बसंत का नाम सुनकर ही मन मुस्कुराने लगता है। जिंदगी में कुछ नया करने की उमंग जगने लगती है। बसंत पंचमी से सर्दियां ख़त्म और वसंत ऋतु की शुरुवात हो जाती है। दरअसल हमारे देश में ज़्यादातर त्योहारों का संबंध ऋतुओं से होता है। कुछ ऐसा ही इस त्यौहार के साथ है। दरअसल हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से पूरे साल को छह महीनों में बांटा जाता है। उनमें से एक बसंत ऋतु है जो लोगों का सबसे पसंदीदा मौसम होता है, जब फूलों में बहार आ जाती है खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता है जौं और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। आम के पेड़ों पर बौर आ जाता है और हर तरफ रंग बिरंगी तितलियां मंडराने लगती हैं। इस साल 2022 में बसंत पंचमी 5 फरवरी को है। बसंत पंचमी को लेकर कई तरह की मान्यताएं भी है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की आराधना के साथ-साथ कामदेव की भी पूजा होती है। इस दिन पीले रंग के कपडे पहनना शुभ माना जाता है। ये तो बात हुई बसंत पंचमी की मगर आज हम आपको बिहार एक ऐसे गांव के बारे में बता रहे हैं, जहां बसंत पंचमी के दिन लडकियां जनेऊ पहनती हैं। जी हाँ, आमतौर पर पुरुष ही जनेऊ धारण करते हैं।
लेकिन बिहार के मडियां गांव में बसंत पंचमी के दिन दर्जनों की संख्या में लड़कियों को जनेऊ धारण करवाया जाट है और साथ ही उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया जाता है। ये अनोखी परंपरा मणियां गांव के दयानंद आर्य हाईस्कूल में हर साल मनाई जाती है। हर साल बसंत पंचमी के दिन लड़कियों को जनेऊ पहनाने की तैयारी की जाती है। इस आयोजन को लेकर गांव में जोर शोर से तैयारियां की जाती हैं। दरअसल इस परम्परा की शुरुवात मणियां उच्च विद्यालय के संस्थापक स्व. विश्वनाथ सिंह ने 1972 ई. में की थी। उन्होंने उस ज़माने में सबसे पहले अपनी बेटियों को जनेऊ धारण कराया था। उसके बाद से ही ये परम्परा चली आ रही है। दरअसल ऐसा करके लडकियां रुढ़िवादी परंपरा को खत्म करने के साथ चरित्र निर्माण की शपथ लेती हैं। इस गांव के लोगों का मानना है कि ऐसा कर के नारी शक्ति को बढ़ावा दिया जाता है। साथ ही महिलाओं को इस परम्परा से ये भी सन्देश दिया जाता है कि वो किसी से कम नहीं हैं। महिला और पुरुषों में बराबरी का सन्देश देने के लिए ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है।