कोरोना एक त्रासदी, जिसने देश का अस्तित्व उज़ागर कर दिया

कोरोना वायरस की भयावहता से आज शायद ही कोई इंसान अंजान हो, पिछले महज़ एक महीने में पूरे देश ने इस महामारी का वो दौर देखा है. जो शायद ही आने वाली हमारी पीढ़ियां देख पाएं. अक्सर हमारे दादा दादी या फिर गाँव के बड़े बुजुर्ग हमें पहले के समय की कहानियां बताते हैं. जिसमें कई बार उन्होंने मुझे भी बताया है कि, एक वक्त था. जब गाँवों में हैज़ा बीमारी का प्रकोप रहता था.

बीमारी ऐसी की गाँव के गाँव साफ. कोई लाश उठाने वाला तक नहीं रहता था. हर तरफ लोग बीमार रहते थे. और मर जाते थे. जिसकी वजह बस ये थी कि, हैज़ा का उस समय कोई इलाज़ नहीं था. लोगों को इसके बारे में कुछ मालूम नहीं था.

इसी तरह जिस समय प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्पैनिश फ्लू भी फैला था. ऐसा भी माना जाता है कि, जितनी मौतें प्रथम विश्व युद्ध के दौरान नहीं हुई थी. उससे कई ज्यादा मौतें इस फ्लू के कारण पूरी दुनिया में हुई थी.

अक्सर होता भी यही है, हमने अपने इतिहास के पन्नों में अनेकों ऐसी दर्द भरी कहानियां पढ़ी होगीं. जिसमें बीमारी के चलते पूरा का पूरा गांव खत्म हो गया. उसका एक कारण उस समय ये भी रहा होगा कि, उस समय में इलाज़ नहीं होता था. विज्ञान ने उतनी तरक्की नहीं की थी. बीमारी आने पर लोगों को मालूम तक नहीं चलता था कि, आखिर ये बीमारी फैलती कैसे है. रूकती कैसे है और खत्म कैसे होती है.

जिस समय बीसवीं शताब्दी की शुरूवात हुई थी. विज्ञान अपने चरम पर था. इंसान का अस्तित्व ऐसा की मानों वो विधाता से कम नहीं. दुनिया में होड़ ऐसी की मैं बेहतर-मैं बेहतर के चक्कर में सबसे आगे निकलना. इस बीच हमने आगे निकलने की खातिर क्या प्रकृति, क्या दुनिया, क्या जीव-जंतु किसी की भी परवाह किए बगैर बस आगे निकलने की योजना बनाई. इंसान उसमें कामयाब भी हुआ. आज ऐसो आराम से लेकर इंसान के पास सारे संसाधन हैं. सब कुछ है. लेकिन फिर भी पिछले डेढ़ साल में इंसान एक नगण्य जीव से इतना बेबस हो गया कि, शायद ही उसने कभी कल्पना की हो.

corona virus

बात चाहे अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैंड, ब्राजील, स्पेन किसी की क्यों न की जाए. सब के सब बेबस और लाचार. पिछले डेढ़ साल में हमने जितनी मौतें देखी हैं. हकीकत कहीं न कहीं उससे काफी उलट है. आज डेढ़ साल में हमने इस कोरोना महामारी के बारे में बहुत कुछ जान लिया है. कैसे फैलता है, कैसा नष्ट होता है. क्या-क्या इसके बचाव हैं. उसके बावजूद भी दुनिया अभी भी बंद है. हमारे देश भारत की स्थिति तो किसी से छिपी नहीं है.

हमारे देश ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में तरक्की के नए नित आयाम गढ़ दिए. सरकार जब बदली तो यूँ लगा हमारा आधार बदल जाएगा. लेकिन जमीनी हकीकत यही रही कि, फज़ीहत. विकास के नाम पर हमने शायद ही कहीं विकास किया हो. जिसकी एक वजह ये है कि, सरकारों का आपस में ही मेल तक नहीं है.

सरकार विपक्ष से लड़ती है. विपक्ष सरकार से और यहां तक की अगर अलग-अलग राज्य में केंद्रवाली सरकार नहीं तो वहां भी रेलम-पेल चलती है. इस बीच मर कौन जाता है. ऑक्सीजन की आस में बेड पर पड़ा आदमी, वेंटिलेटर की चाह में आदमी, दवाइयों की किल्लत में तड़पता आदमी.

पिछले कुछ दिनों में कई हेडलाइन्स पूरे देश-दुनिया ने पढ़ी. जिसमें पाँच मिनट की देरी से पहुंची ऑक्सीजन के चलते लोग मर गए. मर गए….या मार दिए गए. इसमें अंतर करना जरूरी है. क्योंकि अगर ऑक्सीजन पाँच मिनट की देरी से पहुंची तो पाँच मिनट पहले क्यों नहीं. क्यों अभी तक हम समझ नहीं पाए कि, हमारा पूरा देश पाँच मिनट की देरी में न जानें कितना कुछ खोता आया है. यहाँ तक की बेड़ पर पड़े आदमी की साँसें भी. क्या वाकई सत्ताधीशों के लिए सांसों की कोई अहमियत नहीं?

corona virus

सोचो कितना तड़तपता होगा वो इंसान. जब बिना ऑक्सीजन के, बिना दवाइयों के यहां तक की अस्पताल के बाहर जब वो बस इस आस में दम तोड़ देता होगा कि, अभी डॉक्टर साहब आएंगें. कुछ ऐसा करतब करेंगे की मुझे आराम मिल जाएगा. नहीं…नहीं…इसमें उन डॉक्टर्स का क्या कसूर.

जब अभी तक हमारी स्वास्थ्य संरचनाऐं ही पूरी नहीं है. देश में कुछ भी ऐसा नहीं है. जिनकी आधारभूत सरंचनाऐं पूरी हों. मैंने तो आज तक नहीं देखा. किसी ने देखा हो तो जरूर बताना. बात बस इतनी ही नहीं है. बात ये है कि, अगर इस महामारी जैसे दौर में आम इंसान मिलकर लोगों के लिए इतना सब कुछ कर सकते हैं तो सत्ता सिंहासन पर बैठे लोग क्या कर रहे हैं.

सारी गलती जनता की होती है. क्योंकि पार्टियां हमेशा उन लोगों को टिकट देती हैं. जिन्होंने कभी जनता को परेशान किया हो. अपना नाम बनाया हो और जनता उन पर मुहर लगा देती है कि लो जी. चुन लिया. तभी तो आज के नेता इतने बड़ भोले हैं कि, कोरोना वायरस उन्हें प्राणी लगता है. उसे जीने का अधिकार दिया जाना चाहिए बोले देते हैं. जहाँ पूरी दुनिया वायरस से परेशान है. वहां गोमूत्र से कोरोना वायरस खत्म करने की बात करते हैं और तो और इलेक्शन के टाईम में जमकर चुनाव प्रचार करते हैं. उस समय जब उन्हें भी मालूम था कि, देश में कोरोना वायरस बढ़ रहा है.

इसमें केवल एक पार्टी नहीं है. हर एक पार्टी है. पक्ष विपक्ष, सत्ता धारी, बिना सत्ता धारी यहां तक की गाँव के वो छोटे मझले प्रधान भी. जिन्हें गाँव का समग्र विकास करना था.

आज कोरोना वायरस हर घटें, हर पल जिंदगी ऐसे खत्म कर रहा है. मानों जिंदगी का कोई अस्तित्व ही नहीं है. जबकि इसी जिंदगी की खातिर हम पूरी उम्र खपा देते हैं कि, हम खुद को कितना काबिल बना सकें.

लेकिन हमारा फले हाल तब बयां हो जाता है. जब हमारी सराकारों की विफलाएं दिखाई देती हैं. गंगा में बहती लाशें, अस्पताल के बाहर बिना इलाज़ में दम तोड़ रहे लोग. इस बात की ग्वाही हैं कि, उनका मर जाना भी इतना बोझिल था की उन्हें श्मशान में भी ठीक से जगह नहीं मिली. आज अगर गिद्ध लुप्त ना हुए होते तो वो बेहद खुश होते. क्योंकि उनके लिए मायने यही रखता है कि, लाशें कहां है. कैसे अपना पेट भरा जाए. और गंगा नदी में उतराती लाशें उनके लिए किसी दावत से कम नहीं थी.

corona virus

खैर गिद्ध तो लुप्त हो गए. लेकिन उनकी जगह उन इंसानों ने ले ली. जो इस महामारी के समय में भी कालाबाजारी कर रहे हैं. महज़ सिलेंडर भरने के लिए हज़ारों रुपये ले रहे हैं. दवाइयों की खातिर लाखों ले रहे हैं. इनमें अस्पताल भी शामिल हैं. इसमें एंबुलेंस भी शामिल है. इसमें वो इंसान भी शामिल है. जो फोन कॉल के जरिए आपसे पैसे तो ले लेता है. लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर उसका कभी गतंव्य तक नहीं पहुंचता. क्या ही करेगें हम अपने देश का. जहां मरते लोगों के बीच इंसानियत की खातिर गिने चुने लोग तो हैं. हाथ बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन उससे भी कहीं अधिक हैं. जो बस इस ताक में बैठे हैं कि, आज जाओ उस जगह को मैं हथिया लूँ. या जो गठरी आपने छोड़ी हो उसे हथिया लूँ.

मौत का कारोबार भी ऐसा ही होता होगा शायद. जहां हर रोज़ हत्यायों को मौत का नाम दिया जा रहा है. लोगों को जानबूझ कर मारा जा रहा है और सत्ताधीश कह रहे हैं. आखिर हम ऑक्सीजन नहीं दे पाए तो क्या हमें फांसी दे दी जाएगी.

क्या मालूम ये तो समझ से परे. लेकिन ये सब याद रखना जरूरी है.

Indian

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

अपने हुक्के के धुएं से राजनीति की गद्दी हिलाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत

Sat May 15 , 2021
सरकार की गलत नीतियों और सरकार की वजहों से ही किसान कर्जदार है….शुद्ध और ठेट लहजे में ऐसा बोलने वाले बाबा को कौन नहीं जानता. किसानों का मसीहा, एक ऐसा किसान जिसने देश में किसानों के आंदोलन की पूरी नींव बदल दी… चलिए आज हम आपको भारतीय इतिहास के उस […]
mahendra singh tikait