कोरोना वायरस, पूरी दुनिया में इस अदने से वायरस का तांडव जारी है। भारत के बड़े मेट्रो शहरों जैसे दिल्ली और मुंबई में ये अब अपने पीक पर पहुंच रहा है, आलम ये है कि हर दिन कोरोना पॉजिटिव मरीजों और इसके कारण मारने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत अब कोरोना केसेस के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। इस वायरस के कारण जो सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं वो हैं हमारे बड़े बुजुर्ग। इस वायरस ने बुजुर्गों के लिए जिंदगी को थोड़ा और कठिन बना दिया है। इस बीमारी से वे संक्रमित ना हो, इसके लिए उन्हें बाकियों से ज्यादा सावधानियां बरतनी पड़ रही है। लेकिन हमारे देश में जहां बड़े बुजुर्गों की सेवा करना बच्चों का कर्तव्य माना जाता है, उसी देश में कई ऐसे बुजुर्ग हैं जो अपने बुढ़ापे में अकेले जिंदगी गुजार रहे हैं। इसके कई अलग-अलग कारण हैं। किसी को बच्चों ने छोड़ दिया है तो किसी के बच्चे देश से बाहर रहते हैं।
ऐसे में इन बुजुर्गों की देखभाल कौन करे? इस सवाल का जवाब पूरी तरीक़े से नहीं दिया का सकता, लेकिन कुछ लोग ऐसे कोशिशों में लगे हैं। जैसे कि इंदरप्रीत सिंह और व्योन्ना डसूजा। ये दोनों हीं इस महामारी के इस दौर में बुजुर्गों की मदद के लिए आगे आए हैं। दोनों अपनी संस्था ग्रे-शेड्स के जरिए बुजुर्गों का ख्याल इस सिचुएशन में रख रहे हैं। ग्रे-शेड्स एक यूथ ऑर्गनाइजेशन है, जो 2016 से ही देश में बुजुर्गों को लेकर खत्म होती सामाजिक और भावनात्मक जिम्मेदारी को पटरी पर लाने की कोशिश में लगी है।
ग्रे-शेड्स का 100 दिनों का फेलोशिप

ग्रे-शेड्स बुजुर्गों को उनकी क्षमता का एहसास कराने के लिए 100 दिनों का एक फेलोशिप प्रोग्राम चलाती है। इस फेलोशिप का करिकुलम एक्सपीरियेंशियल लियरनिंग प्रोग्राम पर आधारित होता है। 6 माह तक के इस प्रोग्राम में इस संस्था के युवा पंचकूला, मोहाली और चंडीगढ़ के बुजुर्गों को डिजिटल साक्षरता, आर्ट थेरेपी, डांस, ध्यान/मेडिटेशन और न्यूट्रीशन से जुड़ी चीजों के बारे में सिखाते हैं। इस संस्था का एक मात्र उद्देश्य यही है कि, सामाज में बुजुर्गों कि सामाजिक और ज्ञानात्मक महत्व को स्थापित किया जाए।
बुजुर्गों तक ऐसे पहुंचा रहे राहत

कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए ग्रे-शेड्स के लोगों ने एहतियात के तौर पर अपने सारे सोशल गेदरिंग और पर्सनल कॉन्टेक्ट वाले कामों को बंद कर दिया। वहीं सरकार की ओर से अचानक से लागू किए गए के कारण संस्था के पास इतना ज्यादा समय नहीं था कि, वो बुजुर्गों कि मदद उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर सके।
दरअसल इन तीनों शहरों और इसके आस-पास के इलाकों में बहुत से बुजुर्ग ऐसे है। जो अपने घरों में अकेले रहते हैं। इसके बच्चे एनआरआई है या देश से बाहर रहते हैं। वहीं लॉकडॉउन के कारण इन लोगों ने अपने घर में काम करने वाले नौकरों को भी छुट्टी दे दी थी। ऐसे में इन बुजुर्गों के लिए रोजमर्रा कि चीजें भी खरीद पाने में बहुत दिक्कतें आ रही थी।
इस परेशानी को दूर करने के लिए ग्रे-शेड्स की टीम ने 500 नए वॉलंटियरों की नियुक्ति की जो इन बुजुर्गों की मदद कर सकें। इन वॉलंटियर्स को ये सिखाया गया कि वे बुजुर्गों से कैसे पेश आएं और साथ ही उनसे होने वाले इंटरेक्शन के दौरान खुद को कैसे सुरक्षित रखें। एनरोलमेंट के तुरंत बाद टीम काम पर लग गई। इस टीम ने लॉकडाउन के दौरान 100 से ज्यादा बुजुर्गों और उनके परिवार की मदद की। अभी फिलहाल ये टीम इन बुजुर्गों को रोजमर्रा की चीजों जैसे की ग्रसेरीज या मेडिसिन डोर टू डोर डिलीवरी प्रोसेस के जरिए पहुंचती है। साथ हीं संस्था चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला के स्थानीय प्रशासन के संग भी जुड़ कर काम कर रही है।
ग्रे-शेड्स अपने फेलोशिप प्रोग्राम को वर्चुअल करने में जुटी

ग्रे-शेड्स अब अपने 100 डेज फेलोशिप प्रोग्राम को वर्चुअल क्लास में बदलने जा रही है, ताकि बुजुर्गों को घर पर ही ये क्लास मिल सके और इनमें मोरल और कम्युनिटी स्प्रिंट को और जोर मिल सके। वहीं इसके आलावा ग्रे-शेड्स ने बुजुर्गों में महामारी और इसके बाद की जिंदगी को लेकर उठने वाले सवालों के लिए भी एक काउंसलिंग प्रोग्राम शुरू किया है। बुजुर्गों के लिए और अधिक काम हो सके इसके लिए इनकी टीम अपनी संख्या और अपने संसाधनों को भी बढ़ाने की ओर ध्यान दे रही है।
ग्रे-शेड्स और इसकी टीम ने पूरे लॉक डाउन में जिस तरह से 24×7 बुजुर्गों की सेवा की है, वो सराहनीय है। ये सच्ची भारतीयता की पहचान है। हमारी भारतीय संस्कृति में वृद्धों की सेवा को सबसे महान काम माना गया है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
अगर आप भी बुजुर्गों कि सेवा से करना चाहते हैं तो आप भी ग्रे शेड्स से जुड़ सकते हैं। वहीं मोहाली, चंडीगढ़ और पंचकूला का कोई भी नागरिक अपने आस पड़ोस के बुजुर्ग की मदद के लिए +91 9999 712430 नंबर पर ग्रे शेड्स से संपर्क कर सकता है।