घूमने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में बहुत सी जगहें हैं। इनमें से कई ऐसी जगहें हैं जो हमें आश्चर्य में डाल देती हैं। भारतीय इतिहास में सबसे अद्भुत चीज़ रही है यहां कि स्थापत्य कला जो युगों से पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती रहीं हैं। वैसे तो दुनिया में सात वंडर्स हैं जिसमें एक ताजमहल भी है…., लेकिन अगर आप भारत में ही ढूंढ़ेंगे तो आपको इतने सारे वंडर्स मिलेंगे कि आप अपनी आंखों और कानों पर विश्वास नहीं कर सकेंगे।
ऐसा ही एक अजूबा स्थित है बिहार की राजधानी और ऐतिहासिक शहर पटना में… जिसे गोलघर के नाम से दुनिया जानती है। आज यह बिहार के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। हर दिन बिहार और देश के अलग—अलग हिस्सों से लोग स्थापत्य के इस अजूबे नमूने को देखने के लिए पहुंचते हैं।

कब, कैसे, क्यों और किसने बनवाया गोलघर?
अगर आप पटना घूमने जा रहे हैं तो आपके लिए यहां के फेमस गांधी मैदान से सबसे नजदीक कोई घूमने लायक जगह है तो वो गोलघर है। बयह अंडकार इमारत गंगा नदी के किनारे मुख्य शहर में स्थित है। आज तो गोलघर शहरी बसेरे के बीच एक छोटे से प्राकृतिक वातावरण में सिमट गया है। लेकिन पहले कभी इस जगह पर नेचुरल वातावरण का एक अलग ही रुप देखने को मिलता था। गोलघर में हर दिन कई लोग इसे देखने और इसके आर्किटेक्टचर का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं लेकिन शायद ही बहुत से लोग इस गोलघर के बनने के पीछे की कहानी के बारे में जानते हैं।
गोलघर कभी पटना की सबसे ऊंची इमारत हुआ करती थी। लेकिन अब बिस्कोमान भवन को सबसे ऊंचा माना जाता है। गोलघर का शाब्दिक अर्थ होता है ‘गोल आकार का घर’, लेकिन असल में यह कोई घर नहीं है बल्कि एक वेयर हाउस है। मतलब पटना का गोलघर आनाज के भंडारन के लिए बनवाई गई एक इमारत है, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था।

अगर आप इतिहास के पन्नों को खंगालेगें तो गोलघर के बनने के शुरूआत और अंत के पहले के सालों की कुछ घटनाएं इसके बनने के कारण की जानकारी देती हैं। दरअसल गोलघर के निर्माण का समय उस दौर के सबसे डार्केस्ट डेज में हुआ था। हर तरफ अकाल और भूखमरी का दानव अपने पैर पसारे हुए था और अंग्रेजों की सरकार लोगों की दिक्कतों को खत्म करने में असफल हो चुकी थी।
भूखमरी का वो दौर और अंग्रेजों की नीतियां
अंग्रेज जो भारत में एक व्यपारी के तौर पर तो आए थे लेकिन जल्द ही उन्होंने भारत पर अपना कब्जा जम़ा लिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का दोहन होने लगा। अंग्रेजों की नीतियों ने हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती को पूरी तरह से तहस—नहस कर दिया था। उस समय अंग्रेजी सरकार ने भूमि सुधार नीति के नाम पर कई सारे विवास्पद नीतियां लागू की, जिससे किसानों पर अतिरिक्त बोछ पड़ने लगा।
भारतीय किसानों की माली हालत बद से बदत्तर हो चुकी थी और ऐसे में ऊपरवाले का कहर बरपा सो अलग। साल 1770 में बंगाल में भीषण आकाल पड़े, तब बिहार भी बंगाल का ही हिस्सा था। इस दौरान भुखमरी के कारण करीब 10 मिलियन लोग मरे यानि कुल आबादी का 30 प्रतिशत। बंगाल और बिहार के कई इलाको में साउथ ईस्ट मानसून के नही आने के कारण सूखा पड़ गया। लेकिन इस दौरान कंपनी की ओर से कोई कदम नहीं उठाए गए।

1773 में भी यहीं हाल रहा। इतिहासकार मानते हैं कि भारत में इतने बड़े अकाल और उसके साथ होनेवाली भूखमरी का कारण ईस्ट इंडिया कंपनी थी, जिसने उस समय अपने फायदे के लिए भारतीय किसानों को कर्ज के तले दबा दिया था। वहीं अंग्रेजों ने किसानों पर दबाव बनाया था कि वे कैश क्रॉप ही उगाएं ऐसे में उन्हें धान गेहूं के बदले नील और अन्य चीजों की खेती करनी होती थी जिससे जमीन भी खराब हो जाती थी।
इन दो अकालों के बाद अंंग्रेजों में थोड़ी अक्ल आई और उन्होंने आनाज के भंडारन करने की नीति पर जोर दिया। अंग्रेजों ने आनाज के भंडारन के लिए नदियों के किनारे वाले बड़े शहरों में आनाज भंडारन घर बनाने पर जोर दिया जिसकी शुरूआत उन्होंने पटना से की। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों ने गोलघर जैसे कई वेयर हाउस बनाने की योजना बनाई थी लेकिन सिर्फ एक ही बना सकें और वो पटना में स्थित है।
पटना का गोलघर और इसकी खासियत
गोलघर को बनाने का काम उस समय के गर्वनर जेनरल वारेन हेस्टिंग्स के कहने पर शुरू करवाया गया था और इसके मुख्य आर्किटेक्ट थे जॉन गासर्टिन। लेकिन इस इमारत की आकृति को बनाने का असल श्रेय भारतीय कारीगरों को ही जाता है, जिन्होंने इसे बनाया। गोलघर की बनावट को देखकर हम कह सकते हैं कि इसे केवल भारतीय कारीगर ही बना सकते हैं क्यों कि उनके पास ऐसे अन्न भंडारन बनाने का पूराना इतिहास रहा है। गोलघर के बनावट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कोई पिलर यानि स्तंभ नहीं है, बावजूद इसके यह 29 मीटर की ऊंचाई के साथ खड़ा है। ग्राउंड लेवल पर इसकी गोलाई की चौड़ाई 426 फीट है।
वहीं इस इमारत के ऊपर एक गोल आकार का बड़ा ढक्कन है जिसे खोलकर इसके अंदर आनाज डाला जाता था जिसे अब भर दिया गया है। गोलघर के ऊपर चढ़ने के लिए 145 सीड़ियां हैं। इस इमारत की एक और बड़ी खासियत यह है कि इसके अंदर जाकर अगर आप कोई भी आवाज निकालते हैं तो आपकी एक आवाज 27 बार इको होती यानि की गूंजती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2011 में इसकी मरम्मत का काम शुरू किया था। लेकिन यह काम अभी भी जारी है। अगर आप पूरे पटना शहर और गंगा नदी के मनोरम दृश्य का नाजारा ऊंचाई से देखना चाहते हैं तो एक बार आपको बिहार की राजधानी में स्थित ‘गोलघर’ का दीदार जरूर करना चाहिए।