धीरे धीरे समझ आया की यहां सभी किसी भी बाहर से आने वाले इंसान को ऐसे ही देखते हैं.”
इस दौरान एलीना को कई बार ऐसा लगा की वो जो कुछ भी कर रही हैं उसका शायद कोई फायदा नहीं, क्योंकि अक्सर उन्हें सुनने को मिलता, ‘मैडम, जब हमारे घरवाले हमें नहीं पढ़ा पाए, तो अब कोई और क्या कर लेगा.’
इस दौरान मुझे सबसे ज्यादा हैरानी तब हुई, जब मेरे एक छात्र ने मुझसे कहा कि, “मैडम, अब तो हम जेल आ गए, तो अब क्या कर लेंगें पढ़ लिखकर.”
इसी तरह एलीना को कई बार जेल के अंदर ये सब सुनने को मिला लेकिन न तो एलीना ने कभी हार मानी और न ही अपनी सोच को बदलने दी. इस दौरान एलीना कहती हैं कि, “एक दिन जब मैं क्लास ले रही थीं तो, विषय था हिंदी की शब्दावली और जब मैं हिंदी के शब्द ‘च’ पर पहुँची तो किसी ने जोर से कहा चाकू. जिसके बाद मैं सुन्न रह गई लेकिन मैंने ये बात अपने अंदर ठान ली की अगर छात्र ऐसे ही पढ़ते हैं तो वो उससे भी सहमत हैं.”
सभी कैदियों को मिलना चाहिए, ‘सेकंड चांस’-Eleena
इन सबके दौरान एलीना बताती हैं कि, मैंने तिहाड़ के पुलिस कर्मियों से मिलकर बात की सभी जगह पता किया और अपने मिशन की शुरूआत की जिसका नाम मैंने ‘सेकंड चांस’ रखा. इस अभियान को ‘सेकंड चांस’ नाम देने का मेरा मतलब कैदियों को अपनी जिंदगी सुधारने और संवारने का दूसरा मौका देना है. जिससे वो जेल से निकलने के बाद कहीं ढंग की नौकरी हासिल कर सके और नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू कर सकें.
आपको बता दें कि, इस समय एलीना का ये प्रोजेक्ट ‘तिहाड़ जेल’ में तो चल रहा है. लेकिन व्यापक स्तर पर बदलाव लाने के लिए ज़रूरी है कि इस प्रोजेक्ट को भारत के सभी जेलों में शुरु किया जाए. क्योंकि सभी कैदियों को सुधरने का दूसरा चांस मिलना बहुत जरूरी है. इसके लिए एलीना ने इस प्रोजेक्ट को एक ‘सोशल एंटरप्राइज’ के रूप में खड़ा करने की सोची, जो कि इन कैदियों का सर्वेक्षण कर, उनकी ज़रूरत के हिसाब से ‘सेकंड चांस लर्निंग किट’ तैयार कर सकें. जाहिर है जैसे गलतियों को सुधारने का एक अलग मौका हर इंसान तलाशता है ठीक उसी तरह जेल में बंद कैदियों को सेकंड चांस मिलना भी जरुरी है. जोकि आज एलीना जॉर्ज कर रही हैं.
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