कहते हैं ना कुछ कर गुजरने की अगर सच्ची चाह हो तो दुनिया में कोई काम मुश्किल नहीं है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है रायगढ़ के एक नहीं दो नहीं बल्कि सैंकड़ों युवाओं ने। जी हाँ, दरअसल रायगढ़ में एक ऐसा गांव हैं जो बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं तक यहां के लोगों को नसीब नहीं हैं।
रायगढ़ गांव में पहुंचने के लिए सड़क तक नहीं है। मगर फिर भी यहां के गांववासी डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, फॉरेस्ट, एसईसीएल, शिक्षा, पंचायत, रेलवे, पीडब्ल्यूडी, राजस्व, समेत प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत हैं। इस आदिवासी गांव बंगरसुता के बच्चे पढ़ने के लिए नदी-नाले पारकर दूसरे गांव कोरबा के रामपुर के अंग्रेजी माध्यम स्कूल जाते हैं।
Bangarsuta Village – गांव में रहती है 80 प्रतिशत शिक्षित आबादी
इस गांव में 80 प्रतिशत से अधिक लोग शिक्षित हैं, उपसरपंच खुद एमए पास हैं। जिले के धरमजयगढ़ ब्लॉक की ग्राम पंचायत बंगरसुता की आबादी 700 है। ढाई सौ परिवार वाले गांव में ज्यादातर आबादी आदिवासी व पनिका समाज के लोगों की है।
गांव में चाहे सड़क हो ना हो चाहे स्कूल हो ना हो मगर फिर भी यहां के ग्रामीण शिक्षा की राह पर चलकर पूरे देश के लिए मिसाल बन गए हैं। ग्रामीण शिक्षा को लेकर लोग इतने जागरूक हैं कि हर घर का एक सदस्य सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में अच्छे पद पर नौकरी कर रहा है।
Bangarsuta Village – 10 साल से अधूरा पड़ा है मांड नदी पर बन रहा पुल
एक तरफ जहां शहर में रहने वाले युवा हर सुख-सुविधा में पढ़कर अच्छी-अच्छी डिग्रियां लेकर भी बेरोजगार हैं वहीं इस गांव के युवा सुविधाओं के अभाव में तमाम मुश्किलें झेलने के बाद भी इतने बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं। इतना आदर्श और काबिल गांव होने के बाद भी किसी का ध्यान इस गांव की तरफ नहीं जाता। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव को जोड़ने के लिए मांड नदी पर बन रहा पुल 10 साल से अधूरा पड़ा है।
मगर फिर भी मुश्किलों से घबराकर ये ग्रामीण कभी भी पीछे नहीं हटते और ना ही घर बैठने का बहाना ढूंढते हैं। यही नहीं ग्रामीण नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि वो भी भविष्य में अच्छी नौकरी पा सकें। गांव में तीन समितियां बनाई गई है। नौकरी करने वाले सभी लोग पारंपरिक और धार्मिक उत्सव में आर्थिक सहयोग करते हैं। गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई या इलाज के लिए भी भरपूर मदद करते हैं। जो युवा गांव के आसपास ही सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं। वे सामुदायिक भवन में बुजुर्गों को प्रौढ़ शिक्षा भी देते हैं। वाकई में इस गांव की कहानी ना सिर्फ देश के लिए एक मिसाल है बल्कि कई युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम भी नहीं है।