होली का एक रंग ऐसा भी जहां अबीर गुलाल की जगह होती है चिता की भस्म और रंग की जगह ले लेती है राख ! काशी के श्मशान घाटों में चिता की भस्म से होली खेलने की परंपरा है। काशी मोक्ष की नगरी है इसलिए यहाँ तो मृत्यु भी एक उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। यहां हर साल होली पर अबीर और गुलाल की जगह चिता की भस्म एक दूसरे पर फेंककर होली मनाई जाती है। वैसे तो देशभर में ही होली के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। जैसे पंजाब में होला मोहल्ला तो बरसाना की लठ्ठमार होली और इन्ही में से एक है काशी की होली, जो सबसे बिलकुल अलग है। काशी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन श्मशान में चिता की भस्म से होली खेली जाती है।

ये दुनिया की सबसे अलग और विचित्र होली है। शायद ही इस तरह की होली की कल्पना की जा सकती हो। मगर ऐसी होली वास्तव में हर साल काशी में खेली जाती है। दरअसल इसके पीछे भी एक बहुत ही पुरानी मान्यता है और वो ये कि जब भगवान शिव रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती और पुत्र गणेश के साथ गौना कराकर काशी लौटे तो शिव के भूत-पिशाच भक्त गण और दृश्य-अदृश्य आत्माएँ उस वक़्त वहां मौजूद नहीं थे। इसलिए उनका मान रखने के लिए रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान में महादेव ने भक्तों के साथ चिता की भस्म से होली खेली थी। तब से ही ये परम्परा चली आ रही है और आजतक शिवभक्त अजीब रूप धर कर शमशान घाट में मशान नाथ के साथ ऐसे ही होली खेलते आ रहे हैं।

इस दौरान पूरा मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भगवान शिव स्वरूप बाबा मशाननाथ की पूजा कर श्मशान घाट पर चिता की भस्म से होली खेलते हैं। इसे मसाने की होली भी कहा जाता है।