Daku Malkhan Singh चम्बल में आतंक फ़ैलाने वाला खूंखार नाम डाकुओं के किस्से हमेशा किस्से कहानियों और फिल्मों में ही सुनने और देखने को मिलती है। उनको फिल्मों में ऐसा दिखाया जाता है कि वो गरीबों की मदद करते हैं और अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं।
मगर ज़नाब डाकू असलियत में फ़िल्मी नहीं होते हैं। दूसरी बात अब डाकू फिल्मों की तरह घोड़े से नहीं चलते। उनका मुख्य जरिया लूटपाट नहीं रहा। अब वो अपहरण करते हैं और फिरौती मांगते हैं। जब भी डाकुओं की बात होती है तो चम्बल घाटी का नाम जरुर आता है। मतलब जहां चम्बल वहां डाकू और जहां डाकू वहां चम्बल। भारत की चम्बल घाटी में अभी भी कई डाकू हैं। जैसे जैसे पुराने डाकुओं का दौर ख़त्म होता जाता है वैसे वैसे नए चेहरे सामने आते जाते हैं। हां ये बात अलग है कि डाकुओं की जो ताकत और ख़ौफ़ पहले हुआ करता था वो अब नहीं रहा। क्योंकि कुछ ने सरेंडर कर दिया, कुछ पुलिस से मुठभेड़ में मारे गए, कई पकडे गए और कुछ जेल में हैं। कुछ राजनीति में आये और सांसद भी बन गए। कइयों ने तो इतना रसूख बनाया कि उनका मंदिर तक बन गया। तो कुल मिलाकर डाकुओं का ख़ौफ़ तो अब लगभग ख़त्म हो गया है लेकिन इन चम्बल के डाकुओं की कहानियां सुनना आज भी हर किसी को रोमांचित कर देता है।
Daku Malkhan Singh फ़िल्मी डाकू से कम नहीं था

इन डाकुओं में डाकू मलखान सिंह, डाकू मान सिंह और दस्यू फूलन देवी के किस्से बड़े मशहूर थे। इन्ही में से एक है डाकू मलखान सिंह। 6 फीट लंबा कद, खाकी वर्दी, चेहरे से बाहर निकलती मूंछे। इस मशहूर डाकू मलखान सिंह को कभी चंबल का शेर कहा जाता था। मलखान सिंह के गोलियों के तड़तड़ाहट से पूरा चंबल कांप उठता था। एक वक्त था जब चंबल के इस डाकू ने कई दशकों तक पुलिस के नाक में दम कर दिया था। बीहड़ का इलाका मशहूर डाकू मलखान सिंह के नाम से थर्राता था
Daku Malkhan Singh चम्बल के लिए श्राप से कम नहीं था

चंबल के बारें में कहा जाता है कि वहां के हर घर का एक दरवाजा गांव में खुलता तो दूसरा दरवाजा बीहड़ में खुलता है। इस बीहड़ के बीचोबीच बहती है शांत सी बहने वाली चम्बल नदी जिसके नाम पर इस बीहड़ का नाम पड़ा चम्बल घाटी। कहते हैं पचीसी में शकुनि के हाथों बदनाम होने के बाद द्रोपदी ने इस नदी और उसका पानी पीने वालों को श्राप दे दिया था। ऐसा श्राप जो कभी ख़त्म ही नहीं हुआ। उस श्राप की वजह से ना तो कभी इस नदी को पूजा गया और ना ही गंगा यमुना नदी की तरह यहां कभी कोई त्यौहार या मेला लगा। इसकी झोली में गिरे तो बस मगरमच्छ घड़ियाल और बहुत सारे डाकू। आज भी जब कोई इस जगह का नाम लेता है तो बस याद आता है चम्बल का बीहड़, बंदूके, असला और खून खराबा। बड़े बड़े मिटटी के टीले, कांटेदार जंगल, टेड़े मेढ़े रास्ते ही इन डाकुओं के छिपने और दहशत फैलाने की असली जगह होती है। इसी बीहड़ में रहते थे डाकू मलखान सिंह। मलखान सिंह के डकैत और फिर डकैत से साधारण आदमी बनने की कहानी काफी दिलचस्प है।
वो 18 साल की उम्र में पहली बार भिंड जिले के बिलाव गांव से पंच बने थे। 25 साल की उम्र में गांव में मंदिर की जमीन को लेकर विवाद हुआ। इसके बाद उन्होंने 250 लोगों के साथ मिलकर डकैत गिरोह बनाया और खुद सरगना बने। पूरी कहानी ये है कि मलखान सिंह ने अपने गांव के सरपंच पर आरोप लगाया था कि उसने मंदिर की जमीन हड़प ली। कहा जाता है कि मलखान ने जब इसका विरोध किया तो सरपंच ने उसे गिरफ्तार करवा दिया और उसके दोस्त की हत्या करवा दी। इसके विरोध में मलखान सिंह ने राइफल उठा ली और खुद को बागी घोषित कर दिया। उस समय मलखान सिंह के गिरोह में लगभग डेढ़ दर्जन लोग थे। ये गिरोह देखते ही देखते खून बहाने लगा। डाकू मलखान सिंह की दहशत घाटी में कुछ इस कदर फैलने लगी कि लोग दिन में भी अपने घरों से बाहर निकलने में कांपने लगे। रात होते ये गिरोह किसी ना किसी को मौत के घाट उतारने निकल पड़ता था। लोग दहशत में जीते थे कि ना जाने कब किसकी लाश उन्हें चौराहे पर टंगी मिल जाए। 70 के दशक में चंबल घाटी के गांवों में आतंक का पर्याय बन चुके मलखान सिंह को पकडऩा पुलिस के लिए भी नामूमकिन सा था। उससे भी ज्यादा उसे पकडक़र जेल में रखना मुश्किल था। मलखान ने करीब 1983 तक चंबल घाटी पर राज किया। इस गिरोह पर 32 पुलिस वालों समेत दर्जनों हत्याओं का आरोप लगा। इस तरह मलखान सिंह ने करीब 15 साल चंबल घाटी में आतंक मचाया। कहा जाता है कि पहले आमतौर पर मलखान सिंह जिधर से भी गुजरता था, वहां से लोग भाग खडे होते थे। मगर मलखान सिंह ने अपने गिरोह के अन्य साथियों के साथ मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने 1982 में आत्मसमर्पण करने के बाद अपनी अमैरिकन सेल्फ-लोडिंग राइफल फिर नहीं उठाई है। आत्मसर्मपण के बाद सरकार ने उनकी मदद भी की ताकि वो आम आदमी तरह अपना गुजर-बसर कर सके। इधर आत्मसम्र्पण के चलते धीरे-धीरे मानसिंह की छवि लोगों के बीच में सेलिब्रिटी की हो गई और लोगों में से डर खत्म हो गया। फिर मलखान सिंह राजनीती में सक्रीय हो गए और आज भी वो राजनीति में आने की कोशिश में रहते हैं। कभी आतंक का चेहरा माने जाने वाला मलखान सिंह आज नए अवतार में हैं। आज चाहे डाकू मलखान सिंह के नाम के आगे से डाकू शब्द हट गया हो मगर लोगों में उनका खौंफ कहीं ना कहीं आज भी है। आज भी जब गाँव शहरों में उनका ज़िक्र छिड़ता है तो लोग उनके किस्से सुनकर ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं।