यूँ तो दुनिया भर में आज अनेकों खेल खेले जा रहे हैं. बात चाहे राष्ट्रीय स्तर पर हो या फिर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की, हर तरफ खेलों की धमा चौकड़ी जमी रहती है. हो भी क्यों न अगर खेल को जिंदगी से निकाल दिया जाए तो शायद कुछ शेष नहीं रह जाएगा लोगों के जीवन में. ऐसे में खेल ही एक ऐसी चीज है जो किसी भी इंसान को अनुशासन सीखने से लेकर उसमें टीम-भावना पैदा करती है. साथ ही उन्हें जीतने हारने में फर्क समझाती है.यही वजह है कि, आज मशहूर खिलाड़िओं को लोग सम्मान की नजरों से देखने के साथ ही भगवान की तरह पूजते भी हैं. ऐसे में आज हम आपको बताने आए हैं भारत के बारे में.. हमारे देश ने यूँ तो दुनिया को बहुत कुछ दिया. लेकिन क्या आपको मालूम है कि, हमारे देश ने दुनिया को खेल जगत में क्या-क्या दिया है? अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं.
शतरंज
दीमागदारों का सबसे मशहूर और पेचींदा खेल शतरंज दुनिया को भारत की देन है. शतरंज का इतिहास आज से लगभग 1,500 साल पुराना माना जाता है. आज के समय में जहाँ एक तरफ हम इस खेल को शतरंज के नाम से जानते हैं. वहीं उस समय में इस खेल को ‘चतुरंगा’ कहा जाता था. जिसका अर्थ होता है ‘सेना के चार भाग’. हडप्पा और मोहनजोदारों की खुदाई के दौरान पुरातात्विक अभिलेखों से मालूम चलता है कि, सिंधु सभ्यता के दौरान इस खेल को खेला जाता था. यही नहीं एक ऐसा समय भी था. जिस समय इस खेल को ‘अष्टपदा’ कहा जाता था.
अष्टपदा स्पाइडर का संस्कृत अनुवाद है. जिस समय गुप्त साम्राज्य भारतवर्ष में छाया था. उस समय भी इस खेल की लोकप्रियता देखने को मिलती है. ऐसे में 8×8 चेक बोर्ड पर इस खेल को पहले के समय में पासे के साथ खेलते थे. ऐसा माना जाता है कि, जिस समय अरवी और फ़ारसी भारत आए वो इस खेल को सीखकर भारत से बाहर ले गए. जहां से ये खेल पूरी दुनिया में मशहूर हुआ.
भारत में शतरंज के ग्रैंडमास्टर्स की बातें करें तो भले ही विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद का नाम आज सभी जानते हैं. लेकिन भारत में कुल 37 ग्रैंडमास्टर्स रह चुके हैं.
पोलो
एक ऐसा खेल जिसमें दो टीमें चार-चार खिलाड़ियों के साथ घोड़े पर होते हैं. दो गोल पोस्ट होते हैं और सभी एक लंबे लचीले मैलेट से लकड़ी की बॉल को अपने गोल पोस्ट तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. यूं तो, घुड़सवारी हमारे यहाँ के राजा महाराजाओं की सानो-शौकत हुआ करती थी. हालांकि पोलो का खेल मणिपुर में जन्मा था. जहां 1859 में सिलचर पोलो क्लब की सबसे पहले स्थापना की गई थी. इस क्लब को ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों और चाय बागानियों ने मिलकर की थी, जिसकी वजह थे तत्कालीन लेफ्टिनेंट जॉय शेरेर. जिन्होंने उस समय कुछ लोकल लोगों को ये खेल खेलते हुए देखा था और इस खेल की तरफ इतने आकर्षित हुए की उन्होंने इसे सीखने की निश्चय कर लिया था.
यही वजह थी कि, 1868 में पोलो माल्टा, 1869 में इंग्लैंड, 1870 में आयरलैंड, 1872-74 में अर्जेंटीना और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचा. वक्त के साथ-साथ इस खेल में कुछ बदलाव भी हुआ और आज ये दुनिया के सबसे चर्चित खेलों में से एक है. आज भले ही पोलो को ओलंपिक खेलों में शामिल नहीं किया जाता. हालांकि 1900-1939 के बीच पोलो एक ओलंपिक खेल हुआ करता था.
कब्बडी
कब्बडी का खेल अक्सर हमने अपने बचपन में खेला होगा, चाहे हम गाँव के हों या शहर के, कब्बडी खेल का इतिहास हमारे भारतीय इतिहास में काफी पुराना है. हालांकि इस खेल को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि 1936 के ओलंपिक में मिली. आज कब्बडी का खेल जहां बांग्लादेश का राष्ट्रीय खेल है तो वहीं उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार, हरियाणा, तेलंगाना में कब्बडी राज्यिक खेल माना जाता है. जहां सभी लोग अपने अपने तरीके से कब्बडी खेलते हैं. ऐसे में साल 1950 में ऑल इंडिया कब्बडी फेडरेशन का गठन किया गया था.
गठन के बाद कब्बडी फेडरेशन ने कई आधिकारिक नियम तैयार किए थे. जोकि आज भी कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लागू होते हैं. जहां साल 1980 में एशिया में पहली बार कब्बडी चैम्पियनशिप का आयोजन किया गया था. वहीं भारत इस खेल में चैंपियन बना था. इसके पहले साल 1979 में जापान में कब्बडी की शुरूआत हुई थी. जिसे सिखाने की खातिर उस समय के एशियाई एमेच्योर कब्बडी फेडरेशन की तरफ से सुंदर राम ने जापान का दौरा किया था और वहां लगभग दो महीने से ज्यादा दिन कब्बडी की कला बाजियां सिखाई थीं.
बैडमिंटन
बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल का नाम आज हर कोई जानता है. लेकिन इस खेल की शुरूवात कहां हुई शायद की कुछ लोग जानते हैं. जिस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था. उस समय पुणे के गैरीसन शहर में इस खेल को पहली बार खेला गया था. उस समय इस खेल को लोग पूना या पूनाह के नाम जानते थे. जबकि सबसे पहले बैडमिंटन के नियमों को पुणे में 1873 में बनाया गया था.
बैडमिंटन को दो खेलों से जोड़कर बनाया गया है. जिसमें एक बै बैटलडोर और दूसरा शटलकॉक जिन्हें जोड़कर बैडमिंटन बनाया गया है. बैडमिंटन का नाम ग्लूस्टरशायर में ब्यूफोर्ट के बैडमिंटन हाउस के ड्यूक से लिया गया था.
जिस समय बैडमिंटन खेल के लिए साल 1934 में अरंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन फेडरेशन संस्था तैयार की गई थी. उस समय उसमें इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, नीदरलैंड, आयरलैंड, कनाडा जैसे देश थे. हालांकि उस समय भारत इसका हिस्सा नहीं था. भारत साल 1936 में एक सहयोगी के तौर पर इस संस्था में शामिल किया गया था. अपने शुरूवाती समय में महाराष्ट्र के एक शहर के नाम पर पहचाना जाने वाला खेल आज दुनिया भर में खेला जाता है.
कैरम
अगर हम कहें की कैरम एक पारिवारिक खेल है तो, शायद ये कहना गलत नहीं होगा. हालांकि दक्षिण एशियाई मूल का ये सबसे लोकप्रिय खेल ‘स्ट्राइक-एंड-पॉकेट’ से मिलकर बना है. ऐसे माना जाता है कि, इस खेल की शुरूवात भारत और आसपास के क्षेत्रों में हुई है. अनेकों ऐसे क्लब और कैफे हैं जो नियमित तौप पर इसका टूर्नामेंट कराते हैं. आज जहाँ कैरम हर घर में मौजूद होता है. वहीं बच्चे बूढ़े हर कोई इसे काफी दिलचस्पी से खेलता है. 19वीं शताब्दी के शुरुआत में इस खेल को राज्य स्तरीय टूर्नामेंट के तौर पर आयोजित किया जाता था.
यही वजह थी कि, 1958 में पहली बार भारत में कैरम क्लबों का आधिकारिक संगठन तैयार किया गया था. जिसमें कैरम के टूर्नामेंट स्पोंसर करने के साथ-साथ इसमें लोगों को पुरस्कृत किया जाने लगा. जबकि 1988 में अंतर्राष्ट्रीय कैरम फेडरेशन चेन्नई में आया और फिर इस खेल को यूरोप से लेकर अमेरिका तक में लोकप्रियता मिली. जहां भारत ही इस खेल को लेकर पहुंचा. वहीं दूसरी सबसे खास बात यह है कि, अमेरिका में लकड़ी से बने सबसे महंगे कैरम बोर्ड भारत से ही आयात किए जाते हैं. आज हमारे देश में सबसे ज्यादा चर्चित खेल अगर कुछ है तो वो है क्रिकेट. हालांकि खेल जगत में हमने इन खेलों के अलावा सांप-सीढ़ी दिया. जोकि हर घर में खेला जाने वाले खेल है