वैसे तो हमारे देश के हर कोने में आपकी मुलाकात किसी ना किसी जनजाति से जरूर होगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में रहने वाली बिरहोर जनजाति भारत की प्रमुख जनजातियों में से एक हैं। और सिर्फ प्रमुख ही नहीं, बल्कि बाकी सभी जनजातियों से हटकर भी है।
दरअसल, ऐसा माना जाता है कि, बिरहोर जनजाति के लोग अगर किसी पेड़ को छू दें तो उस पर कभी भी बंदर नहीं चढ़ता। और ऐसा इसलिए क्योंकि बिरहोर जनजाति अपने खाने के लिए बंदरों का शिकार करती है। और तो और इस जनजाति के बंदर का शिकार करने के पीछे भी एक लंबी कहानी छिपी हैं। जिसका सीधा संबंध रामायण काल से जुड़ा हुआ है। वैसे तो मशहूर लेखक एके सिन्हा ने अपनी एक किताब छत्तीसगढ़ की आदिम जनजातियां में बिरहोर जनजाति के बारे में विस्तार से लिखा हैं, मगर हो सकता हैं कि ये किताब पढ़ने का वक्त आपके पास ना हो, इसीलिए हम आपको बताने आए हैं कि, आखिर कब और कैसे शुरू हुआ बिरहोर जनजाति का बंदरों के शिकार करने का सिलसिला।
Birhor Tribe- रामायण काल से शुरू हुई बिरहोर जनजाति की कहानी
ये रामायण काल की बात है, जब कोल्तीन जनजाति के एक परिवार में दो बेटियां थी, जिनमें से एक बेटी के अवैध संबंध के चलते वो शादी से पहले ही गर्भवती हो गई। और बच्चे के जन्म लेने के बाद लड़की के मां-बाप समाज में बहुत शर्मिंदा महसूस करने लगे, और इसी के चलते एक दिन देर रात को लड़की के मां-बाप झोपड़ी गिराकर भग गए ताकि बच्चा और उसकी मां उसी झोपड़ी के नीचे दबकर मर जाए।
मगर अफसोस ना तो बच्चा मरा औऱ ना ही उसकी मां, और जैसे ही सुबह हुई तो गांववालों ने बच्चे और उसकी मां दोनो को ही झोपड़ी से बाहर निकाला, हालांकि, बच्चे की छठी और नामकरण से पहले ही उसकी मां की मौत हो गई। खैर बच्चा तो जैसे तैसे पल बढ़कर बड़ा हो गया। लेकिन जब कभी भी वो किसी पवित्र स्थल या फिर समारोह में जाता था, तो गांववासी दूर से ही उसे बाहर का रास्ता दिखा देते थे। लेकिन धीरे-धीरे जब उसे ये एहसास होने लगा कि, गांव वाले उसे इज्जत की नजरों से नहीं दिखते हैं, तब उसने गांव छोड़कर जंगल में जाने का फैसला किया। और जिसके बाद वो बिरू पर्वत पर जाकर रहने लगा।
बिरू पर्वत की गुफा में रहने की वजह से उसका नाम बिरहोर पड़ गया। और बस यहीं से हुआ बिरहोर जनजाति का जन्म। खैर इसके बाद बिरहोर एक दिन कोरवा जनजाति की एक लड़की को उठाकर ले आया और उससे शादी कर ली। शादी के बाद दोनो पति-पत्नी मिलकर रस्सी बनाने का काम करने लगे, और बिरहोर की पत्नी गांव में रस्सी बेचने के लिए जाया करती थी, और करीब 3 से 4 साल यूं ही गुजर गए, मगर अब गांववालों ने उससे पूछना शुरू कर दिया कि, तुम अकेले ही रस्सी बेचने आती हैं तुम्हारा पति कहां हैं, क्या करता हैं? और बस इन्ही सवालों से डर से अगले दिन से उसकी पत्नी ने भी गांव जाना बंद कर दिया। अब वो दोनो जंगल में ही गिलहरी और चूहे पकड़कर खाने लगे।
इसके कई दिनों बाद देगनगुरू नाम के एक व्यक्ति को बाजा बनाने के लिए बंदर की खाल चाहिए थी। दरअसल, वो इस बाजे से इष्ट देव को जगाना चाहता था। और बस बंदर की खाल की तलाश करते करते एक दिन देगनगुरू लंका के राजा रावण के पास जा पहुंचा। उसने रावण से बंदर की खाल मांगी तो रावण ने कहा कि, बिरू पर्वत पर बिरहोर रहता है, वो तुम्हारे लिए ये काम कर सकता है।
Birhor Tribe- देगनगुरु ने कहा था खा लेना बंदर का शरीर
बंदर की खाल पाने के लिए देगनगुरू बिरहोर के पास भी जा पहुंचा, लेकिन जब देगनगुरू बिरहोर के घर में घुसने लगा तो बिरहोर डरकर भागने लगा, तब देगनगुरू ने उसे समझाया कि, डरो मत मैं बस तुमसे बंदर की खाल लेने आया हूं, ये सुनकर एक पल को तो बिरहोर थोड़ा परेशान हुआ और फिर बोला कि, मै तुम्हें बंदर की खाल कैसे दूंगा। जिसके बाद देगनगुरु ने बताया कि मोहलाइन के रेशे से जाल बना लेना और जब बंदर पानी पीने आयेगा तब उसे फंसा लेना। बंदर पानी पीने आया और जाल में फंस गया, इसके बाद बिरहोर ने देगनगुरु को बुलाया, बस फिर क्या देगनगुरु ने बंदर की खाल निकाल ली। लेकिन फिर सवाल ये उठा कि, बंदरह के शरीर का क्या करना है? देगनगुरु ने कहा कि बंदर के शरीर को खा लेना। और बस इसी दिन से बिरहोर जनजाति ने बंदर का शिकार कर उसे खाना शुरू कर दिया।
ये जनजाति बंदरों का शिकार करके ही अपना जीवनयापन करते हैं, और इतना ही नहीं, इनके शिकार करने का तरीका भी सबसे अलग और हटकर है। दरअसल, शिकार के लिए कोई शुभ मुहूर्त या दिन नहीं होता, यो लोग शिकार करने से पहले एक धार्मिक क्रिया करते हैं, जिससे इस बात का पता लगाया जाता है कि शिकार के लिए जानवरा मिलेगा भी या नहीं,
इस धार्मिक क्रिया के चलते तीन आदमी एक जगह पर बैठते हैं, और चावल लेकर थोड़ा-थोड़ा सबके हाथ पर डालते हैं। फिर सब जोहार-जोहार करके एक मंत्र पढ़ते हैं और भूत का बुलाया जाता हैं। मंत्र पढ़कर भूत बुलाने के बाद जो आदमी चावल देता है उसके शरीर में भूत का प्रवेश होता है। और जब वह कांपने लगता है तो मान लिया जाता है कि उस व्यक्ति पर भूत प्रकट हो गया है। जिसके बाद भूत को एक बोतल शराब दी जाती हैं और पूछा जाता है कि, शिकार मिलेगा या नहीं? जब भूत बता देता है कि शिकार मिलेगा तो थोड़ी सी शराब जमीन पर गिराते हैं। जिसके बाद बची हुई शराब को सभी पीते हैं और शिकार करने निकल जाते हैं।
और इतना ही नहीं, शिकार के लिए कम से कम छह लोग जाते हैं। सब के पास धनुषबाण, नाठी, टांगी, हंसिया और एक आदमी के पास बंदर पकड़ने का जाल होता है। जंगल में जाने के बाद सबसे पहले सभी लोग एक जगह पर बैठकर विचार विमर्श करते हैं। इसके बाद दो लोग बंदर ढूंढने निकलते है जबकि, बाकी बंदर को पकड़ने के लिए जाल बिछाते हैं, और जैसे ही बंदर दिखाई देता है वैसे ही सीटी की बजाई जाती हैं, ताकि उसके बाकी साथियों को भी इस बात का संकेत मिले कि बंदर मिल गया है। जिसके बाद सभी मिलकर बंदर को घेर लेते हैं, और उसे जाल में फंसाकर मार दिया जाता है। और अब तो जब कभी कोई छोटा बंदर जाल में फंस जाता है तो उसे जिंदा रखा जाता हैं ताकि बाद में बाजार में बेचकर अच्छे पैसे कमाए जा सकें।