जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते है। वैसे ही हमारे समाज के भी दो चेहरे है। जो सबको दिखाई तो जरूर देते है। लेकिन उनमें से बात हमेशा साफ और अच्छे चेहरे की की जाती है। बात देश के आर्थिक विकास की हो या फिर मानसिक विकास की, हर तरफ बस यही हाल है। हालांकि, एक बार को हमारे देश का हर इंसान अपना और देश का आर्थिक विकास तेजी से कर सकता है.. मगर बात जहां मानसिकता की आती हैं, तो वहीं हमारे ही देश के कई ऐसे पिछड़े वर्ग और समाज के लोग है, जिनकी सोच को बदलना बेहद मुश्किल है।
जैसे हमने बात की दोहरे चेहरों की, तो जहां एक तरफ आज के वक्त में लोग बेटियों और बेटो को समान दर्जा देने की बात करते हैं। वहीं हमारे समाज में कई ऐसे मानसिक रोगी है, जो लड़कियों को उनके पीरियड्स के दौरान अपवित्र बताकर घर में घुसने तक नहीं देते। हम बात कर रहे हैं, हमारे ही समाज में बरसों से चली आ रही छौपदी प्रथा की।
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छौपदी प्रथा
छौपदी प्रथा, जिसे प्रथा ना कहकर कूप्रथा कहें तो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि, ये एक ऐसे विषय से जुड़ी कूप्रथा है, जिससे हमारा पूरा समाज वाकिफ तो है, लेकिन इसके बारे में बात करने से भी हिचकिचाता है। और भला हिचकिचाए भी क्यों ना, ये लड़कियों वाली प्रॉब्लम जो है।

Chhaupadi- क्या सच में इस दौरान अछूत हो जाती है महिलाएं
छौपदी प्रथा के बारे में बात करने से पहले हम आपको बताना चाहेंगे, कि हमारे ही देश में कई ऐसे गांव और शहर है। जहां periods एक taboo है। periods के वक्त औरतों पर कई तरह से पाबंदियां लगाई जाती है। भारत में हर 10 में से 8 लड़कियों को periods के दौरान मंदिरों में जाने की permission नहीं होती है। क्यों? क्योंकि, कुछ मानसिक रोगियों के अनुसार अपने पीरियड के दौरान घर की लड़कियां और महिलाएं अपवित्र होती है, जिसके चलते उनके मंदिर में जाने से मंदिर भी अशुद्ध हो जाएगा। तो वहीं हर 10 में से 6 लड़कियों को घर के kitchen तक में जाने से रोक दिया जाता है। जबकि, 10 में से 3 लड़कियों को इस दौरान कमरे से बाहर सोने के लिए कहा जाता है। और ये सब करने के पीछे लोगों की एक ही मानसिकता है कि महावारी, के दौरान लड़कियां अछूत होती है।
खैर, periods से जुड़ी इन बातों के बारे में तो सभी को पता है। और हममे से कई लोगों ने इन परंपराओं को मानकर स्वीकार भी कर लिया है। लेकिन हमारी इस शारीरिक क्रिया से जुड़ी कई और भी ऐसी प्रथाएं है। जिन्हें जानकर शायद आपके रौंगटे खडे हो सकते है और इन्हीं में से एक “छौपदी प्रथा”
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दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में लड़कियों को उनके periods के वक्त घर से दूर रखा जाता है। और पूरे गांव के बाहर जंगल के पास एक छोटी सी झोपड़ी बना दी जाती है। जहां गांव की औरतें अपनी महावारी के दौरान आकर रहती है। इस प्रथा को छौपदी प्रथा कहा जाता हैं। हालांकि, महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में इसी झोपड़ी को गौकोर का नाम दिया गया है। इस गौकोर में महिलाएं जमीन पर चटाई बिछाकर सोती है। महावारी के 5-6 दिनों के दौरान लड़कियों को गांव के बाहर इसी झोपड़ी में अपने दिन-रात बिताने पड़ते हैं। गर्मी में सूरज की तपन हो या फिर सर्द रातों की ठिठुरन, गांव की हर महिला या लड़की को अपने पीरियड के दिन इसी छौपदी में गुजारने पड़ते हैं।
Chhaupadi के कारण गई नेपाल में एक लड़की की जान
इसी प्रथा के चलते नेपाल में एक 14 साल के लड़की को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी। दरअसल, सिर्फ 14 साल की रोशनी को उसके periods के चलते गांव के बाहर छौपदी में रहना पड़ रहा था। और सर्दी होने के वजह से उसने खुदको गर्म करने के लिए छौपदी में ही आग जलाई। लेकिन झोपड़ी बहुत छोटी थी। जिससे आग के धुएं में रोशनी का दम घुट गया। और उसकी मौत हो गई और इस घटना के बाद से नेपाल में इस प्रथा पर रोक लगा दी गई। और साथ ही, छौपदी प्रथा का चलन जारी रखने वालों पर जुर्माना लगाने का भी ऐलान किया गया।
मगर जानकारों की मानें तो कानूनी तौर पर अपराध होने के बावजूद भी समाज के कुछ मानसिक रोगी आज भी इस प्रथा को निभा रहे हैं। इसके अलावा Periods को taboo बनाकर देश की कई जगहों पर इस दौरान लड़कियों के खाने-पीने के बर्तन, कपड़े, बिस्तर सब अलग कर दिए जाते है।

इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बॉल्स समाज में लड़कियों को उनके पहले पीरियड का ब्लड, गाय का दूध, नारियल का पानी और कपूर मिलाकर पिलाया जाता है। और ऐसा करने के पीछे यहां के लोगों का मानना है कि, ऐसा करने से लड़कियां मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत हो जाती है। तो वहीं इसके बिल्कुल उलट कर्नाटक और केरल के कई इलाकों में लड़कियों को उनका पहला पीरियड आने पर उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है। उनकी आरती उतारकर बड़े धूम-धाम से इस दिन को मनाया जाता है। साथ ही लोगों को दावत भी दी जाती है।
इसके अलावा नेपाल में महावारी के दौरान लड़कियों का सबसे बुरा हाल होता है दरअसल, यहां महावारी के दौरान महिलाओं को पुरूषों से दूर रखा जाता है। अगर इन दिनों में कोई महिला किसी पुरूष को छू देती है, तो उसका शुद्धिकरण कराया जाता है। तो वहीं भारत के कई राज्यों में महिलाएं महावारी के दौरान अपने साथ लोहे की कोई वस्तु रखती हैं, ताकि उन पर किसी तरह के भूत-प्रेत का साया ना पड़ें।
जहां, लड़कियों की इस आम शारीरिक क्रिया पर हमारे समाज ने तरह-तरह की प्रथाओं का चलन जारी किया हुआ है। तो वहीं, ये वही समाज है। जो आषाढ़ के महीने में गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में जाकर देवी की माहवारी से सने हुए कपड़े को प्रसाद के रूप में घर लेकर आता है। जिस देवी की लोग पूजा करते है। वो खुद भी एक औरत है। और उसे खुद भी ये गंदगी होती है। तो वो कैसे किसी और लड़की या महिला को अपने माहवारी के दौरान छूने से गंदी हो सकती है? इस बारे में हमारे समाज को, आपको और हमें सभी को सोचने औऱ समझने की ज़रूरत है।